योगी सरकार में चार साल की समीक्षा रिपोर्ट- कितना बदला उत्तर प्रदेश?

4 years yogi government
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार साल का सफर तय  कर लिया है।

योगी आदित्यनाथ बीजेपी के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बन गए, जिन्होंने 4 साल का कार्यकाल पूरा किया। शुक्रवार को उन्होंने राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के गठन के चार वर्ष पूरे होने के अवसर पर लोकभवन में आयोजित एक समारोह में ‘दशकों में जो न हो पाया-चार वर्ष में कर दिखाया’ नामक विकास पुस्तिका का विमोचन किया।

योगी आदित्यनाथ ने इन चार सालों में अपनी सरकार की तारीफ़ करते हुए कहा कि उन्होंने न सिर्फ़ हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़े बल्कि तमाम चुनौतियों को भी अवसर में बदला।

हालांकि उत्तर प्रदेश में एक सशक्त विपक्ष की भूमिका अदा कर रही समाजवादी पार्टी में छात्रसभा की नि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व बहुचर्चित युवा नेता पूजा शुक्ला ऐसी तमाम उपलब्धियों पर सवाल खड़े कर रही हैं।

योगी आदित्यनाथ भले ही उपलब्धियों के लंबे चौड़े दावे कर रहे हों लेकिन ऐसी कई चुनौतियां बनी हुई हैं, जिन पर भारतीय जनता पार्टी पिछली सरकारों को घेरा करती थी और ख़ुद सरकार में आने पर उसने इन्हें दूर करने का वादा किया था।

क्राईम कंट्रोल और महिला सुरक्षा-

क़ानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा को लेकर भारतीय जनता पार्टी न सिर्फ़ पिछली समाजवादी सरकार पर आक्रामक रहती थी बल्कि सरकार में आने पर उसे पूरी तरह से सुधार देने का भी वादा किया था।

एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, जोकि पूरे देश भर के हर राज्य में अपराधों पर पूरा लेखा-जोखा तैयार करता है, के मुताबिक साल 2020 तक उत्तर प्रदेश की स्थिति अपराध के मामले में बहुत बेहतर नहीं हुई है।

साल 2020 के एनसीआरबी के डाटा के मुताबिक उत्तर प्रदेश में हर 2 घंटे में एक रेप का मामला रिपोर्ट किया जाता है। जबकि बच्चों के खिलाफ रेप का मामला हर 90 मिनट में रिपोर्ट हुआ है। एनसीआरबी के मुताबिक साल 2018 में उत्तर प्रदेश में रेप पर कुल 4322 मामले दर्ज हुए थे। इसका सीधा मतलब है कि हर रोज करीब 12 रेप के मामले हो रहे थे।

महिलाओं के खिलाफ 2018 में 59445 मामले दर्ज किए गए। जिसका अर्थ है कि हर रोज महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध के मामले 162 रिपोर्ट किए गए। जो कि साल 2017 के मुकाबले 7 परसेंट ज्यादा है। साल 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 56011 मामले दर्ज किए गए थे। यानी उस वक्त यह आंकड़ा हर दिन के हिसाब से 153 केस था। साल 2018 में नाबालिग बच्चियों के साथ रेप के कुल 144 मामले दर्ज किए गए। जबकि साल 2017 में यह आंकड़ा 139 था।

साल 2017 अप्रैल में बीजेपी की सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहुत से ऐसे कार्यक्रम शुरू किए जिससे कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के आंकड़े कम हो सकें जगह-जगह एंटी रोमियो दस्ते बना दिए गए और देखते ही देखते वो चर्चा में आ गए। लेकिन उसके कुछ दिन बाद ही ये दस्ते कहां चले गए, किसी को पता नहीं।

एक वरिष्ठ पत्रकार से इस संबंध बात करने पर की एंटी रोमियो दस्ते की इतनी फजीहत होने का क्या कारण है, वो कहते हैं कि एंटी रोमियो अभियान निष्क्रिय होने का एक प्रमुख कारण यह भी रहा क्योंकि शुरुआत में ही इसे इतना विवादित बना दिया गया, लड़कियों और लड़कों को इतना परेशान किया जाने लगा कि जितनी यह उपलब्धियां बटोर पाया उससे ज़्यादा इसके ख़ाते में बदनामियां और ज़्यादतियां आ गईं। दूसरे, इसका कोई क़ायदे का अब तक सिस्टम नहीं बन पाया है। यहां तक कि कई बार इस दस्ते में शामिल महिला पुलिसकर्मियों तक से छेड़छाड़ की शिकायतें मिलने लगीं।

