लेख सुने –
राजधानी लखनऊ-
गोशालाओं तड़प-तड़प कर मरने से अच्छा गाय बूचड़खाने में चली जाती और एक बार में कट कर मर जाती। कम से कम उनकी यह हालत तो न होती।”
राजधानी लखनऊ की दो ग्रामीण गोशालाओं की स्तिथि जानने को वॉक्सी टॉक्सी हिंदी की टीम गोवंश आश्रय स्थल पर पहुँची तो हालात ठीक नहीं दिखे उत्तर प्रदेश के विधानभवन से करीब से करीब 20 किलोमीटर दूर लखनऊ सदर तहसील के फरक्काबाद सैदपुर ग्रामपंचायत और आई आई एम रोड स्थित रायपुर ग्राम पंचायत के गोवंश आश्रय स्थल में हालात बद्तर है।
गोशाला में आये गांव के एक व्यक्ति ने हमको बताया कि यहां कई गाय (गोवंश) अक्सर मर जाती हैं और कोई पूछने वाला नहीं है।
लखनऊ के सैदपुर गांव के गोवंश आश्रय स्थल में छांव के नाम पर 2 टीन शेड और सिर्फ कुछ पेड़ थे। यहीं पर गांव के कुछ लोग भी थे।
40 साल के एक व्यक्ति ने हमको बताया, पहले यहाँ कई गोवंश मर चुके हैं जब कटीला तार फांद कर हमारी टीम गौशाला के भीतर पहुंची तो हमने देखा तीन गाय मरने की कगार पर थी उसमें से कुछ की आंखों पर कव्वे नोच रहे थे यह सब देखते हुए हमने तुरंत डायल 112 आपातकालीन सेवा का नंबर लगाया और मदद के तौर पर दो पीआरवी वैन वहां पर आई उन्होंने काफी देर तक पशुपालन विभाग से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन विफल रहे।
इसके बाद हमारी टीम ने एसडीएम बीकेटी से फोन पर संपर्क किया उन्होंने आश्वासन दिया कि वह कुछ करते हैं। उन्होंने वीडियो चिनहट को निर्देशित किया और हमको मुख्य पशु चिकित्सक का नंबर दिया जिस पर हमारी टीम ने बात की और वहां पर आधे घंटे में डॉक्टरों की एक टीम आई जिसने उन पशुओं का इलाज किया और कुछ देर बाद वह चैतन्य दिखने लगे।
जब ये गोशाला बनी थी तो ग्रामीणों के मुताबिक यहां सैदपुर में 200 के करीब गोवंश (गाय, बछड़े और सांड़) थे, लेकिन जब वॉक्सी टॉक्सी हिंदी की टीम यहां पहुंची तो सिर्फ 112 पशु थे।
ये सरकारी रिकॉर्ड है प्रधान के बताने के अनुसार, जिसमें से तीन मरने की कगार पर थीं। जब हमने पहली गौशाला का विजिट किया तो स्थानीय प्रशासन हरकत में आया और पूरी डॉक्टरों की टीम पहुंची तो 3 गायों की जान बचा ली गई लेकिन जब हम दूसरी गौशाला रायपुर में पहुँचे तो एक गाय जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही थी तो सामने एक मरी पड़ी हुई थी।
जिसकी कोई सुध लेने वाला नहीं था शाम का समय हो चुका था किसी अधिकारी ने फोन उठाने की जहमत नहीं उठाई यहां रिकॉर्ड के अनुसार करीबन 50 पशु है।
रायपुर पंचायत के प्रधान प्रतिनिधि कमलेश यादव बताते हैं गोशाला चलाने में दिक्कत कहा आ रही है, ये पूछने पर क्यों ?तो वो कहते हैं की एक पशु के लिए 30 रुपए काफी कम हैं।
दूसरा पैसा समय पर आ नहीं रहा। ऐसे में कुछ दिनों तक प्रधानों ने अपने पैसे से काम चलाया अब उधार भी कोई देने को तैयार नहीं है। इसलिए मजबूरी में इन्हें सिर्फ भूसा खिलाया जा रहा है “फिर बहुत जगह तो पशुओं को छोड़ना भी शुरु कर दिया गया है।”
