आज दिनभर सोशल मीडिया पर एक अलग ही माहौल बना रहा। फेसबुक से लेकर व्हाट्सएप फिर वहां से ट्विटर
सब जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम छाया रहा चारों ओर उनको बधाइयां मिलती दिखी।
देश के जाने माने दिग्गज नेताओं ने प्रधानमंत्री को शुभकामनाएं दी तो वहीं आज सुबह से दिन भर 20thYearOfNaMo – ट्विटर पर ये हैशटैग ट्रेंड में बना हुआ है।
#20thYearOfNaMo
सात अक्तूबर को प्रधानमंत्री मोदी के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर एक बड़ा दिन बना दिया है। पार्टी से लेकर सरकार के तमाम बड़े मंत्री व कार्यकर्ता-समर्थक उनका गुणगान कर रहे हैं।
पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने ट्वीट कर लिखा, “भारत के राजनीतिक इतिहास में 7 अक्तूबर, 2001 की तारीख़ एक मील का पत्थर है, जब मोदी जी ने पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। तब से, हर बार पिछली जीत से बड़ी जीत, पिछले समर्थन से बड़ा समर्थन, लोकप्रियता का बढ़ता पायदान। #20thYearOfNaMo”
भारत के राजनीतिक इतिहास में 7 अक्तूबर, 2001 की तारीख एक मील का पत्थर है, जब मोदी जी ने पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। तब से, हर बार पिछली जीत से बड़ी जीत, पिछले समर्थन से बड़ा समर्थन, लोकप्रियता का बढ़ता पायदान। #20thYearOfNaMo
https://t.co/aQI381zkgy— Jagat Prakash Nadda (@JPNadda) October 7, 2020
आज नरेंद्र मोदी को सत्ता में बने हुए ठीक 19 साल पूरे हो गए हैं और मोदी राज का 20वाँ वर्ष शुरू हो रहा है।
और इसकी वजह ये है – आज से ठीक 20 साल पहले, वर्ष 2001 में नरेंद्र मोदी ने गुजरात की कमान संभाली थी।
नरेंद्र मोदी साल 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनाये गये थे, शब्द की मंशा कुछ अलग है। ये वही साल था, जब गुजरात, भुज में आए विनाशकारी भूकंप से जूझ रहा था, जिसमें लगभग बीस हज़ार लोग मारे गए थे।
Once a humble Pracharak to the seat of ‘Pradhan Sevak of India’, Shri Narendra Modi Ji’s journey is an example of extraordinary sacrifice, transformative leadership, profound vision and a roadmap to change our country and taking development to the last man. #20thYearOfNaMo pic.twitter.com/wzFyxkdpSz
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) October 7, 2020
उस आपदा के बाद गुजरात में भाजपा सरकार में असंतोष उपजा और उसका नतीजा ये हुआ कि भाजपा आलाकमान ने तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को सीएम की कुर्सी से हटाकर नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठा दिया।
संघर्षो की परीक्षा के बीच जलकर नरेंद्र कुंदन बनकर निकले-
मोदी के मुख्यमंत्री बने कोई पाँच महीने हुए थे जब फ़रवरी, 2002 में गुजरात में भीषण दंगे भड़क उठे, हजारों लोगों ने उन दंगो में अपनी जान गवाई। लोगों ने यहाँ तक कहा कि मोदी के नेतृत्व में दंगे भड़के।
उनकी बहुत आलोचना हुई, काफ़ी दबाव पड़ा मगर मोदी टिके रहे। दिसम्बर के महीने में गुजरात में आम चुनाव हुए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 182 में से 127 सीटें जीती।
एक प्रधानमंत्री जिनके आह्वान पर पूरा देश एक दिन का उपवास रखने लगा।
सरकार बनी और नरेंद्र मोदी पुनः मुख्यमंत्री बने। फिर जब मोदी का विजय रथ वहाँ से चला तो फिर मोदी ने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा।मोदी की अगुआई में भाजपा ने 2007 और 2012 के चुनाव में भी आसानी से सत्ता बनाए रखी। गुजरात के अब तक के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले मोदी के गुजरात मॉडल का ख़ूब नाम हुआ।
साल 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने राजनाथ सिंह के नेतृत्व में जो तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया।
मोदी ने आम चुनाव में भी अपना विजय रथ चलाते हुए पूरे भारत की ज़िम्मेदारी संभालने के लिए दिल्ली कूच किया। भारत के प्रधानमंत्री बने फिर 2019 में भी मोदी का विजय रथ नहीं रुका, वो लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
