भारत मे कम जनसंख्या वाले पारसी समुदाय ने कोरोना महामारी के चलते अपने समुदाय में पीढ़ियों चली आ रही अंत्योष्टि परम्परा को बदल दिया है।पारसी समुदाय में व्यक्ति की मौत के बाद उनके शरीर को गिद्धों के लिए टॉवर ऑफ साइलेंस (Tower of Silence) या एक गहरे गड्ढे में छोड़ दिया जाता है।
कोरोना वायरस (Covid 19 ) महामारी के चलते दुनिया और धर्म से जुडे़ कई नियम बदलने पड़े हैं। इस परेशानी से भारत का पारसी समुदाय भी अछूता नहीं है।
इस महामारी ने समुदाय को हजारों साल पुरानी परंपरा दोखमे नशीन को बदलकर दाह संस्कार करने पर मजबूर कर दिया है। वहीं, हालात की गंभीरता को देखते हुए पारसी पंचायत पदाधिकारियों ने कोरोना के चलते जान गंवाने वाले लोगों को अग्निदाह करने की मंजूरी दे दी है।
कैसे होती थी पुरानी परंपरा में अंत्योष्टि –
हिंदुस्तान में अल्पसंख्यक पारसी समुदाय की रिवाजों के मुताबिक, व्यक्ति की मौत के बाद उनके शरीर को गिद्धों के लिए टॉवर ऑफ साइलेंस या एक गहरे गड्ढे में छोड़ दिया जाता है।
टॉवर ऑफ साइलेंस एक खुली जगह होती है, जहां मृत शरीर को छोड़ा जाता है। अब कोरोना वायरस महामारी की वजह से समुदाय को इस प्रक्रिया को बदलना पड़ा रहा है।अब वह मृत शरीर का दाहसंस्कार करेंगे।
पारसी पंचायत के सदस्य कहते हैं कि भारत देश में उनके समुदाय के लोगों की जनसंख्या करीब एक लाख है। इसी बीच महामारी में कई लोगों की मौत हो रही है।
ऐसे में कोरोना नियमों का पालन भी करना जरूरी है। यही वजह है कि पारसी समाज के लोगों ने यह निर्णय लिया है। पारसी समाज के लोग अग्नि को अति पवित्र मानते हैं, लेकिन उन्होंने यह बताया है कि समय के अनुसार परिवर्तन जरूरी है और लोगों को किसी तरीके की तकलीफ ना हो इस वजह से उन्होंने यह निर्णय लिया है।