संघ की विचारधारा के अनुरूप योगी आदित्यनाथ संघ के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आदर्श व्यक्ति हैं!

संघ के दृष्टिकोण के अनुसार नरेंद्र मोदी बहुत नरम हैं और अपनी छवि के बारे में भी बहुत चिंतित रहते हैं पर आदित्यनाथ के साथ ऐसा नहीं है और इसीलिए योगी आदित्यनाथ आने वाले कल का चेहरा हैं।

संघ की विचारधारा के अनुरूप योगी आदित्यनाथ संघ के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आदर्श व्यक्ति हैं!
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योगी आदित्यनाथ की दुनिया देखने की नजर में विदेश नीति और कूटनीति का कोई महत्व नहीं है। विधायी बारीकियां समय की बर्बादी हैं और लोकतंत्र भावुकों के लिए है।

एक मिशन को पूरा किया जाना है और संघ को मालूम है कि वह इसे हासिल कर लेगा। उनकी साख बेदाग़ है- वे मुसलमानों से नफ़रत करते हैं और सोचते हैं कि दलितों को अपनी जगह पता होनी चाहिए।

संघ के भविष्य की फेहरिस्त में योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री पद के उपयुक्त चेहरा होंगे; कट्टर हिंदुत्व और अनोखी भाषाशैली योगी की पहचान है।

संघ के दृष्टिकोण के अनुसार नरेंद्र मोदी बहुत नरम हैं और अपनी छवि के बारे में भी बहुत चिंतित रहते हैं पर आदित्यनाथ के साथ ऐसा नहीं है और इसीलिए योगी आदित्यनाथ आने वाले कल का चेहरा हैं।

हाथरस की घटना में पुलिस का व्यवहार लोकतांत्रिक मूल्यों के दमन का पर्याय बना-

हाथरस में दलित किशोरी के साथ बलात्कार और प्रताड़ना कम डरावनी नही थी, पुलिस ने शव को घर ले जाने देने की अपील को खारिज करते हुए रातोंरात सबसे छिपकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया।

फिर जिलाधिकारी द्वारा परिवार को धमकाया जाना, मीडिया के साथ बदसलूकी, विपक्ष के नेताओं के अलोकतांत्रिक बर्ताव, एक सोचें समझे व्यवहार की ओर इशारा करता है।

बलात्कार का आरोप मुख्यमंत्री के जाति विशेष के चार पुरुषों पर है।

https://twitter.com/ivivek_nambiar/status/1312734638687711234

हाल ही में फ़िल्म निर्देशक प्रकाश झा के निर्देशन में एक वेबसीरीज आई है (आश्रम) जिसमें अगड़ी जाति के अहंकार और पुलिस की हृदयहीनता को भी दिखाया गया है।

भारत में पुलिस दुर्भावना से भरी हुई और कानून से बेख़ौफ़ हो सकती है और यूपी में तो विशेष रूप से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में, उनको खुली छूट दे दी गई है, जैसा उस एनकाउंटर में देखा गया, जिसमें अपराधी सरगना विकास दुबे की पूर्वनियोजित तरीके से हत्या कर दी गई!

योगी आदित्यनाथ की समुदाय विशेष के प्रति भावनाओं को शायद हर कोई जानता है-

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ हर मुमकिन तरीके से मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं और सभी तरह के असंतोषों को दबा रहे हैं।

डॉ कफ़ील खान को गोरखपुर अस्पताल हादसे के दौरान, जिसमें कई बच्चों की मौत हो गई, ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी की ओर इशारा करने के कारण, महीनों तक जेल में बंद रखा गया। जिसमें उनके ऊपर रासुका तक लगा दिया गया, कई तरीक़े की यातनाएं उन्हें जेल में दी गई ।

कोई सोच सकता है कि बच्चों की जान बचाने की क़ीमत किसी को इतनी यातनाएं सहकर चुकानी पड़ सकती है?

बाद में कफ़ील खान की माँ द्वारा उनकी जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की जाती है। जिसमें हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उनके ऊपर किये गए जुर्म पर नाराजगी व्यक्त की और रासुका को भी खारिज किया और डॉक्टर कफ़ील खान की जमानत का आदेश दिया।

सरकार में आने के बाद योगी अपने फैसलों से चर्चा मे रहे-

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले अनेक लोगों की संपत्ति जब्त कर ली गई।

उनके पोस्टर शहर के चौराहों पर चस्पा करवा दिए गए यद्यपि हाईकोर्ट ने इसके लिए सरकार को फटकार लगाई और 24 घंटे में पोस्टर हटाने के लिए कहा लेकिन प्रदेश सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में चली गई।

आदित्यनाथ शहरों और अजायबघरों का नाम बदलने के काम में लगातार जुटे हुए हैं और अब कारोबारियों को राज्य में निवेश करने के लिए दावत दे रहे हैं। यहां तक कि कारोबारी जगत के लोग अब उन्हें अच्छी पसंद के मुख्यमंत्री तौर पर देख रहे हैं।

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आखिर, कंपनियों को श्रमिकों को बे-रोकटोक बर्खास्त करने की इजाज़त जो मिल जाएगी।

गुजरात मॉडल को छोड़िये, भविष्य यूपी मॉडल का है-

हमारी नजरों के सामने जो नया चमकीला उत्तर प्रदेश उभर रहा है, उसका दीदार कीजिए-

सवर्ण (उच्च जातीय) असहिष्णु और कारोबारियों का दोस्त।

इससे पहले कि हम इसे जान पाएं, यह भारत के लिए भी एक मॉडल बन जाएगा।

गुजरात मॉडल बीते हुए कल की खबर है;

आने वाला कल उत्तर प्रदेश मॉडल के नाम होगा।

आखिर कैसे की गई गुजरात मॉडल की परिकल्पना?

