वो मसालों की दुनिया का बेताज बादशाह था हर जबान पर जैसे उसका ही स्वाद था। सुनहरी मूठ वाली नफीस छड़ी और राजस्थानी साफे को उसने अपने कॉस्टयूम का जरूरी हिस्सा बनाया और अपना इंटरव्यू लेने वाले हर शख्स को बार-बार बतलाया कि वह पांचवीं फेल है।
उसकी लोकप्रियता ऐसी थी कि सरकार ने उसे पद्मभूषण से नवाजा। जब लोग उनके मरने की अफवाह उड़ाया करते थे तब वह अपनी कंपनी से 21 करोड़ की तनख्वाह ले रहे होते थे।
पार्टीशन के बाद सियालकोट से दिल्ली के करोलबाग में आ बसने,तांगे पर रेलवे स्टेशन की सवारियां ढोने और थोड़ी सी पूंजी से मसालों का कारोबार शुरू करने की उनके जीवन से जुड़ी कहानियां ज्यादातर उत्तर भारतीयों की निगाह से कभी न कभी जरूर गुज़री होंगी।
कोरोना से जीत गये लेकिन मौत से हार गये-
एमडीएच मसाले कंपनी की स्थापना करने वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी का निधन हो गया है। वो 98 साल के थे।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार गुरुवार सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा था जिससे उनकी मौत हो गई। बीते तीन सप्ताह से वो अस्पताल में भर्ती थे। महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म साल 1923 में महाशय चुन्नीलाल गुलाटी और चन्नन देवी के घर सियालकोट में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है।
उन्होंने स्कूल की पढ़ाई तो शुरू की लेकिन पांचवीं का इम्तिहान वो नहीं दे पाए। साल 1933 में उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और अपने पिता की मदद से नया कारोबार शुरू करने की कोशिश करने लगे। खुद अपनी आत्मकथा में वो कहते हैं कि उन्होंने ‘पौने पांच क्लास तक की’ ही पढ़ाई की है।
उन्होंने पिता की मदद से आईनों की दुकान खोली, फिर साबुन और फिर चावल का कारोबार किया। लेकिन इन कामों में मन नहीं लगने पर बाद में वो अपने पिता के मसालों के कारोबार में हाथ बंटाने लगे।
विज्ञापनों में भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दिया-
भारत में एमडीएच मसालों के विज्ञापनों और डिब्बों पर उनकी तस्वीर की वजह से उन्हें काफ़ी पहचान मिली थी।
वह अपने प्रोडक्ट्स के विज्ञापनों में खुद एक्टिंग करते थे और भारतीय संस्कारों को बेचते थे।
इन विज्ञापनों में उनके सामने पड़ने पर जीन्सधारी बहू-बेटियां सर पर दुपट्टा डाल लेतीं और उनके पैर छुआ करतीं। बहुत कम टीवी देखने वाले लोग भी जब उन्हें टीवी पर देखते तो उनकी भी बांछें खिल ही जाया करतीं और वे खुश होकर बुदबुदाते – “बड़ा जबरदस्त बुढ्ढा है साला!”
एमडीएच मसाले कंपनी का नाम उनके पिता के काराबोर पर आधारित है। उनके पिता ‘महशियान दी हट्टी’ के नाम से मसालों का कारोबार करते थे। हालांकि लोग उन्हें ‘देगी मिर्च वाले’ के नाम से भी जानते थे।
उन्हें व्यापार और वाणिज्य के लिए साल 2019 में भारत के दूसरे उच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी नवाज़ा गया था।
नामचीन हस्तियों ने ट्वीट कर जताया शोक-
भारत के प्रतिष्ठित कारोबारियों में से एक महाशय धर्मपालजी के निधन से मुझे दुःख की अनुभूति हुई है।छोटे व्यवसाय से शुरू करने बावजूद उन्होंने अपनी एक पहचान बनाई। वे सामाजिक कार्यों में काफ़ी सक्रिय थे और अंतिम समय तक सक्रिय रहे। मैं उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूँ।
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) December 3, 2020
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उनकी मौत पर दुख प्रकट किया है और कहा है, “उन्होंने छोटे व्यवसाय से शुरू करने बावजूद उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई।”
Dharm Pal ji was very inspiring personality. He dedicated his life for the society. God bless his soul. https://t.co/gORaAi3nD9
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) December 3, 2020
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी उनकी मौत पर दुख जताया है और कहा है कि वो दूसरों को प्रेरणा देने वाले व्यक्तित्व के मालिक थे।
वहीं दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उन्हें ‘प्रेरणा देने वाले कारोबारी’ कहा है।
देश के मसालों की सुगंध को पूरे विश्व मे फैलाने वाले, पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित महाशय धर्मपाल गुलाटी जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ।
अपनी उद्यमिता से स्वदेशी व आत्मनिर्भरता के साथ ही उन्होंने सामाजिक कार्यों का एक आदर्श स्थापित किया। ईश्वर उन्हें मोक्ष प्रदान करें। ॐ शांतिः pic.twitter.com/Nzi0zA6VPw
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) December 3, 2020
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर लिखा, “देश के मसालों की सुगंध को पूरे विश्व मे फैलाने वाले, पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित महाशय धर्मपाल गुलाटी जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ।”
बंटवारे के बाद परिवार दिल्ली आ गया और यहीं से शुरू किया सफर-
1947 को आज़ादी मिली और देश का विभाजन हुआ। धर्मपाल के माता-पिता ने पाकिस्तान छोड़ दिल्ली आने का फ़ैसला किया और 27 सितंबर 1947 में ये परिवार दिल्ली पहुंचा।
उस दौरान जो पैसे उनके पास थे उसे धर्मपाल ने एक तांगा खरीदा और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड तक और करोल बाग़ से बाड़ा हिंदू राव तक तांगा चलाने लगे।
जल्द ही करोल बाग़ में उन्होंने ‘महशियान दी हट्टी’ के नाम से ही फिर से अपना पुराना मसालों का कारोबार शुरू किया। वो सूखे मसाले खरीद कर उन्हें पीस कर बाज़ार में बेचते थे।
ये कारोबार अब पूरे देश-विदेश में फैल चुका है। 93 साल पुरानी ये कंपनी अब भारत के साथ-साथ यूरोप, जापान, अमेरिका, कनाडा और सऊदी अरब में अपने मसाले बेचती है। कंपनी का कारोबार 1500 करोड़ रुपये से ज़्यादा का बताया जाता है।
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