New Parliament House: नए संसद भवन के निर्माण कि मार्ग प्रशस्ति कई मुश्किलों का हल

New Parliament House: नए संसद भवन के निर्माण कि मार्ग प्रशस्ति कई मुश्किलों का हल
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New Parliament House: सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा को मंजूरी दे दी है। मंगलवार को जस्टिस एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने दो-एक के बहुमत से प्रोजेक्ट को मंजूरी दी। इसके साथ ही नए संसद भवन (New Parliament House) के निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। जिसकी हाल ही में पीएम मोदी ने आधारशिला रखी थी।

सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद सेंट्रल विस्टा परियोजना का रास्ता साफ हो गया है। इस परियोजना के तहत राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट होते हुए यमुना के किनारे तक कि ज्यादातर सरकारी इमारतों का या तो पुनरुद्धार या पुनर्निर्माण किया जाएगा। इस परियोजना के अंतर्गत राजपथ को भी नया स्वरूप प्रदान किया जाएगा।

इसी में प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति आवास सहित कई नए कार्यालय भवन भी बनाए जाएंगे, ताकि मंत्रालयों और विभागों के कामकाज में सहूलियत हो सके। बेशक संसद भवन सहित सभी मौजूदा इमारतें कमोबेश मजबूत हैं, मगर कई दिक्कतों की वजह से नए निर्माण कार्य की जरूरत आन पड़ी है।

मौजूदा संसद भवन की योजना डिजाइन और निर्माण का काम लुटियंस और हरबर्ट बेकर की देखरेख में किया गया था। 18 जनवरी 1927 को तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया था।

निचले सदन यानी लोकसभा को पहले सेंट्रल लेजिसलेटिव काउंसिल कहा जाता था, जिस की इमारत दिल्ली के मॉडल टाउन में थी इसमें 150 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था थी,बाद में उसका पुनरुद्धार किया गया और नई इमारत बनाई गई

इसमें 396 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई फिर 461, 499, 522 व 530 सांसद बैठने लगे आज 550 सांसदों की बैठने की व्यवस्था यहां पर है। माननीयों की संख्या बढ़ने की वजह से ही लोकसभा में कई सीटें पिलर के पीछे हैं।

संसद भवन में लोकसभा राज्यसभा के साथ-साथ सेंट्रल हॉल भी है जहां संयुक्त सत्र बुलाए जाते हैं राष्ट्रपति जब बजट सत्र की शुरुआत करते हैं तब उनका अभिभाषण इसी कक्ष में होता है

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ऐसे में किसी आयोजन में यहां पर सभी सांसदों (545 लोकसभा और 250 राज्यसभा) के लिए बैठने की व्यवस्था करना एक कठिन काम होता है

और जब कोई बड़े विदेशी नेता यहां आते हैं तब तमाम सांसदों के साथ कई अन्य मेहमानों को भी न्योता दिया जाता है अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां के प्रशासनिक तंत्र को कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

यहां यह महसूस किया जाता रहा है कि सदस्यों के अनुपात में जगह काफी कम है सत्र के दौरान मंत्रियों का अपने कार्यालयों में बैठना अनिवार्य होता है। मगर मंत्रियों की संख्या बढ़ने के कारण उनके बैठने के लिए अंदर खाने में कई तरीके के कतर-ब्योत करने पड़े हैं

चूंकि यहाँ कमरे सीमित है इसलिए उन्हें लगातार छोटा किया जाता रहा है अब तो आलम यह है कि संसदीय क्षेत्रों से आने वाले लोगों को भी सांसद शायद ही कहीं बिठा पाते हैं गैलरी या केंद्रीय कक्ष में ही उनसे मेल मुलाकात की जाती है।

मौजूदा संसद भवन का नक्शा 1921-27 का है वह संरचना आज के हिसाब से काफी पुरानी पड़ चुकी है सरकार अपने कामकाज में सहूलियत के लिए संसदीय समिति बनाती रही है मौजूदा संसद भवन में इसकी बैठकों के लिए तीन कमरे आरक्षित हैं

क्योंकि समिति अब ज्यादा बनाई जाती है इसलिए सदस्यों को बैठने में ज्यादा दिक्कतें होती है उन्हें या तो कहीं और बैठ कर करनी पड़ती है या फिर कक्ष खाली होने का इंतजार करना पड़ता है सुरक्षा के लिहाज से नए संसद भवन (New Parliament House) की जरूरत है।

सवाल यह भी है कि नया संसद भवन कितना मुफीद होगा इसमें तमाम सांसदों के लिए अलग-अलग कमरे होंगे जैसा कि अमेरिका में होता है मंत्रियों के लिए भी कमरे बनाए जाएंगे बैठक के लिए हॉल अधिक बनेंगे इतना ही नहीं नए संसद भवन (New Parliament House)

तमाम राज्यों की कलाकृतियों को जगह भी दी जाएगी पुराने भवनों के रखरखाव पर हर साल करीबन 800 करोड़ रुपए खर्च होते हैं अत्याधुनिक तकनीक से बनने वाली नई इमारतें इस खर्च को काफी हद तक कम कर देंगी।

इस परियोजना के तहत प्रधानमंत्री आवास भी मनाया जाएगा अभी यह जिमखाना क्लब से सटा हुआ है जहां की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है फिर वह मुख्य सड़क पर भी है प्रधानमंत्री जब बैठक बुलाते हैं,

तो सभी को मंत्रालय छोड़कर उनके घर जाना पड़ता है इसमें काफी वक्त जाया होता है नए भवन में सभी 83 मंत्रालय एक साथ रहेंगे इससे अंतर मंत्रालय बैठकों में भी शामिल होना आसान होगा।

इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि अभी व्यवस्था में शासन पर कोई बहुत ज्यादा असर पड़ता है मगर हां सेंट्रल विस्टा के कामकाज में सहूलियत जरूर हो जाएगी जिससे कर्मचारियों व सांसदों की कार्य क्षमता बढ़ जाएगी मसलन अभी हमें वित्त मंत्रालय जाने के लिए कई जगह पास बनवाने पड़ते हैं

इसमें दो-तीन घंटे का समय जाया होता है और इस दरमियान यदि दूसरे मंत्रालय का कोई कार्य आन पड़ा तो काफी दौड़ भाग करनी पड़ जाती है।

यदि हम रक्षा मंत्रालय का उदाहरण ले ले अभी वायु भवन सेना भवन जैसी कई मारते हैं यहां से कई फाइलें लाई और ले जाई जाती हैं इसमें संवेदनशील जानकारियों का लीक हो जाने का खतरा बना रहता है नई परियोजना में तमाम ब्लॉक

अंदर ही आपस में जुड़े रहेंगे सुरक्षा के लिहाज से नीचे न्यूक्लियर सेंटर्स भी बनाया जा सकता है जिससे रासायनिक युद्ध में बचाव तो होगा ही सांप है कि सेंट्रल विस्ता परियोजना हर मामले में देश के लिए लाभदायक सिद्ध होने वाली है।

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