एक प्रधानमंत्री जिनके आह्वान पर पूरा देश एक दिन का उपवास रखने लगा।

शास्त्री के जीवनीकार सीपी श्रीवास्तव लिखते हैं, "मानव इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं जब एक दिन पहले एक दूसरे के घोर दुश्मन कहे जानेवाले प्रतिद्वंद्वी न सिर्फ़ एक दूसरे को दोस्त बन गए थे, बल्कि दूसरे की मौत पर अपने दुख का इज़हार करते हुए उसके ताबूत को कंधा दे रहे थे।"

एक प्रधानमंत्री जिनके आह्वाहन पर पूरा देश एक दिन का उपवास रखने लगा!
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आज है दो अक्टूबर का दिन आज ही के दिन भारत के दो ऐसे महान सपूतों का जन्मदिन हुआ है, जिन्होंने अपने महान कर्मों से पूरे हिंदुस्तान को अपना कर्जदार बना लिया। हम बात कर रहे हैं महात्मा गांधी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की।

 

गांधी एक भरोसा, तो शास्त्री एक विश्वास।

महात्मा गांधी एक व्यक्तित्व नहीं बल्कि एक भरोसा और विश्वास हैं, जो हर इंसान के अंदर मौजूद है। वो एक वचन है जो हर कसम में साथ होते हैं। तो वहीं शास्त्री एक शपथ हैं जो हमें अपने कर्तव्यों का एहसास दिलाते हैं कि हम कुछ भी कर सकते हैं। इसलिए यह दोनों हमसे तो कभी अलग हो ही नहीं सकते। यह दोनों यहीं हैं हमारे पास हमारे बीच, हमारे साथ।

एक झूठ जो नई पीढ़ी से बोला गया कि गांधी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास नहीं किया

ठीक 50 साल भी ऐसा ही एक समय था। जब देश को अनाज के लिए अमेरिका या अन्य किसी देश के आगे हाथ न फैलाना पड़े, इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के आह्वान पर पूरा देश सप्ताह में एक दिन उपवास रखता था।

एक आवाज पर लाखों भारतीयों ने छोड़ा एक वक़्त का खाना

लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री याद करते हैं, “1965 की लड़ाई के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन ने शास्त्री को धमकी दी थी कि अगर आपने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ाई बंद नहीं की तो हम आपको पीएल 480 के तहत जो लाल गेहूँ भेजते हैं, उसे बंद कर देंगे।”

उस समय भारत गेहूँ के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं था। शास्त्री को ये बात बहुत चुभी क्योंकि वो स्वाभिमानी व्यक्ति थे, उन्होंने देशवासियों से कहा कि हम हफ़्ते में एक वक्त भोजन नहीं करेंगे। उसकी वजह से अमरीका से आने वाले गेहूँ की आपूर्ति हो जाएगी।

जब शास्त्री जी के यहाँ भी नही बना एक वक्त का भोजन

अनिल शास्त्री बताते हैं, “लेकिन इस अपील से पहले उन्होंने मेरी माँ ललिता शास्त्री से कहा कि क्या आप ऐसा कर सकती हैं कि आज शाम हमारे यहाँ खाना न बने। मैं कल देशवासियों से एक वक्त का खाना न खाने की अपील करने जा रहा हूँ, मैं देखना चाहता हूँ कि मेरे बच्चे भूखे रह सकते हैं या नहीं। जब उन्होंने देख लिया कि हम लोग एक वक्त बिना खाने के रह सकते हैं तो उन्होंने देशवासियों से भी ऐसा करने के लिए कहा।

लाल बहादुर शास्त्री

जब शास्त्री ने पाकिस्तान के सदर अयूब का उन्ही की भाषा में जवाब दिया

बात कोई 26 सितंबर, 1965 की है। भारत-पाकिस्तान युद्ध ख़त्म हुए अभी चार दिन ही हुए थे। जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिल्ली के रामलीला मैदान में हज़ारों लोगों के सामने बोलना शुरू किया तो वो कुछ ज्यादा ही अच्छे मूड में थे। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शास्त्री ने ऐलान किया, “सदर अयूब ने कहा था कि वो दिल्ली तक चहलक़दमी करते हुए पहुंच जाएंगे। वो इतने बड़े आदमी हैं। लहीम शहीम हैं। मैंने सोचा कि उन्हें दिल्ली तक चलने की तकलीफ़ क्यों दी जाए। हम ही लाहौर की तरफ़ बढ़ कर उनका इस्तक़बाल करें।

लाल बहादुर शास्त्री

ये वही शास्त्री थे जिनके पाँच फ़ीट दो इंच के क़द और आवाज़ का अयूब ने एक साल पहले मज़ाक उड़ाया था

नेहरू की मौत के बाद पाकिस्तान भारत को कमजोर समझने लगा था

“अयूब ने सोचना शुरू कर दिया था कि भारत कमज़ोर है। वो नेहरू के निधन के बाद दिल्ली जाना चाहते थे लेकिन उन्होंने ये कह कर अपनी दिल्ली यात्रा रद्द कर दी थी कि अब किससे बात करें। तब शास्त्री ने कहा आप मत आइए, हम आ जाएंगे।”

“वो गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में भाग लेने काहिरा गए हुए थे। लौटते वक्त वो कुछ घंटों के लिए कराची में रुके। तब शास्त्री को हवाईअड्डे छोड़ने आए अयूब ने अपने साथियों से इशारा करते हुए कहा था कि इनके साथ बात करने में कोई फ़ायदा नहीं है।

