परम पूज्य राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा कहते थे ‘‘शिक्षा बड़ी चीज है. पैसे की तंगी हो तो खाने के बर्तन बेच दो, औरत के लिये कम दाम के कपड़े खरीदो। टूटे-फूटे मकान में रहो पर बच्चों को शिक्षा दिये बिना न रहो।
हुक्का-तम्बाकू,पान -बीड़ी छोड़ो,शराब पीनी बंद करो,धार्मिक पांखडो पर पैसा बर्बाद करना बंद करो,पाई-पाई जोड़ो और बच्चों की शिक्षा पर खर्च करो— संत गाडगे बाबा
वे अपने प्रवचनों में शिक्षा पर उपदेश देते समय डा. अम्बेडकर को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हुए कहते थे कि ‘‘देखा बाबा साहेब अंबेडकर अपनी महत्वाकांक्षा से कितना पढ़े। शिक्षा कोई एक ही वर्ग की ठेकेदारी नहीं है। एक गरीब का बच्चा भी अच्छी शिक्षा लेकर ढेर सारी डिग्रियाँ हासिल कर सकता है।
बाबा गाडगे ने अपने समाज में शिक्षा का प्रकाश फैलाने के लिए 31 शिक्षण संस्थाओं तथा एक सौ से अधिक अन्य संस्थाओं की स्थापना की। बाद में सरकार ने इन संस्थाओं के रख-रखाव के लिए एक ट्रस्ट बनाया।
मानवता के प्रचारक संत गाडगे बाबा डा. अम्बेडकर से किस हद तक प्रभावित थे, इसके बारे में चर्चा करते हुए संभवतः संघ लोक सेवा आयोग के प्रथम दलित अध्यक्ष डा. एम.एल. शहारे ने अपनी आत्मकथा ‘यादों के झरोखे’ में लिखा है कि ‘‘बाबा साहेब अम्बेडकर से गाडगे बाबा कई बार मिल चुके थे। वे बाबा साहेब के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्व से प्रभावित हो चुके थे। बाबा साहेब और संत गाडगे बाबा ने साथ तस्वीर खिंचवायी थी।
‘‘आज भी कई घरों में ऐसी तस्वीरें दिखायी देती हैं संत गाडगे बाबा ने डा. बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा स्थापित पिपल्स एजुकेशन सोसाएटी को पंढरपुर की अपनी धर्मशाला छात्रावास हेतु दान की थी राष्ट्रीय संत गाडगे महाराज की कीर्तन शैली अपने आप में बेमिसाल थी।
वे संतों के वचन सुनाया करते थे। विशेष रूप से कबीर, संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर आदि के काव्यांश जनता को सुनाते थे। हिंसाबंदी, शराबबंदी, अस्पृश्यता निवारण, पशुबलिप्रथा आदि उनके कीर्तन के विषय हुआ करते थे।’’
आधुनिक भारत को जिन महापुरूषों पर गर्व होना चाहिए, उनमें राष्ट्रीय सन्त गाडगे बाबा का नाम सर्वोपरि है ! बीसवीं सदी के समाज-सुधार आन्दोलन में जिन महापुरूषों का योगदान रहा है, उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नाम बाबा गाडगे का है।
हम समाज और राष्ट्र को काफी कुछ दे सकते हैं। गाडगे बाबा ने अपने जीवन, विचार एवं कार्यों के माध्यम से समाज और राष्ट्र के सम्मुख एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत किया, जिसकी आधुनिक भारत को वास्तव में महती आवश्यकता है |
अगर देखा जाय तो बाबा गाडगे संत कबीर और रैदास की परंपरा में आते हैं। उनकी शिक्षाओं को देखकर ऐसा लगता है कि वे कबीर और रैदास से बहुत प्रभावित थे। यह संयोग ही है कि संत शिरोमणि रविदास जी महाराज और गाडगे बाबा की जयंती एक ही महीने में पड़ती है।
मानवता के प्रचारक संत गाडगे बाबा महाराज का जीवन संघर्ष –
महाराष्ट्र सहित समग्र भारत में सामाजिक समरता,राष्ट्रीय एकता, जन जागरण एवं सामाजिक क्राँति के के ध्वज वाहक संत गाडगे बाबा का जन्म 23,फरवरी,1876 ई0 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले की तहसील अंजन गांव सुरजी के शेगाँव नामक गाँव में अछूत समझी जाने वाली धोबी जाति के एक गरीब परिवार में हुआ था।
उनकी माता का नाम सखूबाई और पिता का नाम झिंगराजी था, बाबा गाडगे का पूरा नाम देवीदास डेबूजी झिंगराजी जाड़ोकर था। घर में उनके माता-पिता उन्हें प्यार से ‘डेबू जी’ कहते थे। डेबू जी हमेशा अपने साथ मिट्टी के मटके जैसा एक पात्र रखते थे।
इसी में वे खाना भी खाते और पानी भी पीते थे। महाराष्ट्र में मटके के टुकड़े को गाडगा कहते हैं। इसी कारण कुछ लोग उन्हें गाडगे महाराज तो कुछ लोग गाडगे बाबा कहने लगे और बाद में वे संत गाडगे के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
