जोरदार हंगामे के बाद राज्यसभा से दो कृषि विधेयक ध्वनि मत से पारित!

विधेयकों के पारित होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जताते हुए ट्वीट कर कहा कि एमएसपी की व्यवस्था पूर्व की भांति जारी रहेगी।

जोरदार हंगामे के बाद राज्यसभा से दो कृषि विधेयक ध्वनि मत से पारित!
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विपक्ष ने पूछा एमएसपी के प्रति जवाबदेही कौन तय करेगा?

आज राज्यसभा में जोरदार हंगामे के बाद विपक्षी सदस्यों ने एक और जहां बहुत बवाल काटा तो दूसरी ओर कृषि सुधार से संबंधित दो बिल राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित हो गए हैं। इस दौरान विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया।

इसके बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने ट्वीट करते हुए कहा देश में कृषि सुधार के लिए दो महत्वपूर्ण विधेयक, कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 को आज राज्यसभा में पारित किया गया।

इसी हंगामे के बीच कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 और कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020 पारित किए गए।

विधेयकों के पारित होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जताते हुए ट्वीट कर कहा कि एमएसपी की व्यवस्था पूर्व की भांति जारी रहेगी।

मैं पहले भी कहा चुका हूं और एक बार फिर कहता हूं:

MSP की व्यवस्था जारी रहेगी।

सरकारी खरीद जारी रहेगी

हम यहां अपने किसानों की सेवा के लिए हैं। हम अन्नदाताओं की सहायता के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करेंगे।

इसी के साथ प्रधानमंत्री ने लिखा, “हमारे कृषि क्षेत्र को आधुनिकतम तकनीक की तत्काल जरूरत है, क्योंकि इससे मेहनतकश किसानों को मदद मिलेगी। अब इन बिलों के पास होने से हमारे किसानों की पहुंच भविष्य की टेक्नोलॉजी तक आसान होगी। इससे न केवल उपज बढ़ेगी, बल्कि बेहतर परिणाम सामने आएंगे। यह एक स्वागत योग्य कदम है।”

राज्यसभा में चर्चा के दौरान विपक्ष ने खूब किया हंगामा

इसके पहले विपक्ष के हंगामे को देखते हुए राज्य सभा को थोड़ी देर के लिए स्थगित करना पड़ा था। टीएमसी नेता डेरिक ओ ब्रायन ने उपसभापति के सामने जाकर रूल बुक दिखाने की कोशिश भी की थी।

नेता प्रतिपक्ष ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा, “नियमों के मुताबिक सदन का समय आम राय पर ही बढ़ाया जा सकता है न कि सत्ता पक्ष की संख्या के आधार पर।”

राहुल गांधी ने कृषि विधेयकों को बताया काला कानून

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दोनों विधेयकों का विरोध करते हुए ट्वीट किया, “मोदी जी किसानों को पूंजीपतियों का ग़ुलाम बना रहे हैं जिसे देश कभी सफल नहीं होने देगा।”

मोदी सरकार के कृषि-विरोधी ‘काले क़ानून’ से किसानों को:

1. APMC/किसान मार्केट ख़त्म होने पर MSP कैसे मिलेगा?
2. MSP की गारंटी क्यों नहीं?

मोदी जी किसानों को पूँजीपतियों का ‘ग़ुलाम’ बना रहे हैं जिसे देश कभी सफल नहीं होने देगा।

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि ये विधेयक देश के सबसे अंधकारमय क़ानून माने जाएंगे।

उन्होंने कहा, “मोदी सरकार ने देश के किसान और उनकी रोजी-रोटी पर आक्रमण किया है। ये देश के सबसे अंधकारमय क़ानून माने जाएंगे। किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलेगा कैसे? साढ़े 15 करोड़ किसानों को एमएसपी देगा कौन? अगर बड़ी कंपनियों ने एमएसपी पर फ़सल नहीं ख़रीदी तो उसकी गारंटी कौन देगा? आपने एमएसपी की अनिवार्यता को क़ानून के अंदर क्यों नहीं लिखा ?”

जेपी नड्डा बोले,बिचौलियों के चंगुल से किसानों की मुक्ति

वहीं बीजेपी अध्यक्ष ने इन विधेयकों के पारित होने पर कहा, “संसद द्वारा पारित उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण), कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन एवं कृषि सेवा पर करार और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक सही मायनों में किसानों को अपने फ़सल के भंडारण, और बिक्री की आज़ादी देंगे और बिचौलियों के चंगुल से उन्हें मुक्त करेंगे।

उन्होंने कहा, “अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। किसानों को उपज बेचने का विकल्प देकर उन्हें सशक्त बनाया गया है। बिक्री लाभदायक मूल्यों पर करने से संबंधित चयन की सुविधा का भी लाभ किसान ले सकेंगे। इससे जुड़ी किसी भी समस्या का समाधान किसान के घर पर ही उपलब्ध होगा।

इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस पर किसानों के लिए कभी रिफॉर्म नहीं करने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा, “कांग्रेस ने किसानों के सशक्तिकरण के लिए कभी कोई रिफॉर्म्स नहीं किया। उसके पास न इसके लिए सोच थी, न ही इच्छाशक्ति। किसानों और ग़रीबों को गुमराह कर राजनीति करने की कांग्रेस की पुरानी आदत रही है। कांग्रेस के दोहरे चरित्र से किसान वाकिफ हैं, वे अब उसके बहकावे में आने वाले नहीं हैं।

आखिर क्या है इन दो विधेयकों में?

