एक लाख करोड़ की शत्रु संपत्ति बेच सकती है मोदी सरकार,वर्तमान परिस्थितियों में ख़र्च को पूरा करने में है बजट की कमतरी

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित और वित्त मंत्री द्वारा 5 धारावाहिक किस्तों में पेश कथित 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज हवा में उड़ चुका है।

एक लाख करोड़ की शत्रु संपत्ति बेच सकती है मोदी सरकार,वर्तमान परिस्थितियों में ख़र्च को पूरा करने में है बजट की कमतरी
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नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद (Economic Advisory Council to the Prime Minister) के अंश कालिक सदस्य नीलेश शाह(Nilesh Shah) ने सोमवार को आईएमसी (IMC) के वेबिनार में सरकार को शत्रु संपत्ति बेचने की सलाह दी है। शाह ने कहा, सरकार को कोविड-19 से प्रभावित आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने और मौजूदा बढ़े खर्च को पूरा करने के लिये शत्रु संपत्ति को बेचने पर गौर करना चाहिये, जो एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की है।

कोविड-19 से प्रभावित आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए शत्रु संपत्ति विक्रय का दिया गया सुझाव

पीएम के आर्थिक सलाहकार परिषद के अंश कालिक सदस्य नीलेश शाह ने कहा कि कोविड-19 से प्रभावित आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने और मौजूदा बढ़े खर्च को पूरा करने के लिये शत्रु संपत्ति को बेचने पर सरकार को गौर करना चाहिये, जो एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की है।

नीलेश शाह कोटक म्युचुअल फंड के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी हैं। उन्होंने कहा कि इस शत्रु संपत्ति का मूल्य तीन साल पहले एक लाख करोड़ रुपये आंका गया था। उन्होंने कहा कि इस तरह की संपत्तियों को बेचकर अतिक्रमण हटाने और मालिकाना हक की विसंगतियों को दूर करने का यह सबसे बेहतर समय है।

शाह ने कहा कि इस तरह की 9,404 संपत्तियां हैं जो कि 1965 में सरकार द्वारा नियुक्त कस्टोडियन के अधीन की गई थीं। सुस्त पड़ती आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के तौर तरीकों पर पूछे गये सवाल पर शाह ने कहा, इन संपत्तियों को बेच डालिये और एक लाख करोड़ रुपये की राशि प्राप्त कर लीजिये, इससे आपके खर्चे पूरे हो जायेंगे।

बीते दिनों एलआईसी में 25 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान कर चुकी है केंद्र सरकार

मोदी सरकार को कोरोना काल में एलआईसी के आईपीओ से बड़ी रकम जुटने की उम्मीद है। सरकार का मानना है कि इस दौर में कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च बढ़ने और टैक्स में कमी होने के अंतर की भरपाई एलआईसी की हिस्सेदारी को बेचने से पूरी हो जाएगी।

एलआईसी में हिस्सेदारी बेचने के दौरान भी दिया था कल्याणकारी योजनाओं पर ख़र्च बढ़ने का तर्क

भारतीय जीवन बीमा निगम की 25 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की योजना के तहत सरकार रिटेल इन्वेस्टर्स को बोनस और डिस्काउंट देने पर विचार कर रही है।

मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज ने एलआईसी में हिस्सेदारी बेचने का ड्राफ्ट तैयार किया है और इसे सेबी, इरडा और नीति आयोग समेत संबंधित मंत्रालयों के पास भेजा गया है। पूरे मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि सरकार कंपनी में अपनी हिस्सेदारी को 100 पर्सेंट से घटाकर 75 फीसदी तक सीमित करना चाहती है।

GDP -23.9% : रसातल में पहुंच गई देश की अर्थव्यवस्था, फिर भी सरकार और नेशनल मीडिया के लिए ‘सब चंगा सी’

हर किसी को पता था आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और बहुत ही बुरी खबर के लिए हर कोई तैयार भी था। अंतत: वह आंकड़े सामने आ गए हैं जिससे पता चल गया कि जी-20 देशों में इस समय भारत की अर्थव्यवस्था सबसे खराब हालत में पहुंच चुकी है। देश की जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट अप्रैल से जून की तिमाही में हुई है।

लॉकडाउन के दौरान भी संक्रमण रोकने में विफल रही सरकार

विश्व के सभी कोरोना संक्रमित मरीजों में से 28 फीसदी अकेले भारत में हैं। मतलब साफ है कि लॉकडाउन कोरोना का संक्रमण रोकने में नाकाम रहा और अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठ गया।

हवा हो गया 20 लाख करोड़ का पैकेज

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित और वित्त मंत्री द्वारा 5 धारावाहिक किस्तों में पेश कथित 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज हवा में उड़ चुका है। अर्थव्यवस्था गर्क में पहुंच चुकी है और भले ही अगले तीन महीने में इसमें कुछ सुधार नजर आए जबकि इसके आसार बहुत कम हैं। सरकार के पास ईंधन ही नहीं बचा है कि वह देश की आर्थिक गाड़ी को चला सके। हो सकता है जीडीपी के आंकड़े आने वाले दिनों में सुधरते दिखें लेकिन आने वाली तिमाहियों में आम नागरिकों की मुसीबतें और दिक्कतें और बढ़ने की आशंका है क्योंकि इस हादसे का असर हर किसी पर पड़ेगा।

और भी बुरे हो सकते हैं आने वाले समय में हालात

चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने कुल वित्तीय घाटे का अनुमान 8 लाख करोड़ रुपये का लगाया था, लेकिन अब यह बढ़कर 13 लाख करोड़ रुपए तक जा सकता है, यानी 5 लाख करोड़ रुपये अधिक है। इसका मतलब होगा कि सरकारी योजनाओं के लिए कम पैसा- और ऐसा केंद्र के साथ राज्यों में भी होगा। एक तरफ जब निजी या व्यक्तिगत उपभोग गिर रहा है, ऐसे में सरकार भी खर्च में कटौती करेगी तो इससे मंदी में और इजाफा होगा। संक्षेप में कहें तो हालात बदतर ही होने वाले हैं।

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