आखिर सरदार पटेल को छोड़कर गाँधी ने नेहरू को देश का प्रधानमंत्री क्यों चुना ?

आखिर पटेल को छोड़कर गाँधी ने नेहरू को देश का प्रधानमंत्री क्यों चुना ?
Reading Time: 7 minutes

आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की जन्मजयंती हैं। पूरा देश उन्हें याद कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।लेकिन एक सवाल लोगों के दिलों जहन में आज भी कौंधता है की पटेल को छोड़कर गाँधी जवाहरलाल नेहरू को देश का अंतरिम प्रधानमंत्री क्यों बनाया ?

महात्मा गांधी अगर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में हस्तक्षेप न करते तो सरदार वल्लभ भाई पटेल स्वतंत्र पहली भारतीय सरकार के अंतरिम प्रधानमंत्री होते। जिन्ना पाकिस्तान की जिद पर अड़े थे।

ब्रितानी हुकूमत ने कांग्रेस को अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। जिस समय आज़ादी मिली, पटेल 71 साल के थे जबकि नेहरू सिर्फ 56 साल के। देश उस वक्त बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा था।कांग्रेस चाहती थी कि देश की कमान पटेल के हाथों में दी जाए क्योंकि वे जिन्ना से बेहतर मोलभाव कर सकते थे, लेकिन गांधी ने नेहरू को चुना।

गांधी और सरदार पटेल के बीच कैसे संबंध थे ?

आज़ादी के 77 के बाद भी यह सवाल भारत की राजनीति में हमेशा चर्चा में रहा है। की गांधी ने पटेल की जगह नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री चुना तो यकीनन तौर पर गांधी और पटेल के संबंध ठीक नहीं रहे होंगे!

इन बातों के जवाब को तलाशने के लिए हमें ब्रिटिश राज के अंतिम वर्षों की राजनीति और गांधी के साथ नेहरू और पटेल के रिश्तों की बारीकियों समझना होगा। वल्लभ भाई पटेल से गांधी की मुलाकात नेहरू से पहले हुई थी। उनके पिता झेवर भाई ने 1857 के विद्रोह में हिस्सा लिया था।

तब वे तीन साल तक घर से गायब रहे थे।1857 के विद्रोह के 12 साल बाद गांधी जी का जन्म हुआ और 18 साल बाद 31 अक्टूबर 1875 में पटेल का यानी पटेल गांधी से केवल छह साल छोटे थे जबकि नेहरू पटेल से 14-15 साल छोटे थे।उम्र में छह साल का फर्क कोई ज्यादा नहीं होता इसलिए गांधी और पटेल के बीच दोस्ताना बर्ताव था।

पटेल लंदन के उसी लॉ कॉलेज मिडिल टेंपल से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे, जहाँ से गांधी, जिन्ना, उनके बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल और नेहरू ने बैरिस्टर की डिग्रियां ली थीं।उन दिनों वल्लभभाई पटेल गुजरात के सबसे महँगे वकीलों में से एक हुआ करते थे। पटेल ने पहली बार गाँधी को गुजरात क्लब में 1916 में देखा था।

समय के साथ साथ खुद को बदल रहा है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ!

और सरदार पटेल अपनी दौड़ती हुई वकालत छोड़ कर गांधी के कायल हो गए-

सरदार पटेल

ये बात है कोई साल 1916 की गर्मियों में गांधी गुजरात क्लब में आए। उस समय पटेल अपने साथी वकील गणेश वासुदेव मावलंकर के साथ ब्रिज खेल रहे थे।मावलंकर गांधी से बहुत प्रभावित थे। वो गांधी से मिलने को लपके। पटले ने हंसते हुए कहा, ”मैं अभी से बता देता हूं कि वो तुमसे क्या पूछेगा?

वो पूछेगा- गेहूं से छोटे कंकड़ निकालना जानते हो कि नहीं? फिर वो बताएगा कि इससे देश को आज़ादी किन तरीकों से मिल सकती है।”लेकिन बहुत जल्द ही पटेल की गांधी का लेकर धारणा बदल गई।चंपारण में गांधी के जादू का उन पर जबरदस्त असर हुआ। वो गांधी से जुड़ गए। खेड़ा का आंदोलन हुआ तो पटेल गांधी के और करीब आ गए।

असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो पटेल अपनी दौड़ती हुई वकालत छोड़ कर पक्‍के गांधी भक्त बन गए और इसके बाद हुआ बारदोली सत्याग्रह जिसमें पटेल पहली बार सारे देश में मशहूर हो गए।ये 1928 में एक प्रमुख किसान आंदोलन था।

