कितना मुश्किल है एक स्त्री का औरत बनना
तमाम दुःखो को सहकर भी एकदम चुप रहना
हर बार सही होकर भी स्वयं को सिद्ध कराना
कितना मुश्किल है एक स्त्री का बेटी बन जाना
सबकुछ जान के भी उसका बिलकुल अनजान होना
बहुत आसान नहीं दुनिया में किसी बच्चे की माँ होना
उसके कहने पर उसी के लिए हँस हँस कर रोना
कितना मुश्किल है एक स्त्री का पूरी तरह से माँ होना
हर गम में भी परेशान होकर ख़ुशी ख़ुशी मुस्कुराना
खुद को मसरूफ रखकर भी हमेशा खाली दिखाना
बात बात पर हर रूठे हुए को भी बड़े प्रेम से मनाना
कितना मुश्किल है एक स्त्री का किसी की पत्नी बन जाना
जैसे हो दुनिया में सारे फ़र्ज़ सिर्फ उसी को निभाना
उसको आता ही नही किसी काम को न में बदलवाना
बस एक ही धर्म हमेशा दूसरों के लिए ही जिया जाना
कितना मुश्किल है एक स्त्री का किसीकी बहू बन जाना
चाहती थी वो भी खुले परिंदों की तरह आसमानों में उड़ना
तोड़ के दुनिया की हर जंजीर अपने सपनो का महल बुनना
एक ख़्वाब उसका भी था अपने मनमुताबिक हमसफर चुनना
पर अफ़सोस बड़ा मुश्किल इस दुनियां में स्त्री का ही होना।
कितना मुश्किल है एक स्त्री का औरत बनना
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