सरकार एनसीआरबी के आंकड़ों को नकारती है। सरकार के मुताबिक यूपी में अपराध पर नियंत्रण हुआ है और अगर आंकड़ों की बात की जाए तो ये प्रदेश की जनसंख्या के लिहाज से पूरे देश की तुलना में कम है। यूपी सरकार हाल के दिनों में अपराध पर नियंत्रण के लिए ताबड़तोड़ एनकाउंटर और रासुका जैसे कड़े कानून का इस्तेमाल अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए कर रही है। सरकार अपनी इसी कोशिश के हवाले से प्रदेश में अपराध पर नियंत्रण का दावा भी कर रही है।

गड्ढामुक्त सड़कें और 24 घंटे बिजली आपूर्ति-

भारतीय जनता पार्टी के चुनावी वादों में 24 घंटे बिजली और गड्ढामुक्त सड़कों की ख़ूब चर्चा हुई। सरकार की शुरुआत में काफ़ी तेज़ी से इनपर काम भी हुआ और काम अभी भी हो रहा है लेकिन दोनों ही वादे पूरे होने की सीमा से अभी भी काफ़ी दूर हैं।

सरकार ने सौ दिन के भीतर सभी सड़कों को गड्ढामुक्त करने का लक्ष्य तय किया था। कुछ सड़कों के गड्ढ़े भरे भी गए लेकिन एक साल के भीतर ही भरे गए गड्ढ़े फिर से दिखाई देने लगे जबकी आज भी कई क्षेत्रों में सालों से टूटी सड़के अपने बनने की बाट जोह रही हैं।

ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा दावा करते हैं कि शहरों में 24 घंटे और गांवों में 18 घंटे बिजली मिल रही है, लेकिन कुछ महानगरों को छोड़ दिया जाए तो यह दावा खरा उतरता नहीं दिखता।

यहां तक कि राजधानी लखनऊ में भी चौबीस घंटे बिजली मिलने की बात करना बेमानी ही होगा।

किसानों की कर्ज माफ़ी गन्ने का भुगतान व मूल्य व्रद्धि-

भारतीय जनता पार्टी ने इसे अपनी चुनावी घोषणा में कहा था कि कैबिनेट की पहली बैठक में ही किसानों का कर्ज़ माफ़ किया जाएगा और 14 दिन के भीतर गन्ने का भुगतान कराया जायेगा।

सरकार में आने के बाद इस वादे को निभाने की कोशिश की गई और कैबिनेट की बैठक तब तक नहीं हुई जब तक कि कर्ज़माफ़ी की योजना नहीं बन गई और उसकी घोषणा के लिए सरकार तैयार नहीं हो गई। सरकार ने क़रीब 86 लाख लघु और सीमांत किसानों के 36 हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज़ माफ़ करने की घोषणा की।

सरकार की इस घोषणा के बाद तमाम किसानों के कर्ज़ माफ़ ज़रूर हुए लेकिन लाखों रुपये के बकाए किसानों के जब दो रुपये और चार रुपये के कर्ज़ माफ़ी के प्रमाण पत्र मिलने लगे तो बैंकों के इस गणितीय ज्ञान ने किसानों को हैरान कर दिया। ऐसे किसानों ने बैंकों से लेकर सरकार तक न जाने कितने चक्कर लगाए लेकिन बैंकों की गणित को वो झुठला नहीं पाए।

यही नहीं, कर्ज़माफ़ी की घोषणा के बावजूद बड़ी संख्या में किसान आज भी अपने कर्ज़े माफ़ होने की राह देख रहे हैं। सरकार चाहे जो दावे करे लेकिन ज़मीनी हालात तो ये हैं कि अभी भी तमाम किसानों का कर्ज़ बाकी है। हां, कुछ किसानों के कर्ज़ माफ़ भी हुए हैं, लेकिन जिनके नहीं हुए हैं, उन्हें सरकारी बैंकों ने नोटिस जारी किए जिसकी वजह से कई किसान सदमे में मर गए। कई किसानों ने आत्महत्या कर ली।

भाजपा की सरकार बनने के चार साल बाद भी गन्ना खरीद के दामों अभी तक कोई व्रद्धि नही की गई। 31 जनवरी 2021 तक देशभर की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया रकम 16883 करोड़ रुपए है।

