13 अप्रैल 1919 भारतीय इतिहास का वो दिन जिस दिन से ब्रिटिश हुकूमत की उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी।
पंजाब राज्य में स्वर्ण मंदिर के निकट एक बगीचा था जिसका नाम है जलियांवाला बाग।
अक्सर लोग परिवार के साथ इसमें घूमने-फिरने आया करते थे पर 13 अप्रैल को कुछ ऐसा घटा जिसने उस समय के बहुत से परिवारों को बहुत बड़ा जख्म दिया।
ब्रिटिश सरकार कई तरह के क़ानून लाया करती थी और भारतीय इनका जम कर विरोध भी करते थे पर सबसे ज्यादा असर ‘रॉलेट एक्ट’ ने भारतीयों पर डाला जिसका सबसे ज्यादा विरोध हुआ।
यह बिल ब्रिटिश सरकार द्वारा 1919 में मार्च के महीने में पास कर दिया गया।
इस क़ानून के अनुसार भारत की ब्रिटिश सरकार किसी भी व्यक्ति को देशद्रोह के शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थी और उस व्यक्ति को बिना किसी जज के सामने पेश किये जेल में डाल सकती थी। इसके अलावा पुलिस दो साल तक बिना किसी भी जांच के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में भी रख सकती थी।
इस अधिनियम के चलते ब्रिटिश अफसरों को काफी छूट मिल गयी वे जब भी किसी स्थान पर 3 या 3 से अधिक व्यक्तियों को एक साथ देखते थे तो उन्हें गिरफ्तार कर लेते थे। जिससे परेशान हो कर भारतीयों ने इसका विरोध करना शुरू किया।
विरोध का यह कोई पहला मामला नहीं था और न ही कोई पहला बिल था जो की भारतीयों के खिलाफ था , इससे पहले भी कई बार ब्रिटिश सरकार भारतीयों को दबाने की लगातार कोशिशे करती रहती थी।
आईये जानते है पूरी घटना –
महात्मा गाँधी की अनुयायी में चल रहे इस आंदोलन को 6 अप्रैल 1919 को एक कदम और आगे बढ़ाते हुए भूख हड़ताल कर ‘रॉलेट एक्ट’ का विरोध करने का फैसला लिया गया।
महात्मा गाँधी अहिंसा के पुजारी थे और इस आंदोलन को भी अहिंसा से सफल बनाना चाहते थे।
9 अप्रैल को पंजाब के दो मशहूर नेता डॉ सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया गया और नजर बंद कर दिया गया।
उनकी रिहाई के सम्बन्ध में डिप्टी कमिश्नर मिल्स इरविंग से मिलने की कोशिश की पर ऐसा कहते हैं न सिर्फ उन्हें मिलने से रोका गया परन्तु उनपर गोलियां भी चलाई गईं। इसके बाद गुस्से भीड़ ने उस जगह को आग के हवाले कर दिया।
इस घटना के बाद अमृतसर की कमान ब्रिगेडियर जनरल आर.ई.एच डायर को सौंप दी गयी जो पहले डिप्टी कमिश्नर मिल्स इरविंग के पास थी। डायर ने 11 अप्रैल से कार्यभार संभाला।
अमृतसर की कमान उसके हाथ में आते ही ब्रिटिश सरकार के द्वारा ‘मार्शल लॉ’ लगा दिया गया। ‘मार्शल लॉ’ आने के बाद कोई भी जनसभा और समारोह नहीं हो सकते थे अगर कोई ऐसा करता या करने के लिए एलान करता तो उससे गिरफ्तार कर लिया जाता।
कहते हैं ना कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती, ठीक उसी प्रकार ब्रिटिश सरकार भी अपनी करतूतों से बाज़ नहीं आ रही थी।
12 अप्रैल को फिर से 2 बड़े नेता चौधरी बुगा मल और महाशा रतन चंद की गिरफ्तारी हुई। अपने दो और नेता को खोते देख वहां की जनता और आक्रोशित हो गयी।
हालांकि ब्रिटिश सरकार को यह पहले से पता था की उसके द्वारा किये जा रहे इस कदम पर जनता और अधिक क्रोधित हो सकती है।
फिर आया 13 अप्रैल इतिहास का वो काला दिन जिससे आज भी सोच कर रूह काँप उठती है –
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन था। बैसाखी वैसे तो पूरे भारत का एक प्रमुख त्योहार है परंतु विशेषकर पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की रबी की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते हैं।
