योगी सरकार लव जिहाद पर बना रही कानून,इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार के अंदेशों के इतर दिया फैसला!

योगी सरकार लव जिहाद पर बना रही कानून,इलाहाबाद हाईकोर्ट सरकार के अंदेशों के इतर दिया फैसला!
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उत्तर प्रदेश में जल्द ही लव जिहाद पर कानून बनाया जाना है। गृह मंत्रालय ने कानून मंत्रालय को अपना प्रस्ताव भेज दिया है। कानून मंत्रालय की मंजूरी के बाद योगी सरकार लव जिहाद पर कानून बना देगी।

बीते दिनों बल्लभगढ़ में कथित लव जिहाद की आड़ में हुई युवती की हत्या के बाद उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक ने ऐलान किया था कि हम नया कानून बनाएंगे। ताकि कानून में लोभ, लालच, दबाव, धमकी या शादी का झांसा देकर शादी की घटनाओं को रोका जा सके।

पिछले दिनों सीएम योगी ने कहा था कि जैसा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ कहा है कि महज शादी करने के लिए किया गया धर्म परिवर्तन अवैध होगा। प्रदेश सरकार इस बाबत सख्त प्रावधानों वाला कानून लाएगी और फिर ऐसी हरकत करने वालों का राम नाम सत्य ही होगा।

‘शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर एतराज़ के फ़ैसले क़ानून की नज़र में ठीक नहीं’

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि देश के नागरिकों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का संवैधानिक अधिकार है चाहे वो किसी भी जाति, धर्म या पंथ से हो।साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन पर आपत्ति जताने वाले पिछले दो फ़ैसले क़ानून की नज़र में ठीक नहीं थे। इस ख़बर को हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने पहले पन्ने पर प्रमुखता दी है।

दलित उत्पीड़न- क्या क़ानून कमज़ोर है या उसे बनाने और लागू करने वालों की इच्छा शक्ति में कमी है?

कुशीनगर के दंपती मामले में दिया है फैसला-

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और विवेक अग्रवाल की दो जजों की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर ज़िले के रहने वाले सलामत अंसारी और उनकी पत्नी प्रियंका खरवार उर्फ़ आलिया की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये कहा।

प्रियंका ने अपना धर्म परिवर्तन किया था और उनके पिता ने पुलिस में इस बाबत शिकायत की थी। पुलिस की कार्रवाई को निरस्त करने के लिए पति-पत्नी दोनों ने अदालत की शरण ली। अख़बार लिखता है कि यह फ़ैसला अदालत ने 11 नवंबर को ही दे दिया था लेकिन इसे सार्वजनिक सोमवार को किया गया है।

जब उत्तर प्रदेश सरकार शादी के लिए धर्म परिवर्तन से जुड़ा एक क़ानून बनाने की योजना पर काम कर रही है तब हाई कोर्ट का यह फ़ैसला उसके लिए समस्या पैदा कर सकता है।इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला उसके दो पुराने फ़ैसलों के लिहाज से भी विरोधाभासी है जो साल 2014 और 2020 में एकल जज की बेंच ने सुनाए थे।

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