8 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मध्यरात्रि से 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था। नोटबंदी के फैसले के बाद लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था। 8 नवम्बर के बाद से यह आलम एक महीने तक ऐसा ही चलता रहा। कोई अपने घर की शादी के लिए पैसे निकालने की जद्दोजहद में लगा था , तो कोई अपने कारोबार की जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक में घंटो खड़ा रहता। इस फैसले को मोदी जी ने एक ऐतिहासिक फैसला बताते हुये कहा था कि नोटबंदी से आतंकवाद , नक्सलवाद , काला धन, जाली नोट आदि पर नकेल कस जायेगी और हम कैशलेस इकनॉमी की तरफ आगे बढ़ेंगे।
आरटीआई (RTI) एक्टिविस्ट वेंकटेश नायक द्वारा जुटाई गयी कुछ अहम जानकारियां –
आरबीआई बोर्ड का कहना था कि काला धन नगदी में न होकर सोने और संपत्तियो की शक्ल में ज्यादा है, नोटबंदी का इन पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा बल्कि अर्थव्यवस्था पर इसका काफी बुरा असर पड़ सकता है।
सबसे बड़ी यह है कि उस समय के आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने बोर्ड की मीटिंग के मिनट्स पर 5 हफ्ते बाद यानि 15 दिसंबर, 2016 को हस्ताक्षर किये थे।
आरटीआई (RTI) के खुलासे के बाद मोदी सरकार एक बार फिर से कटघरे में आ कर खड़ी हो गयी है –
इस खुलासे के बाद नोटबंदी पर सवाल उठाना लाज़मी है, विपक्ष मोदी सरकार से जवाबदेही करने पर उतर आयी है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब आरबीआई (RBI) बोर्ड का कहना था कि इससे काले धन पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा फिर भी प्रधानमंत्री ने ऐसा क्यों किया ? आरबीआई (RBI) बोर्ड की बिना मंजूरी के नोटबंदी का फैसला आखिर क्यों लिया गया ? नोटबंदी के समय बैंको की लाइन में खड़े जिन लोगों ने अपने प्राण त्याग दिए थे उनका कसूरवार आखिर कौन है ? इधर विपक्ष का यह भी कहना है कि इससे लघु एवं मंझोले उद्योगों पर बुरा असर पड़ा है इससे देश की विकास दर कम हो गयी है।
रोजगार में हुई है भारी गिरावट
निजी क्षेत्र के शोध संस्थानों ने 2018 का आँकड़ा बताते हुये कहा है कि इस साल रोज़गार में 1.3 करोड़ गिरवाट हुई है और उधर एनएसएसओ का आंकड़ा यह बताता है कि बेरोजगारी दर 2018 में 46 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी है। उद्योग मंडल सीआईआई के सर्वे में कहा गया है कि सूक्ष्म, लघु एवं मंझोले उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र में पिछले चार साल में रोजगार सृजन में 13.9 प्रतिशत की वृद्धि की गई। सर्वे का यह नतीजा आधिकारिक और उद्योग के अन्य आँकड़ों से भिन्न है जिसमें नोटबंदी और जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद बड़े पैमाने पर रोजगार कम होने की बात कही गयी है।
अब भी आरबीआई (RBI) के पास नहीं है ये आँकड़ा
नोटबंदी में सरकार ने लोगों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए 23 तरह के बिल का भुगतान पुराने 500 और 1000 के नोटों से करने की छूट दी थी। जिनमें से कुछ यह हैं – अस्पताल, रेल, सार्वजनिक परिवहन, हवाई अड्डों पर विमान टिकट, दुग्ध केंद्रों, श्मशान/कब्रिस्तान, पेट्रोल पंप, मेट्रो रेल टिकट, डॉक्टर के पर्चे पर सरकारी और निजी फार्मेसी से दवा खरीदना, एलपीजी सिलेंडर, रेलवे खानपान, बिजली और पानी के बिल, एएसआई स्मारकों के प्रवेश टिकट और हाइवे टोल पर शुल्क आदि जगहाें पर इन पुराने नोटों को चलाना जारी रखा था। बाद में इस सुविधा को 15 दिसम्बर को बंद कर दिया गया।आरबीआई के पास आज भी यह आंकड़ा नहीं है कि इस दौरान कितने पुराने नोट वापस आये। लोगों का मानना है कि इस छूट के दौरान काला धन को खपाया गया था। आरबीआई (RBI) ने यह भी बताया कि उसके पास यह आँकड़ा भी नहीं है कि बीमा पॉलिसी जैसे उत्पादों को खरीदने में कितने पुराने नोट इस्तेमाल हुए थे।
लगभग सारे पुराने नोट वापस आ गए –
आरबीआई (RBI) ने पिछले साल कहा था कि पुराने नोटों में से 99.3 फीसदी हमारे पास वापस आ गए हैं। नोटबंदी के समय 15.41 लाख करोड़ के नोट चलन में थे जिसमें से 15.31 लाख करोड़ के नोट वापस आ गए थे। अब सवाल यह है कि जब अधिकतर नोट वापस आ गए तो नोटबंदी कहाँ तक सफल मानी जाएगी ?