कृषि विधेयकों को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में कृषि से जुड़े विधेयकों को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। किसान इनका विरोध कर रहे हैं, विपक्ष सरकार पर निशाना साध रही है, लेकिन सरकार इन्हें किसानों के हित वाला बता रही है।

पहला बिल है कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020

इस बिल में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रावधान है जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी से बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी होगी, प्रावधानों में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। मार्केटिंग और ट्रांस्पोर्टेशन पर ख़र्च कम करने की बात कही गई हैं।

दूसरा बिल है कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020

इस विधेयक में कृषि क़रारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है। ये बिल कृषि उत्‍पादों की बिक्री, फ़ार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्‍त करता है, अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, तकनीकी सहायता और फ़सल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा और फ़सल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।

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किसान संगठनों का आरोप है कि नए क़ानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूँजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका सीधा नुक़सान किसानों को होगा।

पंजाब में होने वाले गेहूँ और चावल का सबसे बड़ा हिस्सा या तो पैदा ही एफ़सीआई द्वारा किया जाता है, या फिर एफ़सीआई उसे ख़रीदता है। साल 2019-2020 के दौरान रबी के मार्केटिंग सीज़न में, केंद्र द्वारा ख़रीदे गए क़रीब 341 लाख मिट्रिक टन गेहूँ में से 130 लाख मिट्रिक टन गेहूँ की आपूर्ति पंजाब ने की थी।

क्या डर है प्रदर्शनकारियो के

प्रदर्शनकारियों को यह डर है कि एफ़सीआई अब राज्य की मंडियों से ख़रीद नहीं कर पाएगा, जिससे एजेंटों और आढ़तियों को क़रीब 2.5% के कमीशन का घाटा होगा. साथ ही राज्य भी अपना छह प्रतिशत कमीशन खो देगा, जो वो एजेंसी की ख़रीद पर लगाता आया है।
कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा की माने तो किसानों की ये चिंता जायज़ है। उन्होंने कहा, “किसानों को अगर बाज़ार में अच्छा दाम मिल ही रहा होता तो वो बाहर क्यों जाते।
देवेंद्र के मुताबिक इसका सबसे बड़ा नुक़सान आने वाले समय में ये होगा कि धीरे-धीरे मंडियां ख़त्म होने लगेंगी।
प्रदर्शनकारी मानते हैं कि अध्यादेश जो किसानों को अपनी उपज खुले बाज़ार में बेचने की अनुमति देता है, वो क़रीब 20 लाख किसानों- ख़ासकर जाटों के लिए तो एक झटका है ही।

साथ ही मुख्य तौर पर शहरी कमीशन एजेंटों जिनकी संख्या तीस हज़ार बताई जाती है, उनके लिए और क़रीब तीन लाख मंडी मज़दूरों के साथ-साथ क़रीब 30 लाख भूमिहीन खेत मज़दूरों के लिए भी यह बड़ा झटका साबित होगा।

सरकार का क्या है तर्क?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियां विधेयक को लेकर दुष्प्रचार कर रही हैं, मोदी ने इसे “आज़ादी के बाद किसानों को किसानी में एक नई आज़ादी” देने वाला विधेयक बताया।

उन्होंने कहा कि किसानों को एमएसपी का फ़ायदा नहीं मिलने की बात गलत है।

मोदी ने कहा कि विधेयक में वही चीज़ें हैं जो देश में दशकों पर राज करने वालों ने अपने घोषणापत्र में लिखी थी। मोदी ने कहा कि यहां “विरोध करने के लिए विरोध” हो रहा है।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए बिहार की कई परियोजनाओं का शुभारंभ करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “जो लोग दशकों तक देश में शासन करते रहें हैं, सत्ता में रहे हैं, देश पर राज किया है, वो लोग किसानों को भ्रमित कर रहे हैं, किसानों से झूठ बोल रह हैं।

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उन्होंने कहा बिचौलिए जो किसानों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा खा जाते थे, उनसे बचने के लिए ये विधेयक लाना जरूरी था।

इसके पहले ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था, “किसानों के पास मंडी में जाकर लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने की विवशता क्यों, अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा.”

” करार अधिनियम से कृषक सशक्त होगा व समान स्तर पर एमएनसी, बड़े व्यापारी आदि से करार कर सकेगा तथा सरकार उसके हितों को संरक्षित करेगी। किसानों को चक्कर नहीं लगाना पड़ेंगे, निश्चित समयावधि में विवाद का निपटारा एवं किसान का भुगतान सुनिश्चित होगा”

उन्होंने कहा कि नए प्रावधानों के मुताबिक़ किसान अपनी फ़सल किसी भी बाज़ार में अपनी मनचाही क़ीमत पर बेच सकेगा। इससे किसानों को अपनी उपज बेचने के अधिक अवसर मिलेंगे।

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