हमने देखा रायपुर गोवंश आश्रय स्थल में गर्मी और भूख से तड़प कर इलाज के आभाव में कई गाये जमीन पर गिरीं पड़ी थी लेकिन अभी ये गाय जिंदा थीं और उनकी आंखे नोचकर कौवे घाव कर रहे थे। गोशाला में एक जगह पानी भरा था वहीं भूसा पड़ा था। यहां छांव के इंतजाम के लिए 1 टीन शेड पड़ा था।
इतने गोवंश के बीच एक ही रखवाला था। सैदपुर के प्रधान की माने तो उनके यहाँ 3 लोग कार्ययत गोसेवक के तौर पर पर हमारी टीम को पूरी गौशाला में सिर्फ एक ही आदमी दिखा तो वही रायपुर के प्रधान के प्रतिनिधि बताते हैं की गो सेवक भी उन्होंने अपने पास से ही रखा हुआ है उसके लिए भी सरकार की तरफ से कोई बजट नहीं है
गोशाला में कटीले तारों की घेराबंदी के बीच जगह-जगह जेसीबी के गड्डे खुदे थे। कुछ लोगों ने बताया कि यहां मरने के बाद इन पशुओं को अक्सर यहीं दफना दिया जाता है।
योगी सरकार ने अपने तीसरे बजट में गोवंश के संवर्धन, संरक्षण, ग्रामीण क्षेत्रों में अस्थाई गोशालाएं, शहरी इलाकों में कान्हा गोशाला और बेसहारा पशुओं के रखरखाव के लिए अलग-अलग मदों में 612.60 करोड़ रुपए का इंतजाम किया था। इनमें से 248 करोड़ रुपए ग्रामीण इलाकों के लिए थे। जमीन पर हालात वैसे नहीं दिखे जैसे होने चाहिए थे।
गोवंश आश्रय स्थल में अव्यवस्था और पशुओं के मरने का सिलसिला सिर्फ सैदपुर और रायपुर में नहीं है, यूपी के तमाम जिले ऐसे हैं जो आश्रय स्थल नहीं बल्कि पशुओं की कब्रगाह बनते जा रहे है।”गोशालाओ में बहुत सारी समस्याएं है।ज्यादातर गोशालाएं खुले में हैं। न ठीक से चारे का इंतजाम है न पानी का इसलिए पशुओं के मरने की ख़बरें आ रही हैं।”
रायपुर ग्राम पंचायत के प्रधान हमसे फोन पर बताते हैं की शासन की तरफ से निर्देश हुआ है जो भी गोवंश म्रत हो जाता है उसको गौशाला परिसर में नमक डालकर दफना दिया जाए लेकिन इस गौशाला के आसपास आबादी वाला क्षेत्र होने के कारण हम यह नहीं कर पा रहे हैं और अपनी जेब से पैसा देकर जानवरों को बाहर भेजने का प्रबंध कर रहे है।
पशुपालन विभाग द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक 31 जनवरी वर्ष 2019 तक पूरे प्रदेश में निराश्रित पशुओं (छुट्टा पशुओं) की संख्या सात लाख 33 हज़ार 606 है। विभाग की 30 अप्रैल तक रिपोर्ट के अनुसार तीन लाख 21 हजार 546 पशुओं को संरक्षित (अस्थाई गोवंश स्थल में रखा गया) किया गया। यानि बाकी के करीब करीब 3 लाख अभी भी छुट्टा है।
योजना के अनुसार जिले के छुट्टा पशुओं को पकड़कर इन गोशालों में रखा जाएगा। इन पशुओं की गणना के लिए टैगिंग, साड़ों का बधियाकरण किया जाना था, ताकि नस्ल खराब न हो। ग्राम पंचायतों की बेकार, ऊसर और चरागाह की जमीन पर कटीले तारों की फेसिंग, चारा, पानी का इंतजाम और रखरखाव होना था।
आखिर पटेल को छोड़कर गाँधी ने नेहरू को देश का प्रधानमंत्री क्यों चुना ?