गुजरात दंगे, जिसमें हज़ार से ज्यादा लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम थे, उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।

जिनको इन दंगों के बारे में ना पता हो तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति जर्नल जमीरउद्दीन शाह ने गुजरात दंगों के ऊपर एक किताब लिखी है “द सरकारी मुसलमान” आप उसे पढ़िए आपको पता लगेगा कि तत्कालीन दंगों में प्रदेश सरकार की कितनी भूमिका रही।

नरेंद्र मोदी एक प्रकार से अछूत बन गए थे। वे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (जिन्होंने दो हफ्ते बाद एक पूरी तरह से अलग राग अलापते हुए अप्रत्यक्ष तौर पर गोधरा ट्रेन को आग लगाने और इस तरह हिंदू प्रतिक्रिया की आग की चिंगारी बनने के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराया था) के हाथों बर्खास्त होते-होते बाल-बाल बचे थे।

मोदी ने अपनी कुर्सी बचा ली, लेकिन भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कई लोगों ने उनका बहिष्कार कर दिया था। यहां तक कि अमेरिका ने उनके वीजा के ऊपर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद में उसी अमेरिका ने बाहें फैलाकर नरेंद्र मोदी का स्वागत किया था।

भारतीय कारोबारी अपनी आलोचना में कटु थे। मार्च 2002 में बैंकर दीपक पारेख ने तकलीफ़ से भरकर कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमने एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में अपना नाम गंवा दिया है (हालांकि बाद में उन्होंने भी अपना सुर बदल लिया)।’

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औद्योगिक जगत की हस्तियां मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ने लगे

2013 में, वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में, शीर्ष कॉर्पोरेट मुखिया नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने के लिए एक दूसरे से होड़ ले रहे थे। मुकेश अंबानी ने कहा, ‘उनके पास एक भव्य विजन है।’

अनिल अंबानी ने ऐलान किया, ‘वे महात्मा गांधी और सरदार पटेल की तरह हैं’। रतन टाटा ने अतिशयोक्ति का सहारा लेते हुए कहा, ‘गुजरात भारत में सबसे अधिक निवेशक-हितैषी राज्य है ‘इसका श्रेय श्री मोदी को जाता है।’

तब तक, वे अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को नुमाया करना भी शुरू कर चुके थे और वे न केवल कारोबारी जगत में बल्कि उन तमाम भारतीयों के बीच भी लोकप्रिय हो रहा थे, जो उनके बारे में केवल अच्छी बातें सुन रहे थे- सुंदर सड़कें, कोई बिजली कटौती नहीं और सभी के लिए शांति और सुरक्षा।

जो नहीं कहा गया, वह यह कि उन्होंने मुसलमानों को अलग-थलग कर दिया था और उन्हें उनकी जगह दिखा दी थी।

जहां तक 2002 का सवाल है, तब तक इसे पूरी तरह से भुला दिया गया और नुक्ताचीनी करने वालों से ‘आगे बढ़ने’ का आग्रह किया गया।

जब 2014 के चुनावों में भारतीय मीडिया ने मोदी का माहौल बनाना शुरू किया

मीडिया ने एक स्वर में नरेंद्र मोदी का समर्थन शुरू किया और साथ ही साथ एक स्वर में कांग्रेस की आलोचना की। नरेंद्र मोदी के हर शब्द को सुर्ख़ियों में जगह दी गई।

सामान्य धारणा है कि मीडिया ने अपनी आत्मा को 2014 के बाद बेचा और मोदी फैन क्लब में शामिल हो गया, लेकिन हकीक़त में यह बहुत पहले हो चुका था।

विश्लेषकों को ज्ञान की प्राप्ति-सी हुई कि वे (मोदी) अब विभाजनकारी मुद्दों पर बात नहीं कर रहे थे और सिर्फ आर्थिक विकास उनकी चिंता के केंद्र में था।

भ्रष्ट सरकार की अगुआई कर रहे मनमोहन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया था।

बेदाग मोदी इसे उबार लेंगे। विदेशी निवेश में तेजी आएगी, नौकरियों की कोई कमी नहीं होगी और भारत एक महाशक्ति बन जाएगा।

ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है और कुशलता की खान मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था मझधार में बिना नाविक के छोड़ दिया है।

जब मोदी के रूप में संघ के एजेंडे को पहचान मिली

यह हमेशा से संघ परिवार का एजेंडा था, जिसे उसने अचूक तरह से अंजाम दिया है।

मोदी को व्यापक मतदाता वर्ग के बीच स्वीकार्य बनाने के लिए उनकी छवि को नए सिरे से गढ़ा जाना ज़रूरी था।

सांप्रदायिक सोच वाला होने के बावजूद कई शहरी भारतीय कट्टर धर्मांध व्यक्ति की उम्मीदवारी शायद स्वीकार नहीं करते। इसलिए एक नया मोदी गढ़ा गया और यह कामयाब रहा।

दिल्ली में मोदी सरकार किसानों और मुस्लिमों के खिलाफ कानूनों को आगे बढ़ा रही है। कारोबारियों के हित नियमों को बदल रही है। विरोधियों के साथ सख्ती के साथ पेश आ रही है।

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