जब अमेरिकी राजदूत ने अयूब के दबाव में शास्त्री का अपमान किया

शास्त्री के काहिरा जाने से पहले अमरीकी राजदूत चेस्टर बोल्स ने उनसे मिलकर अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉन्सन का अमरीका आने का न्योता उन्हें दिया था। लेकिन इससे पहले कि शास्त्री इस बारे में कोई फ़ैसला ले पाते, जॉन्सन ने अपना न्योता वापस ले लिया था।

लाल बहादुर शास्त्री

शास्त्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति का न्योता ठुकरा दिया

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर लिखते हैं कि शास्त्री ने इस बेइज़्ज़ती के लिए जॉन्सन को कभी माफ़ नहीं किया।कुछ महीनों बाद जब वो कनाडा जा रहे थे तो जॉन्सन ने उन्हें बीच में वॉशिंगटन में रुकने का न्योता दिया लेकिन शास्त्री ने उसे अस्वीकार कर दिया।

सरकारी कार का किराया भरने का किस्सा

लाल बहादुर शास्त्री के दूसरे बेटे सुनील शास्त्री भी उनसे जुड़ी एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताते हैं-

वो याद करते हैं, “जब शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उनके इस्तेमाल के लिए उन्हें एक सरकारी शेवरोले इंपाला कार दी गई। एक दिन मैंने बाबूजी के निजी सचिव से कहा कि वो ड्राइवर को इंपाला के साथ घर भेज दें। हमने ड्राइवर से कार की चाबी ली और दोस्तों के साथ ड्राइव पर निकल गए।”

“देर रात जब हम घर लौटे तो हमने कार गेट पर ही छोड़ दी और घर के पिछवाड़े किचन के रास्ते से घर में घुसे। मैं जाकर अपने कमरे में सो गया। अगले दिन सुबह साढ़े छह बजे मेरे कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई। मैंने सोचा कि कोई नौकर दरवाज़ा खटखटा रहा है। मैंने चिल्लाकर कहा कि अभी मुझे तंग न करे क्योंकि मैं रात देर से सोया हूँ।

“दरवाज़े पर फिर दस्तक हुई और मैंने देखा कि बाबूजी सामने खड़े हैं। उन्होंने मुझे मेज़ तक आने के लिए कहा, जहाँ सब लोग चाय पी रहे थे। वहाँ अम्मा ने मुझसे पूछा कि कल रात तुम कहाँ गए थे और इतनी देर में क्यों लौटे? बाबूजी ने पूछा कि तुम गए कैसे थे? जब मैं लौटा तो हमारी फ़िएट कार तो पेड़ के नीचे खड़ी थी।”

“मुझे सच बताना पड़ा कि हम उनकी सरकारी इंपाला कार से घूमने निकले थे। बाबूजी इस कार का तभी इस्तेमाल करते थे जब कोई विदेशी मेहमान दिल्ली आता था। चाय पीने के बाद उन्होंने मुझसे कार के ड्राइवर को बुलाने के लिए कहा। उन्होंने उससे पूछा क्या आप अपनी कार में कोई लॉग बुक रखते हैं? जब उसने हाँ में जवाब दिया तो उन्होंने पूछा कि कल इंपाला कार कुल कितने किलोमीटर चली है?”

“जब ड्राइवर ने कहा कि 14 किलोमीटर तो उन्होंने कहा कि इसे निजी इस्तेमाल की मद में लिखा जाए और अम्मा को निर्देश दिया कि प्रति किलोमीटर के हिसाब से 14 किलोमीटर के लिए जितना पैसा बनता है, उनके निजी सचिव को दे दें ताकि उसे सरकारी खाते में जमा कराया जा सके। तब से लेकर आज तक मैंने और मेरे भाई ने कभी भी निजी काम के लिए सरकारी कार का उपयोग नहीं किया।

जब शास्त्री के मरने के बाद पाकिस्तान सदर अयूब ने अंग्रेजी का एक कोड दोहराया

11 जनवरी, 1966 को जब लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हुआ तो उनके डाचा (घर) में सबसे पहले पहुंचने वाले शख़्स थे पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ाँ।

उन्होंने शास्त्री के पार्थिव शरीर को देख कर कहा था, ‘हियर लाइज़ अ पर्सन हू कुड हैव ब्रॉट इंडिया एंड पाकिस्तान टुगेदर (यहाँ एक ऐसा आदमी लेटा हुआ है जो भारत और पाकिस्तान को साथ ला सकता था)

पाकिस्तानी राष्ट्रपति और सोवियत के प्रधानमंत्री ने दिया कंधा

जब शास्त्री के शव को दिल्ली लाने के लिए ताशकंद हवाईअड्डे पर ले जाया जा रहा था तो रास्ते में हर सोवियत, भारतीय और पाकिस्तानी झंडा झुका हुआ था।

जब शास्त्री के ताबूत को वाहन से उतारकर विमान पर चढ़ाया जा रहा था तो उनको कंधा देनेवालों में सोवियत प्रधानमंत्री कोसिगिन के साथ-साथ कुछ ही दिन पहले शास्त्री का मखौल उड़ाने वाले राष्ट्रपति अयूब ख़ाँ भी थे।

शास्त्री के जीवनीकार सीपी श्रीवास्तव लिखते हैं, “मानव इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण हैं जब एक दिन पहले एक दूसरे के घोर दुश्मन कहे जानेवाले प्रतिद्वंद्वी न सिर्फ़ एक दूसरे को दोस्त बन गए थे, बल्कि दूसरे की मौत पर अपने दुख का इज़हार करते हुए उसके ताबूत को कंधा दे रहे थे।”

“शास्त्री की मौत के समय उनकी ज़िंदगी की क़िताब पूरी तरह से साफ़ थी। न तो वो पैसा छोड़ कर गए थे, न ही कोई घर या ज़मीन।”

| Voxy Talksy Hindi |

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