गृहमंत्री अमित शाह ने भी #20thYearOfNaMo पर दी बधाई-
कभी गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल की कैबिनेट में उनके गृह मंत्री और अब मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में भी उनके गृह मंत्री अमित शाह ने भी बधाई देते हुए ट्वीट किया और कहा “अगर कोई सही मायने में 130 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को समझ सकता है तो वह @narendramodi जी हैं। अपनी दूरदर्शी सोच से वह ऐसे भारत का निर्माण कर रहे हैं जो सशक्त, आधुनिक व आत्मनिर्भर हो। एक जनप्रतिनिधि के रूप में उनके 20वें वर्ष पर उन्हें हृदयपूर्वक बधाई देता हूँ।”
अगर कोई सही मायने में 130 करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को समझ सकता है तो वह @narendramodi जी हैं। अपनी दूरदर्शी सोच से वह ऐसे भारत का निर्माण कर रहे हैं जो सशक्त, आधुनिक व आत्मनिर्भर हो। एक जनप्रतिनिधि के रूप में उनके 20वें वर्ष पर उन्हें हृदयपूर्वक बधाई देता हूँ। #20thYearOfNaMo
— Amit Shah (@AmitShah) October 7, 2020
कुल मिलाकर सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के 20वें वर्ष की चर्चा ट्रेंड में रही।
हाथरस की घटना पर प्रधानमंत्री की चुप्पी सवाल पैदा कर रही है-
उत्तर प्रदेश के एक दलित परिवार की बेटी के साथ हुए एक अपराध ने देश को ही नहीं झकझोरा बल्कि संयुक्त राष्ट्र तक ने इसपर चिंता प्रकट कर दी जिसे भारत ने अनावश्यक बताया। लेकिन इस दौरान ये सवाल कौंधा कि संयुक्त राष्ट्र का बोलना भले अनावश्यक लगे, मगर ऐसी किसी घटना पर क्या प्रधानमंत्री का कुछ कहना आवश्यक नहीं?
चन्द्रशेखर ने #20thYearOfNaMo पर प्रधानमंत्री को लिया आड़े हाथ
भीम आर्मी के प्रमुख औऱ आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद रावण ने भी प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाया और पूछा, “हाथरस के वहशीपन पर मोदी जी ख़ामोश क्यों हैं? जिस यूपी से वे दूसरी बार सदन मे पहुँचे हैं, उसी यूपी में हाथरस भी है। क्या पीएम यह नहीं जानते? हमारी बहन को कचरे की तरह जलाया गया इस पर चुप्पी क्यों ?”
बनारस में सफाई कर्मचारियों के पैर धोकर दलित प्रेम का ढोंग करने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हमारी बहन के साथ हुई दरिंदगी पर अब तक चुप्पी साधे बैठे है। कल 5 बजे इंडिया गेट दिल्ली से हम सब उनसे जवाब मांगेंगे,उनको जवाब देना पड़ेगा। सभी लोग पहुंचे।
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) October 1, 2020
एक लड़की के साथ रेप होता है और सारा प्रशासन उसके परिवार को निशाना बनाता है। मगर देश के प्रधानमंत्री एक शब्द भी नहीं कहते। हाथरस मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी पर और भी कई लोगों ने सवाल उठाए हैं, सोशल मीडिया पर भी लगातार टिप्पणियाँ होती रहीं।
मनमोहन के मौन पर मोदी से थी उम्मीदें-
यहाँ एक सवाल ये भी उठता है कि मोदी के चुप रहने पर तो सवाल पूछे जा रहे हैं, पर क्या मोदी से पहले के प्रधानमंत्री ऐसे मामलों पर बोलते रहे हैं?
मनमोहन सिंह(Dr. Manmohan Singh) का आज 89वाँ जन्मदिन है, वो जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद सबसे ज़्यादा समय तक…
Posted by VoxyTalksy on Saturday, 26 September 2020
जवाब होगा-नही, साल 2012 में इतना बड़ा निर्भया कांड हुआ, मनमोहन सिंह ने कुछ नहीं कहा। “राजनीति में चुप रहने की रणनीति बहुत पुरानी है, सभी लोग मुश्किल के मौक़ों पर इसे अपनाते रहे हैं।
प्रवासी मजदूर मरते रहे लेकिन प्रधानमंत्री की चुप्पी नहीं टूटी-
लॉकडाउन के समय प्रवासियों की समस्या पर प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोले जो कि पूरी तरह से अव्यवस्था थी। लाखों लोग मीलों पैदल चले, खाना नही खाया, भूखों मर गए, बहुत तो पुलिसिया दमन का शिकार भी हुए।
यही नही जीएसटी मामले में भी राज्य सरकारों ने केंद्र के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ी हुई है, उस पर भी वो चुप हैं, जहाँ भी राज्य सरकारों का सवाल होता है, वहाँ वो बीजेपी के नेता बन जाते हैं।
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