सरकार औऱ न्यायपालिका के बीच नहीं बन रही जुगलबंदी!

सरकार औऱ न्यायपालिका के बीच नहीं बन रही जुगलबंदी!
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इन दिनों सरकार और न्याय पालिका के बीच टकराव की स्तिथी साफ देखी जा सकती है। अक्सर सरकार को जो आशा होती है। कोर्ट के फैसले उसके विपरीत ही आते हैं।

चाहे नागरिकता संशोधन अधिनियम कानून के समय प्रदर्शन में प्रदर्शनकारियों के चौराहों पर चस्पा किए गए पोस्टर्स को लेकर न्यायालय का रुख हो जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को 24 घंटे में  चौराहों पर लगे  पोस्टर को हटाने का आदेश दिया था।

लव जिहाद के ऊपर भी अध्यादेश लाने की एक दिन पहले न्यायालय का एक वाद में आदेश अपने आप मे सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है।

जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा की हम सलामत दंपत्ति को हिंदू मुस्लिम के नजरिये से नहीं देखते बल्कि एक वयस्क नागरिक के तौर पर देखते हैं। जिसको संविधान अपनी इच्छा से अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता है।

अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर निकल रही हैं अदालतें: उपराष्ट्रपति-

भारत के उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि मौजूदा भारतीय न्यायपालिका कई मामलों में ‘अपने अधिकार-क्षेत्रों के दायरे से आगे बढ़ती’ नज़र आ रही है। इंडियन एक्सप्रेस ने उप राष्ट्रपति के बयान को पहले पन्ने पर लीड ख़बर के तौर पर प्रकाशित किया है। वैंकेया नायडू ने यह बात बुधवार को गुजरात में आयोजित दो दिवसीय ऑल इंडिया प्रिसाइडिंग ऑफ़िसर्स के 80वें सम्मेलन में कही।

इस मौके पर भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद भी वहाँ मौजूद थे।वेंकैया नायडू ने कहा कि दिवाली के त्योहार पर पटाखों पर प्रतिबंध लगाना, जजों की नियुक्ति में विधायिका की भूमिका न रखना और जाँचों की निगरानी करना कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिनसे ज़ाहिर होता है कि हमारी अदालतें ‘जुडिशियल ओवररीच’ को बढ़ावा दे रही हैं।

उप राष्ट्रपति ने कहा, “हमारे संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से अलग-अलग रेखांकित किया गया है। जब तीनों अपना काम अपने दायरे में रहकर और दूसरे के अधिकार क्षेत्र में दखल दिए बिना करते हैं तो संतुलन बना रहता है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जब सीमा रेखाओं को पार किया गया।

जब जिसके साथ चाहे रहने को आज़ाद हैं वयस्क लड़कियाँ: हाई कोर्ट-

दिल्ली हाईकोर्ट ने 20 वर्ष की एक महिला को उसके पति से दोबारा मिलाते हुए कहा की एक वयस्क महिला, जिसके भी साथ चाहे, रहने के लिए स्वतंत्र है।

अपने फ़ैसले में उच्च न्यायालय ने 20 वर्षीय सुलेखा को उसके पति बबलू के साथ रहने की इजाज़त दी है।हाईकोर्ट ने सुलेखा के परिवार के उन आरोपों को ख़ारिज कर दिया जिनमें कहा गया था कि उनकी बेटी नाबालिग़ है और बबलू ने उसका अपहरण किया है।

अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इस रिपोर्ट को अपने पहले पन्ने पर लीड ख़बर के तौर पर प्रकाशित किया है।

जजों ने वीडियो कॉन्फ़्रेसिंग के ज़रिए हुई सुनवाई में सुलेखा से बात की और यह पुष्टि की कि घर छोड़कर शादी करते समय वह वयस्क थी।

इसके बाद अदालत ने पुलिस को आदेश दिया को वो सुलेखा को सुरक्षित उसके पति बबलू के घर पहुँचाए।दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रजनीश भटनागर की बेंच ने यह फ़ैसला ऐसे समय में दिया है जब उत्तर प्रदेश समेत बीजेपी शासित कई राज्यों में अंतरधार्मिक प्रेम विवाहों पर विवाद हो रहा है।

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