महाराष्ट्र सहित सम्पूर्ण भारत उनका सेवा-क्षेत्र था गरीब उपेक्षित एवं शोषित मानवता की सेवा ही उनका धर्म था।
संत गाडगे बाबा आजीवन सामाजिक अन्यायों के खिलाफ संघर्षरत रहे तथा अपने समाज को जागरूक करते रहे। उन्होंने सामाजिक कार्य और जनसेवा को ही अपना धर्म बना लिया था। वे व्यर्थ के कर्मकांडों, मूर्तिपूजा व खोखली परम्पराओं से दूर रहे।
जाति प्रथा और अस्पृश्यता को बाबा सबसे घृणित और अधर्म कहते थे। संत गाडगे बाबा डा. बाबा साहेब अम्बेडकर के समकालीन थे तथा उनसे उम्र में पन्द्रह साल बड़े थे। वैसे तो गाडगे बाबा बहुत से राजनीतिज्ञों से मिलते-जुलते रहते थे लेकिन वे डा. आंबेडकर के कार्यों से अत्यधिक प्रभावित थे।
गाडगे बाबा के कार्यों की ही देन थी कि जहाँ डा. आंबेडकर तथाकथित साधु-संतों से दूर ही रहते थे,वहीं गाडगे बाबा का सम्मान करते थे। वे गाडगे बाबा से समय-समय पर मिलते रहते थे तथा समाज-सुधार सम्बन्धी मुद्दों पर उनसे सलाह-मशविरा भी करते थे।
आधुनिक भारत के निर्माता बाबासाहेब अम्बेडकर और महान संत गाडगे बाबा के सम्बन्ध के बारे में समाजशास्त्री प्रो. विवेक कुमार जी लिखते हैं कि ”आज कल के बहुजन नेताओं को इन दोनो से सीख लेनी चाहिए।
विशेषकर विश्वविद्यालय एवं कालेज में पढ़े-लिखे आधुनिक नेताओं को, जो सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा समाज-सुधार करने वाले मिशनरी तथा किताबी ज्ञान से परे रहने वाले बहुजन कार्यकर्ताओं को तिरस्कार भरी नजरों से देखते हैं और बस अपने आप में ही मगरूर रहते हैं।
संत गाडगे बाबा और बाबा साहेब अम्बेडकर जी की भेंट –
बाबा साहेब के जीवन में एकमात्र व्यक्ति संत गाडगे महाराज थे, जिनको बाबा साहेब का जीवन्त गुरु कहा जा सकता है। बाबा साहेब ने पहली बार 12 जुलाई सन् 1949 को पण्डरपुर में संत गाडगे महाराज के दर्शन किये। इस अवसर पर गाडगे बाबा महाराज ने बाबा साहेब अम्बेडकर का सार्वजनिक अभिनन्दन किया और उन्हें मराठी अभंग सुनाए।
धोबी,रजक अथवा श्रीवास या कि कन्नौजिया समाज महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग के अन्तर्गत आता है संत गाडगे महाराज इसी समाज से थे लेकिन उनके अनुयायी सभी वर्गों से थे पण्डरपुर महाराष्ट्र का सर्वाधिक मान्यता वाला तीर्थ है जहाँ संत ज्ञानेश्वर की समाधि, आलन्दी से प्रतिवर्ष वारि आती है जिसमें लाखों श्रद्धालु पैदल पण्डरपुर आते हैं।
वहाँ अछूतों के ठहरने की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। संत गाडगे महाराज ने वहाँ एक धर्मशाला अछूतों के लिए बनवायी थी। रोचक बात यह है कि गाडगे बाबा पण्डरपुर में रहते थे लेकिन विट्ठल के दर्शन नहीं करते थे मगर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए झाड़ू हाथ में लेकर अपने शिष्यों के साथ मार्ग साफ करते रहते थे।
बाबा के अनुयायियों की संख्या लाखों में थी उनकी बनवायी धर्मशाला में सभी जाति-वर्ग के लोग बिना भेदभाव के ठहराए जाते थे |
‘‘वह धर्मशाला संत गाडगे महाराज ने सार्वजनिक रूप से बाबा साहेब को सामाजिक प्रकल्पों के लिए पीपुल एजुकेशन सोसाइटी को समर्पित कर दी। इस अवसर का एक प्रसंग बड़ा प्रसिद्ध है |
पण्डरपुर में अपने हजारों अनुयायियों के सामने उन्होंने अपने हजारों शिष्यों से पूछा- तुमने भगवान के दर्शन किये हैं क्या ? सारे श्रद्धालुओं ने हाथ उठा कर कहा- नहीं
तब संत गाडगे महाराज ने पूछा- तुम लोगों को भगवत्दर्शन करना है क्या ?
‘‘सारे श्रद्धालुओं ने एक स्वर में हामी भरी,तब राष्ट्रीय संत गाडगे बाबा ने बाबा साहेब अम्बेडकर के कन्धे पर हाथ रखकर अपने श्रद्धालु अनुयायियों से कहा- यह तुम्हारा भगवान है, तुम्हारे उद्धार के लिए आया है यह बहुत बड़ी साहसिक व क्रान्तिकारी बात थी भरी सभा में एक संत ने बाबा साहेब को श्रद्धा के शिखर पर आसीन कर दिया और बाबा साहेब अम्बेडकर का कथन है कि महात्मा ज्योतिबा फूले के बाद भारतीय इतिहास में मानवता के प्रचारक गाडगे बाबा महानतम संत हैं।