बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। 6 वी शताब्दी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना हुई थी। बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म से पहले इसकी उत्पत्ति हुई थी। इन दोनों धर्मो के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इस धर्म को मानने वाले सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और कई देशों में रहते हैं।
आख़िर क्यों आंदोलन कर रहे है भारतीय बौद्ध –
डॉ अम्बेडकर के गुजरने के बाद बौद्ध धर्म की दशा भारत में बिगड़ती ही चली गयी। एक हिन्दू बहुल देश होने के कारण बौद्धों को भारत में उनका सही स्थान नहीं मिल पाया। डॉ अम्बेडकर के द्वारा बोैंद्धो के लिए देखा गया सपना कही न कही आज भी अधूरा है। बोैंद्धो की माने तो उनकी आज़ादी भारतीय संविधान के बिना अधूरी है। जिस तरह से हिन्दू पर्सनल लॉ हिन्दुओ का प्रमाण है , उस तरह से बोैंद्धो का उनके बौद्ध होने का कोई भी प्रमाण नहीं है उनका कोई पर्सनल लॉ न होने के कारण वह आज भी हिन्दू ही कहलाते है। इसलिए वह यह आंदोलन बौद्ध की पहचान पाने के लिए कर रहे हैं।
14 अक्टूबर 1956 विजयदशमी के दिन डॉ अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म से आज़ादी पाने के लिए अपने अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएँ दे कर हिन्दू धर्म से अलग किया था। इन 22 प्रतिज्ञाओं के आधार पर बौद्ध धर्म का कानून बनाने के लिए डॉ अम्बेडकर को समय नहीं मिला और वह हमारे बीच से चले गए। इसलिए 60 साल बाद भी बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म में समाहित एक पंथ है। बिना बौद्ध पर्सनल लॉ बने बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म से अलग नहीं हो सकता।
दिल्ली में विराट धरना –
माननीय उच्च न्यायालय ने 03/01/2017 के निर्देशों में एवं भारतीय संविधान समीक्षा आयोग के अध्यक्ष जस्टिश एम एन वेन्कटचेलैया ने 2002 को प्रस्तुतु रिपोर्ट में अनुछेद 25(2)(ब) को संशोधित करके स्वतंत्र बौद्ध कानून बनाने की सिफ़ारिश की है। परन्तु भारत सरकार ने इस पर कोई कार्य नहीं किया और अभी तक बोैंद्धो के लिए कानून नहीं बनाया। बौद्ध एक्शन कमेटी के द्वारा बोेंद्धो का पर्सनल कानून भारत सरकार को सौप दिया है , परन्तु भारत सरकार की हिन्दूवादी मानसिकता के कारण कोई कार्यवाही नहीं की है। अतः मजबूरन बोद्धो को अपना पर्सनल कानून पास करने के लिए 23 से 25 अप्रैल तक डॉ अम्बेडकर भवन नयी दिल्ली में विराट धरना दिया। जिससे प्रभावित हो कर महाराट्र और नयी दिल्ली राज्य सरकारो ने बौद्ध पर्सनल लॉ बिल लेन के लिए विचार करना आरंभ कर दिया है। परन्तु सभी भारतीयों के लिए केंद्र सरकार द्वारा संसद में बौद्ध कानून पास होना आवश्यक है और बौद्धों को आंदोलन कर के और भारत सरकार को बौद्ध कानून पास करने के लिए मजबूर करना है।
इस आंदोलन के लिए उन्होंने पूरे भारत के बोैंद्धो से आग्रह किया है कि वह एक होकर संघर्ष करें। इस विषय को ध्यान में रख कर उत्तर प्रदेश राज्य का बौद्ध प्रतिनिधि महासम्मेलन का आयोजन लखनऊ में 09/12/2018 को चारबाग स्थित रविंद्रालय ऑडिटोरियम में किया जा रहा है। जिसमे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में बौद्ध सदस्या एडवोकेट सुलेखाबाई कुम्हारे एवं अध्यक्ष , उत्तर प्रदेश राज्य अल्पसंखयक आयोग लखनऊ एवं अन्य पड़ोसी राज्यों के बौद्ध संगठनो के प्रतिनिधियों के साथ उत्तर प्रदेश के बौद्ध संगठनो के प्रतिनिधि भाग लेंगें।
बौद्ध पर्सनल लॉ संगठनों के कुछ प्रमुख नारे –