कोरोना संक्रमण के दौरान बदल रहे हैं उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण, जन मुद्दों पर एकजुट हो रहा है विपक्ष!

सोशल मीडिया के जरिये उन मुद्दों को काफी जोर मिला है। किसानों की आत्महत्याओं को लेकर कांग्रेसी नेता बुन्देलखण्ड के दौरे पर रहे तो आम आदमी पार्टी ने कोरोना किट में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन किया।

कोरोना संक्रमण के दौरान बदल रहे हैं उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण, जन मुद्दों पर एकजुट हो रहा है विपक्ष!
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लखनऊ. एक लम्बे अरसे बाद ऐसा देखने को मिल रहा है कि यूपी (Uttar Pradesh) में जनता के असली मुद्दों पर बात हो रही है। जातिवाद की हवा कुछ दिन पहले बहुत तेज बही थी लेकिन, अब उस पर धूल जमती नजर आ रही है। उसकी जगह वे जीवंत मुद्दे ले रहे हैं जिनका लोगों के जीवन से सीधा सरोकार है।

ठाकुर-ब्राह्मण राजनीति (Thakur-Brahmin Politics) को छोड़कर पार्टियां बेरोजगारी, किसान और भ्रष्टाचार पर आंदोलन करने में जुट गयी है। वैसे तो ये आदर्श स्थिति है पर लाख टके का सवाल ये है कि कितने दिनों तक ये मुद्दे जमीन पर टिके रहेंगे औऱ विपक्ष इनको साधने में कितना कामयाब रहेगा?

कोविड 19 के दृष्टिगत राजनीति के मुद्दे भी बदल रहे हैं

प्रयागराज के गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. बद्री नारायण तिवारी ने कहा कि काश ऐसा ही होता रहे। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना काल में राजनीति के मुद्दे भी बदल गये हैं लेकिन, डर इस बात का है कि ये कितने दिनों तक टिके रहेंगे? अक्सर ऐसा देखा गया है कि जिन मुद्दों पर आंदोलन होता है उन पर चुनाव नहीं होते।

आखिर कब तक टिकेंगे जमीन पर ये मुद्दे ?

आगरा विश्वविद्यालय में सामाजिक विज्ञान विभाग के हेड रह चुके प्रो बृजेश चन्द्रा बताते हैं कि राजनीतिक पार्टियों को मुद्दों पर बात करनी पड़ रही है लेकिन, मीडिया को भी ऐसा करना पड़ेगा या ऐसा करना चाहिए।

वैसे तो सोशल मीडिया के जरिये काफी बात हो रही है लेकिन, मेनस्ट्रीम मीडिया में इसकी चर्चा बिना ये सिलसिला बहुत लम्बा नहीं चल सकता। तो आखिर फिर ये मुद्दे टिके कैसे रहेंगे? क्योंकि चुनाव में तो अभी बहुत वक्त है।

युवाओं को गोलबन्द करने में लगे पूर्व आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने कहा कि देखिये आज के समय में न तो कोई जयप्रकाश नारायण हो सकता है और ना ही अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल भी नहीं।

इनमें से कुछ की छवि तो बरकरार है लेकिन, कुछ डिसक्रेडिट भी हुए हैं। हम मुद्दों को तब तक जिन्दा रखेंगे जब तक इनका समाधान नहीं हो जाता। कम से कम बेरोजगारी तो चुनावी मुद्दा रहेगी ही। जाहिर है सोशल मीडिया के जरिये आंदोलन को जब तक जिन्दा रखा जायेगा तब तक राजनीतिक दल भी इस पर मुखर रहेंगे।

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सियासी गलियारों में क्यों हो रही हलचल, क्यों विवश हैं पार्टियां इन मुद्दों पर बात करने को ?

यूपी में विपक्षी पार्टियां सरकार को घेरने में जुटी हैं। मुद्दे जाति या धर्म से जुड़े नहीं हैं। ये जरूर सच है कि जिन मुद्दों पर पार्टियों ने आंदोलन शुरु किया है, ऐसा करने के लिए उन्हें विवश होना पड़ा है।

सोशल मीडिया के जरिये उन मुद्दों को काफी जोर मिला है। किसानों की आत्महत्याओं को लेकर कांग्रेसी नेता बुन्देलखण्ड के दौरे पर रहे तो आम आदमी पार्टी ने कोरोना किट में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन किया।

देर से ही सही लेकिन, समाजवादी पार्टी ने भी बेरोजगारी पर पूरे प्रदेश में आंदोलन किया।

दूसरी तरफ सत्ताधारी बीजेपी भी मुद्दों को लेकर बात कर रही है। विपक्षी पार्टियों के सवालों पर योगी सरकार का एक्शन यही तो दिखाता है कि बीजेपी को भी मुद्दों पर बात करनी पड़ रही है। कोरोना किट घोटाले की जांच के आदेश इन्हीं कदमों में से से एक है।

तो क्या यूपी की राजनीति में इसे बदलाव के तौर पर देखा जाये?

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