सोर्स- लोकसभा में 9 फरवरी सरकार का लिखित जवाब।

यूपी सरकार ने 15 फरवरी को गन्ने पेराई सत्र 2020-21 के लिए गन्ना मूल्य घोषित किया लेकिन ये लगातार चौथा साल है जब कोई कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। यूपी समेत पूरे देश में गन्ना किसानों के बकाए के भुगतान के लिए एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी और महाराष्ट्र समेत 15 गन्ना उत्पादक राज्यों को 12 फरवरी को नोटिस जारी किया था।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के सामने दायर याचिका के मुताबिक 10 सितंबर 2020 तक देशभर के गन्ना किसानों का करीब 15,683 करोड़ रुपए बकाया है।

इसमे सबसे अधिक 10,174 करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश के किसानों का है।याचिका में कहा गया है कि गन्ने का भुगतान न होने से किसान आत्महत्या को मजबूर हो जाते हैं। बकाए का भुगतान न करने वाली चीनी मिलों को डिफाल्टर घोषित कर एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई है।

बूचड़खानों पर प्रतिबंध और गो आश्रय स्थल-

शासन में आते ही योगी सरकार ने राज्य भर में चल रहे अवैध बूचड़खानों पर कार्रवाई शुरू की जिसे लेकर मीट कारोबारी हड़ताल पर भी गए। राज्य सरकार का दावा है कि सभी अवैध बूचड़खाने बंद हो गए हैं।

बूचड़खानों पर कार्रवाई के अलावा सरकार का गायों की सुरक्षा और संरक्षा पर ख़ासा ज़ोर रहा है। ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गाय और गोशाला को लेकर काफ़ी संवेदनशील रहे हैं।

सरकार ने बड़ी संख्या में कान्हा गोशालाएं बनवाईं और अधिकारियों को सख़्त निर्देश दिए कि सड़क पर किसी तरह के गोवंश न दिखें। लेकिन सरकार की यह योजना पूरे प्रदेश में औंधे मुंह गिरी दिख रही है।

हमने राजधानी लखनऊ की कई ग्रामीण गोशालाओं पर रिपोर्ट की हैं जहाँ हालात बद से बत्तर थे।आये दिन गोशालाओं में बड़ी संख्या में गायों के मरने की ख़बरें आती रहती हैं तो दूसरी ओर, पूरे प्रदेश में किसान आवारा गायों से अपनी फ़सलों की रक्षा के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं।

शिक्षा व्यवस्था-

सत्ता में आने के 4 साल के बाद योगी सरकार का दावा है कि उन्होंने सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए बहुत ही सार्थक प्रयास किए हैं।सरकार का कहना है कि बेसिक शिक्षा में स्कूल चलो अभियान के तहत पिछले चार साल अधिकांश बच्चों का नामांकन किया गया और पहली बार सरकारी स्कूलों में स्वेटर, जूते और मोजे का वितरण किया गया। सरकार हर बार नक़लविहीन बोर्ड परीक्षाओं का भी दावा कर रही है लेकिन हर बार उसके दावे खोखले साबित हुए हैं।

सरकारी स्कूलों में मिड डे मील में होने वाली लापरवाही आए दिन अख़बारों की सुर्खियों में रहती है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के एक स्कूल की वीडियो बीते दिनों खूब वायरल हुई थी। दरअसल इस वीडियो में दिखाई दे रहा था कि स्कूल में बच्चे मिड डे मील के दौरान रोटी और नमक खा रहे थे।

इस खबर ने सरकार की बहुत किरकिरी करवाई थी राज्य सरकार ने इस वीडियो को शूट करने वाले पत्रकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। वहीं दूसरी ओर अंग्रेज़ी माध्यम के प्राइमरी स्कूल बन ज़रूर गए हैं लेकिन ये स्कूल अंग्रेज़ी माध्यम के अध्यापकों का अभी इंतज़ार ही कर रहे हैं। यही नहीं, शिक्षकों की हाज़िरी के लिए प्रेरणा ऐप समेत तमाम प्रयोगों के चलते अध्यापकों की नाराज़गी भी मोल लेनी पड़ी है। जहां तक प्रेरणा ऐप का सवाल है तो वो अब तक पूरी तरह से अमल में नहीं आ सका है।

| Voxy Talksy Hindi |

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