मोदी ने किया अर्थव्यवस्था का बंटाधार, क्या कुछ बोले अंतरराष्ट्रीय अखबार!

मोदी ने किया अर्थव्यवस्था का बंटाधार क्या कुछ बोले अंतरराष्ट्रीय अखबार
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गिरती अर्थव्यवस्था और जीडीपी को लेकर विदेशी अखबारों ने खूब दिखाए तेवर, भारत सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने कल शाम को जीडीपी के आंकड़े जारी कर दिए जिसमें यह नकारात्मक रूप से 23.9 फीसदी रही है।

भारत मे अर्थव्यवस्था के इतने बुरे दिन बीते दो दशकों में शायद ही रहे हों। जानकारों की माने तो 1996 के बाद अर्थव्यवस्था में इतनी भारी गिरावट देखने को मिल रही है।

इसका प्रमुख कारण कोरोना संक्रमण और उसके बाद देश भर में लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन को माना जा रहा है।

”2025 तक अर्थव्यवस्था को 5,000 करोड़ बनाने का सपना अब पूरा होता नहीं दिख रहा है।”

एक समय में तेजी से तरक्की करती भारत की अर्थव्यवस्था पूरी दुनिया के लिए खुशखबरी का सबब थी, लेकिन नए आंकड़े जारी होने के बाद दुनियाभर के तमाम अखबारों ने अपने यहां भारत की जीडीपी से जुड़ी खबर को प्रमुखता से जगह दी है।

फ़ाइनेंशियल टाइम्स अख़बार का शीर्षक है ‘भारतीय अर्थव्यवस्था एक तिमाही के बराबर सिकुड़ी’

अख़बार लिखता है कि भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस की मार से पहले ही कमज़ोर हालत में थी लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लॉकडाउन में मैन्युफ़ैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन जैसे उद्योगों पर बड़ा असर डाला और व्यावसायिक गतिविधियां तकरीबन ठप्प पड़ गईं और साथ में यह भी लिखा कि आर.बी.आई. के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इंटरव्यू के दौरान बेहद विश्वास से कहा था कि आर.बी.आई. कमज़ोर आर्थिक स्थिरता या बैंकिंग प्रणाली को महामारी के झटके से बचा सकता है, इसमें अगले स्तर का आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाने का अनुमान लगाया गया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने पांच ट्रिलियन इकोनॉमी का दिया था लक्ष्य

“प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वो 2024 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 5,000 करोड़ का बनाना चाहते हैं।

2024 में आम चुनाव हैं और संभवतः वो तीसरी बार चुनाव लड़ें. 2019 में भारत की जीडीपी 2900 करोड़ की थी जो अमरीका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी।

हालांकि, कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था 10 फ़ीसदी छोटी हो जाएगी.”

अमरीकी मीडिया हाउस सी.एन.एन. ने अपने यहां ‘भारतीय अर्थव्यवस्था रिकॉर्ड रूप से सबसे तेज़ी से सिकुड़ी’ शीर्षक से ख़बर प्रकाशित करी है।

इस ख़बर में कैपिटल इकोनॉमिक्स के शीलन शाह कहते हैं कि इसके कारण अधिक बेरोज़गारी, कंपनियों की नाकामी और बिगड़ा हुआ बैंकिंग सेक्टर सामने आएगा जो कि निवेश और खपत पर भारी पड़ेगा।

मोदी के वादों को खड़ा किया कटघरे में

जापान के बिजनेस अख़बार निकेई एशियन रिव्यू में भारतीय वित्त आयोग के पूर्व सहायक निदेशक रितेश कुमार सिंह ने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है, “नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को जर्जर बनाया.”

इसमें यह विशेष रूप से लिखा गया कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यापार समर्थित छवि होने के बावजूद वो अर्थव्यवस्था संभालने में अयोग्य साबित हो रहे हैं, 2025 तक अर्थव्यवस्था को 5,000 करोड़ बनाने का सपना अब पूरा होता नहीं दिख रहा है।

“भारत के सबसे आधुनिक औद्योगिक शहर से आने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था कि वो अर्थव्यवस्था सुधारेंगे और हर साल 1.2 करोड़ नौकरियां पैदा करेंगे। छह साल तक दफ़्तर से आशावाद की लहर चलाने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था जर्जर हो गई है. जिसमें जीडीपी चार दशकों में पहली बार इतनी गिरी है और बेरोज़गारी अब तक के चरम पर है. विकास के बड़े इंजन, खपत, निजी निवेश या निर्यात ठप्प पड़े हैं. ऊपर से यह है कि सरकार के पास मंदी से बाहर निकलने और ख़र्च करने की क्षमता नहीं है.”

नोटबंदी और जी एस टी के कारण हालात हुए और बेक़ाबू

अर्थव्यवस्था के नीचे जाने की वजह जीएसटी के अलावा, एफ़डीआई, 3600 उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाना और प्रधानमंत्री मोदी का सिर्फ़ कुछ ही नौकरशाहों पर यकीन करना बताया गया है

“मोदी ने विनाशकारी नोटबंदी की घोषणा की थी जिसका मक़सद काले धन को समाप्त करना था. इसने अराजकता का माहौल बनाया, इस योजना ने लाखों किसानों और मंझोले एवं छोटे उद्योगों के मालिकों को तबाह कर दिया. हालांकि, उनके समर्थकों का कहना था कि यह सब थोड़े समय के लिए है और भ्रष्टाचार से लड़ने में यह आगे फ़ायदा देगा.”

गलत नीतियों के कारण आंकड़ो से कहीं अधिक अर्थव्यवस्था को नुकसान

अर्थव्यवस्था के आंकड़ों के मामले में भारत की तस्वीर कुछ अलग है क्योंकि यहां अधिकतर लोग ‘अनियमित’ रोज़गार में लगे हैं जिसमें काम के लिए कोई लिखित क़रार नहीं होता और अकसर ये लोग सरकार के दायरे से बाहर होते हैं, इनमें रिक्शावाले, टेलर, दिहाड़ी मज़दूर और किसान शामिल हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में सबसे बुरी तरह बिगड़ी है। अमरीका की अर्थव्यवस्था में जहां इसी तिमाही में 9.5 फ़ीसदी की गिरावट है, वहीं जापान की अर्थव्यवस्था में 7.6 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश की अर्थव्यवस्था कुछ ही सालों पहले 8 फ़ीसदी की विकास दर से बढ़ रही थी जो दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक थी लेकिन कोरोना वायरस महामारी से पहले ही इसमें गिरावट शुरू हुई।

उदाहरण के लिए पिछले साल अगस्त में कार बिक्री में 32 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई जो दो दशकों में सबसे अधिक थी।

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सोमवार को आए आंकड़ों में उपभोक्ता ख़र्च, निजी निवेश और आयात बुरी तरह प्रभावित हुए हैं

व्यापार, होटल और ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्र में 47 फ़ीसदी की गिरावट आई है. एक समय भारत का सबसे मज़बूत रहा निर्माण उद्योग 39 फ़ीसदी तक सिकुड़ गया है।

अख़बार लिखता है कि सिर्फ़ कृषि क्षेत्र से ही अच्छी ख़बर आई है जो मानसून की अच्छी बारिश के कारण 3 फ़ीसदी से 3.4 फ़ीसदी के दर से विकसित हुआ है।

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