“अस्थाई गोशाला खोलने की योजना डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) में ही खोंट है। अब इस महंगाई में एक पशु 30 रुपए में कैसे जिंदा रह सकता है। गोशाला में जानवर आ गए, उनकी सेवा कौन करेगा, बीमार गायों का इलाज कौन करेग। बजट में रखरखाव के लिए मजदूरों की बेहतर व्यवस्था और दवाओं का इंतजाम न होने से ये पशु मर रहे हैं।
भारत खासकर उत्तर प्रदेश में छुट्टा गोवंश बड़ी समस्या बने हुए हैं। यूपी में राज्य सरकार द्वारा अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध और पशु कारोबारियों पर लगातार हमलों के बाद पिछले 3-4 वर्षों में ये समस्या और बढ़ गई। फसल बचाने के लिए किसानों की रातें खेतों में बीत रहीं तो सड़क पर वाहन चालकों के लिए ये पशु समस्या बने।
हंगामा बढ़ने पर योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य में ब्लॉक और न्याय पंचायत स्तर पर गोवंश आश्रय खोलने का निर्णय लिया।
देश के सबसे ज्यादा पशु उत्तर प्रदेश में हैं। लेकिन यहां पर पशुओं के अनुपात में पशु चिकित्सकों की संख्या काफी कम है। “औसतन 5000 पशुओं पर एक पशु चिकित्सक होना चाहिए लेकिन यूपी में ये संख्या 30000 से ज्यादा है।
जबकि पशुओं के मामले में काफी कम संख्या वाले कर्नाटक में करीब 7000 पशुओं पर एक डॉक्टर है। ये अलग बात है कि प्रदेश में 6000 से ज्यादा पशु चिकित्सा स्नातक बेरोजगार घूम रहे हैं।”
पिछले हफ्ते की शुरुआत में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को तगड़ा झटका देते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया।
सीएम पर आरोप है उन्होंने झारखंड प्रभारी रहते हुए एक भाजपा नेता से पच्चीस लाख रुपए रिश्वत दलाली लेकर गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाने का सौदा तय किया था, जिसकी सारी रकम त्रिवेंद्र ने अपने परिवार के लोगों के खाते में ट्रांसफर करवाई।
इसका संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट ने सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ लगे आरोपों को देखते हुए यह सही होगा कि सच सामने आए। यह राज्य हित में होगा कि संदेहों का निवारण हो।
मुख्यमंत्री पर FIR दर्ज किए जाने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी, लेकिन सवाल तो वही खड़ा हैं कि आखिरकार गौसेवा आयोग का अध्यक्ष बनने के लिए इतनी बड़ी रकम कैसे दी जा सकती हैं इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है जितने भी राज्यो में बीजेपी सरकारे है वहाँ गो संवर्द्धन के नाम बहुत बड़ा फंड अलॉट किया जा रहा है
जो लोग इन गायों की देखभाल करेंगे, उन्हें प्रति गाय प्रतिदिन 30 रुपये के हिसाब से हर महीने सीधे बैंक खाते के माध्यम से मिलेंगे। इस हिसाब से एक गाय के लिए प्रतिमाह 900 रुपये मिलेंगे।
यानी अगर कोई व्यक्ति राज्य गोसेवा आयोग का अध्यक्ष बन जाता है तो वह एक बहुत बड़ी रकम के आवंटन पर कुंडली मारकर बैठ सकता है साथ ही हर गाँव मे अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं के लोगो को 900 रु प्रति गाय प्रति महीने के रूप में दे सकते है, कहीं न कहीं गौशालाओं की यह स्थिति एक बड़े घोटाले की ओर संकेत कर रही है।