जल ही जीवन है- एक कहानी और एक सीख

'जल ही जीवन है' कहानी बनारस के शर्मा जी की है जो बहुत अधिक पानी का इस्तेमाल करते थे वो भी बिना वज़ह पर वो बदल गये और पानी का इस्तेमाल भी कम कर दिया।

जल ही जीवन है- एक कहानी और एक सीख - वॉक्सी टॉक्सी
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‘जल ही जीवन है’ इस कथन से कोई इंकार नहीं कर सकता पर जीवन में आज भी बहुत से लोग हैं जिन्हे इसका बिल्कुल भी इल्म नहीं है। इसी से जुडी एक कहानी मैं आप लोगो तक पहुंचना चाहता हूँ जो मेरे दिल के बहुत ही करीब है।

बनारस के लगभग हर इलाकों में पानी की काफी सुविधा हैं। मतलब दिन भर में कई बार और कई घंटे पानी नल में आता हैं।

लेकिन कुछ इलाके ऐसी भी हैं, जहाँ दो समय भी पानी आ जाये, तो बड़ीं बात हैं।

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रिवार के नाम पर खुद को मिलाकर तीन जन है लेकिन पानी का खर्चा तो पूछिए मत।

सुबह का भरा पानी, उनके लिए शाम तक बासी हो जाता था।

मतलब सभी पानी से भरे बर्तनो में से पानी नाली में गिराकर पुनः उन बर्तनो को पानी से धोकर पुनः पानी भरना।

इसके अलावा घर को पानी से दो बार धोना सुबह और शाम|इसके अलावा घर के सामने की सड़क को भी पानी से धोना।

क्योंकि उनका मानना था कि सड़क पर मिट्टी धूल ना इकट्ठी हो और ना ही उड़े।

सो बड़े इत्मीनान से सड़क पर यूँ ही घंटो पानी छिड़ककर सड़क पर धूल साफ़ कर देश की स्वच्छ भारत अभियान” में अपने योगदान को सड़क पर आते जाते लोगो को बड़े ताव से दर्शाते थे, वो भी घंटो पानी की बर्बादी करके।

पानी के प्राकृतिक भंडार को कम करके। इसके अलावा, जितने कपड़े और बर्तन धोना होता, उतने ही लगभग उनका पानी का खर्चा।

इतना ही नहीं साहब, नल से टोटी नदारत थी।

मतलब पानी का अनायास यूँ ही व्यर्थ में नाली में बहते रहना। पानी की पूरी बर्बादी इनकी रोज की दिनचर्या थी।

जिसे देखकर लगता था कि मानो जीवन दायनी मोक्ष दायनी जल को, अनायास यूँ ही मृत्यु की ओर धकेला जा रहा हों।

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यह सब दृश्य  देख कर एक दिन मुझसे ना रहा गया|मिश्रा जी और उनकी धर्मपत्नी जी को भी, कई बार समझाया, लेकिन उन पर कोई असर ना  पड़ता देख, मैंने उन्हें सबक सिखाने का ठान लिया, जो की जरुरी भी था।

मैंने एक ऐसे मंदिर में पूजा का आयोजन करवाया, जो एक ऐसे इलाके में पड़ता था, जहाँ पानी की काफी समस्या थी।

निर्धारित तिथि पर मेरा और उनका परिवार उस इलाके में पहुंचा और मंदिर की ओर पैदल  चलने लगा|

उस इलाके में दूर दूर तक कोई हैंडपंप नहीं था, और अगर था भी तो उसमे पानी नदारत।

सरकारी नल तो थे, लेकिन पानी आने के इंतजार में लोगो की एक लम्बी कतार बाल्टी लोटे के साथ लगी हुई थी।

नल से पानी इतने धीमे आ रहा था कि लोग लोटे से पानी भर भर कर बाल्टी भर रहें थे।

कई जगह पानी के लिए झगडे और हाथा पाई तक भी हो रही थी।

कुछ जगह नल से गंदे पानी भी आ रहे थे।

कई जगह पानी, पाइपलाइन ख़राब होने से नगर निगम द्वारा भेजे गये पानी के टैंकर से लोग पानी भर रहे थे।

टैंकर में पानी ख़त्म हो जाने पर काफी लोग वंचित भी हो गए थे।

यह सब दृश्य मिश्रा जी और उनका परिवार बड़े ध्यान से देख रहा था।

पूजा अर्चना और अतिथियों की सेवा सत्कार करने में काफी रात हो गयी।

रात के लगभग 11 बजे हम मिश्रा जी के साथ पुनः घर की ओर प्रस्थान किये।

हमने देखा, रात के 11 बजे से ही औरतों और बच्चों की लम्बी कतारें, जो बाल्टी लिए हुए थे, पानी के लिए नल के पास लगने लगी थी।

यह सब देखकर मिश्रा जी बहुत व्याकुल  से लग रहे थे।

अगली सुबह जागने के बाद जब मैं बाहर आया तो देखा, आज मिश्रा जी का घर केवल झाडू से ही साफ़ किया हुआ लग रहा था।

उनका आँगन, सड़क और नालियां जो हमेशा पानी से गीली रहती थी , वहां आज पानी का नामोनिशान तक नहीं था।

शाम को भी यहीं दृश्य देखने को मिला।

उनके, बिना टोटी के नल, जिसमे से हमेशा पानी बर्बाद होता रहता था, उस नल पर नयी टोटी भी देखने को मिली।

इसमें अब पानी भी नहीं गिर रहा था। यह सब, मन को सुकून देने वाला दृश्य था।

अब शायद उन्हें जीवन दायनी जल के महत्व का ज्ञान हो चुका था।

हम अक्सर ये क्यों भूल जाते हैं कि जल एक अनमोल प्राकृतिक सम्पदा है। जिसका एक सीमित स्त्रोत ही है।

जिसके बिना हम पल भर भी जीवन की कामना नहीं कर सकते है।

इसके बावजूद हम कैसे इसका दोहन कर सकते हैं?

हम सब को इसके बारे में एक बार जरूर सोचना चाहिए।

निष्कर्षतः जल संरक्षण में अपना सकारात्मक योगदान देने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी करना चाहिए।

“जल ही जीवन है”

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