इसी दिन, 13 अप्रैल 1699 को दसवें और अंतिम गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
इसीलिए बैसाखी पंजाब और आस-पास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार है और सिख इसे सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। अमृतसर में उस दिन एक मेला सैकड़ों साल से लगता चला आ रहा था जिसमें उस दिन भी हज़ारों लोग दूर-दूर से आए थे।
स्वर्ण मंदिर जलियावाला बाग़ से बेहद की कम दूरी पर है, लोग पहले मंदिर जाते फिर जलियावाला बाग़ में अपने परिवारों के साथ एकत्र होते।
इस दिन वहाँ बहुत अधिक संख्या में लोगों की मौजूदगी थी। कुछ लोग वहां अपने नेता की गिरफ्तारी के मुद्दे पर शांति पूर्वक सभा कर रहे थे तो कुछ लोग वहां अपने परिवार के साथ घूमने-फिरने आये थे।
दोपहर के 12:40 पर डायर को यह पता चला की जलियावाला बाग़ में हज़ारो लोगो के बीच एक जनसभा सम्बोधित करी जा रही है। डायर यह ख़बर सुन कर आग बबूला हो गया और अपने 90 सिपाहियों के साथ जलियावाला बाग़ के लिए रवाना हो गया।
हज़ारों की संख्या में लोगों को एक साथ देखते ही डायर ने बिना किसी चेतावनी अपने सैनिको को गोलियाँ चलाने के आदेश दे दिये।
इस कत्लेआम के शुरू होते ही लोग इधर उधर भागने लगे ब्रिटिश सैनिको ने लगभग 10 मिनट तक लगातार गोलियाँ बरसाई।
बाग़ की चारो तरह बनी दीवारे काफ़ी ऊंची थी और मुख्य द्वार पर ब्रिटिश सैनिक मौजूद थे। भागने का कोई भी रास्ता नहीं था। बाग़ में एक कुआं बना था जब लोगों को भागने का कोई भी रास्ता नहीं बचा तब वह वहाँ बने कुएं में कूदने लगे , उस समय बाग़ में बुजुर्गों से ले कर महिलाये व बच्चे भी मौजूद थे।
कितने लोग हुए शहीद –
इस पूरे हत्याकांड में उस समय की सरकार के मुताबिक बच्चे, महिलाये और पुरुषों को मिला कर 370 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।
ब्रिटिश सरकार की क्रूरता का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि इस नरसंहार में 7 हफ्ते के बच्चे की भी गोली लगने से मृत्यु हो गयी थी।
इसके आलावा बाग़ में बने कुएं से लगभग 100 शवों को निकला गया। इस घटना क्रम के बाद कांग्रेस पार्टी ने शहीद हुए लोगो का अकड़ा देते हुए बताया की जलियावाला बाग़ में हुए इस काण्ड के में करीबन 1000 लोगो की हत्या हुई थी और 1500 से अधिक लोग जख्मी हुए थे।
उन्होंने बताया की ब्रिटिश सरकार के द्वारा सही अकड़े नहीं बताये गये अगर वह ऐसा करते तो पूरी दुनिया में उनकी काफ़ी बेज़्ज़ती होती।
इस घटना ने पूरे देश में चल रहे आज़ादी के आंदोलनों में आग में घी डालने का काम किया और लोगों का आक्रोश बढ़ता ही गया भारत का हर नेता इस घटना की बात करने लगा।
लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस पूरे वाक्ये को सही बताया और डायर की तारीफ़ की।
जलियावाला बाग़ की जाँच के लिए बननी कमेटी –
इस घटना की जाँच के लिए एक कमेटी गठित की गयी। इस कमेटी के अध्यक्ष लार्ड विलियम हंटर को बनाया गया। इस कमेटी में कुल 7 लोग थे, इसमें ब्रिटिश अधिकारी समेत कुछ भारतीय भी मौजूद थे।
इस के द्वारा करी गयी जाँच में डायर को गलत साबित करते हुए यह कहा गया की उस समय वह जो कुछ भी हुआ वह सही नहीं था।
1919 नवम्बर में दायर को कमेटी के सामने पेश होने को कहा गया कुछ सवाल किये गये। इस कमेटी के द्वारा किये गए सवालों में डायर ने माना कि अगर वो चाहते तो बिना किसी को गोली मारे भीड़ को तीतर-बितर कर सकते थे। 8 मार्च 1920 को डायर पर आखरी फैसला आया जिसमे दायर को दोषी करार देते हुए सेवानिवृत कर दिया गया।
कुछ अन्य तथ्य जानने की लिए देखें यह वीडियो