प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी कर दी। पटेल इस आंदोलन के नेता बने और ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा।इसी आंदोलन के बाद पटेल को गुजरात की महिलाओं ने ‘सरदार’ की उपाधि दी। 1931 के कांग्रेस के कराची अधिवेशन में पटेल पहली और आखिरी बार पार्टी के अध्‍यक्ष चुने गए। पहली बार वह ‘गुजरात के सरदार’ से ‘देश के सरदार’ बन गए।

गांधी चाहते थे की नेहरू चौथी बार कांग्रेस का अध्यक्ष बने-

देश को 15 अगस्त 1947 को आज़ाद होना था लेकिन उससे एक साल पहले ब्रिटेन ने भारतीय हाथों में सत्ता दे दी थी। अंतरिम सरकार बननी थी। तय हुआ था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही प्रधानमंत्री बनेगा।

उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आज़ाद थे। वो पिछले छह साल से इस पद पर थे। अब उनके जाने का वक्त हो गया था।तब तक गांधी, नेहरू के हाथ में कांग्रेस की कमान देने का मन बना चुके थे।

20 अप्रैल 1946 को उन्होंने मौलाना को पत्र लिखकर कहा कि वे एक वक्तव्य जारी करें कि अब ‘वह अध्‍यक्ष नहीं बने रहना चाहते हैं।’गांधी ने बिना लागलपेट पर ये भी साफ़ कर दिया कि ‘अगर इस बार मुझसे राय मांगी गई तो मैं जवाहरलाल को पसंद करूंगा, इसके कई कारण हैं। उनका मैं ज़िक्र नहीं करना चाहता।

योगी आदित्यनाथ ने बदला आगरा के मुगल म्यूजियम का नाम,लोगों ने कहा योगी को नाम बदलने के अलावा नहीं आता कोई काम

कमेटियों ने सरदार का नाम प्रस्तावित किया लेकिन गांधी ने नेहरू को-

मौलाना आजाद के पत्र लिखने के बाद पूरे कांग्रेस में ख़बर फैल गई कि गांधी नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। 29 अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पार्टी का नया अध्यक्ष चुना जाना था जिसे कुछ महीने बाद ही अंतरिम सरकार में भारत का प्रधानमंत्री बनना था।

इस बैठक में महात्मा गांधी के अलावा नेहरू, सरदार पटेल, आचार्य कृपलानी, राजेंद्र प्रसाद, ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान के साथ कई बड़े कांग्रेसी नेता शामिल थे।परपंरा के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियाँ करती थीं और 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया था।

बची हुई तीन कमेटियों ने आचार्य जेबी कृपलानी और पट्टाभी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया था।किसी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने अध्यक्ष पद के लिए नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया था जबकि सारी कमेटियाँ अच्छी तरह जानती थी कि गांधी ने‌हरू को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं।

मसौदा तैयार हुआ गाँधी और पटेल की सहमति से अध्यक्ष बने नेहरू-

आखिर पटेल को छोड़कर गाँधी ने नेहरू को देश का प्रधानमंत्री क्यों चुना ?

कॉंग्रेस पार्टी के महासचिव कृपलानी जानते थे गाँधी क्या चाहते हैं। इसलिए उन्होंने नया प्रस्ताव तैयार कर नेहरू का नाम प्रस्तावित किया। उस पर सबने दस्तख़त किए। पटेल ने भी दस्तख़त किए। अब अध्यक्ष पद के दो उम्मीदवार थे। एक नेहरू और दूसरे पटेल।

नेहरू तभी निर्विरोध अध्यक्ष चुने जा सकते थे जब पटेल अपना नाम वापस लें। कृपलानी ने एक कागज पर उनकी नाम वापसी की अर्जी लिखकर दस्तख़त के लिए पटेल की तरफ बढ़ा दी।गांधी ने नेहरू की तरफ़ देखा और कहा, ”जवाहर वर्किंग कमेटी के अलावा किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने तुम्हारा नहीं सुझाया है।

तुम्हारा क्या कहना है?”नेहरू ख़ामोश रहे। वहां बैठे सारे लोग ख़ामोश थे। गांधी को शायद उम्मीद थी कि नेहरू कहेंगे, तो ठीक है आप पटेल को ही मौका दें। लेकिन नेहरू ने ऐसा कुछ नहीं कहा। अब अंतिम फैसला गांधी को करना था।गांधी ने वो कागज फिर पटेल को लौटा दिया। इस बार सरदार ने उस पर दस्तख़त कर दिए। कृपलानी ने ऐलान किया,”तो नेहरू निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाते हैं।”

तो सवाल है इतने विरोधों के बावजूद गांधी ने पटेल की जगह नेहरू को क्यों चुना?

सरदार पटेल
फोटो सोर्स – indiatvnews.com

ये महात्मा गांधी ही कर सकते थे। कांग्रेस का अध्यक्ष कौन बनेगा, ये फ़ैसला एक ऐसा आदमी कर रहा था जो 12 साल पहले ही कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे चुका था लेकिन कांग्रेसियों के लिए ये बड़ी बात नहीं थी क्योंकि साल 1929, 1936, 1939 के बाद ये चौथा मौका था

जब पटेल ने गाँधीजी के कहने पर अध्यक्ष पद से अपना नामांकन वापस लिया था। जाने-माने पत्रकार दुर्गादास ने अपनी किताब ‘इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरू’ में लिखा है, ”राजेन्द्र प्रसाद ने मुझसे कहा कि ‘गांधीजी ने ग्लैमरस नेहरू के लिए अपने विश्वसनीय साथी का बलिदान कर दिया। और मुझे डर है कि अब नेहरू अंग्रेज़ों के रास्ते पर आगे बढ़ेंगे।

”राजेन्द्र बाबू की ये प्रतिक्रिया जब दुर्गादास जी ने गाँधी को बताई तो वे हँसे और उन्होंने राजेन्द्र की सराहना करते हुए कहा कि नेहरू आने वाली ढेर सारी समस्याओं का सामना करने के लिए ख़ुद को तैयार कर चुके हैं।सब जानते थे कि पटेल के पाँव ज़मीन पर मजबूती से स्‍थापित हैं।

वो जिन्ना जैसे लोगों से उन्हीं की ज़ुबान में मोलभाव कर सकते हैं। उनसे जब पत्रकार दुर्गादास ने ये सवाल पूछा तो ‘गांधी ने माना कि बतौर कांग्रेस अध्यक्ष पटेल एक बेहतर ‘नेगोशिएटर’ और ‘ऑर्गनाइज़र’ हो सकते हैं। लेकिन उन्हें लगता है कि नेहरू को सरकार का नेतृत्व करना चाहिए।”जब दुर्गादास ने गांधी से पूछा कि आप ये गुण पटेल में क्यों नहीं पाते हैं?

तो इस पर गांधी ने हंसते हुए कहा, “जवाहर हमारे कैम्प में अकेला अंग्रेज़ है।गांधी को लगा कि दुर्गादास उनके जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो उन्होंने कहा, ”जवाहर दूसरे नम्बर पर आने के लिए कभी तैयार नहीं होंगे। वो अंतराष्ट्रीय विषयों को पटेल के मुकाबले अच्छे से समझते हैं। वो इसमें अच्छी भूमिका निभा सकते हैं।

ये दोनों सरकारी बेलगाड़ी को खींचने के लिए दो बैल हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय कामों के लिए नेहरू और राष्ट्र के कामों के लिए पटेल होंगे। दोनों गाड़ी अच्छी खींचेंगे।

गांधी के उत्तराधिकारी के तौर पर सभी नेहरू को ही जानते थे-

बाहर की दुनिया में नेहरू का नाम आजादी की लड़ाई में गांधी के बाद दूसरे नम्बर पर था। न केवल यूरोपीय लोग बल्कि अमरीकी भी नेहरू को महात्मा गांधी का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानते थे जबकि पटेल के बारे ऐसा बिल्कुल नहीं था।

पटेल को शायद ही कोई विदेशी गाँधी का उत्तराधिकारी मानता हो। लंदन के कहवा घरों में बुद्धिजीवियों के बीच नेहरू की चर्चा होती थी। तमाम वायसराय और क्रिप्स समेत कई अंग्रेज अफसर नेहरू के दोस्त थे। उनसे नेहरू की निजी बातचीत होती थी।

नेहरू और पटेल दोनों एक दूसरे समानान्तर नहीं थे गांधी के नजरिए से वह दोनों एक सिक्के के दो पहलू थे। दोनों में और भी बड़े अंतर थे जो राजनीति में बहुत मायने रखते हैं।

नेहरू एक आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे। उन्हें अंग्रेज़ी और हिन्दी में बोलने और लिखने की कमाल की महारत हासिल थी। नेहरू उदार थे और उनका खुलापन उन्हें लोकप्रिय बनाता था।

नेहरू जोड़तोड़ में बिलकुल माहिर नहीं थे। वे कांग्रेस में भी अलग-थलग रहने वाले नेता थे। जेल में बंद रहकर वे अपने साथी कांग्रेसियों से गपशप करने की जगह अपनी कोठरी में अकेले बैठ कर ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ जैसी किताबें लिखते थे।

उनकी अभिजात्य वर्ग की अपनी एक अलग दुनिया थी।वहीं, पटेल राजनीतिक तंत्र का हर पुर्जा पहचानते थे। जोड़-तोड़ करने में महिर थे। यही वजह थी कि प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी में उन्हें 15 में से 2 कमेटियों का समर्थन मिला।

| Voxy Talksy Hindi |
| Voxy Talksy Youtube |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here