आज डॉक्टर कलाम का जन्मदिन है, जो की भारत के अब तक के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति रहे हैं। उनका जन्म 15 अक्तूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम शहर में हुआ था। कलाम न तो वैज्ञानिक के खाँचे में फिट होते थे, न ही राजनेता के साँचे में, वो जो थे अद्भुत थे अनेकों गुणों के धनी थे। शायद इसीलिए उन्हें विलक्षण कहा जाता है।
कोई नहीं दिखता जिससे आप कलाम की तुलना कर सकें,’चाचा नेहरू’ के बाद शायद ही कोई और नेशनल फ़िगर हो जो बच्चों में इतना पॉपुलर रहा हो। जो बात समझनी-समझानी मुश्किल हो, उसके लिए मुहावरा है–रॉकेट साइंस, उसी ‘रॉकेट साइंस’ को कलाम लाखों स्कूली बच्चों तक ले गए।
अटल चाहते थे कि कलाम भारत के राष्ट्रपति बने और उन्होंने ये किया-
10 जून, 2002 को एपीजे अब्दुल कलाम को अन्ना विश्वविद्यालय के कुलपति डाक्टर कलानिधि का संदेश मिला कि प्रधानमंत्री कार्यालय उनसे संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा है। इसलिए आप तुरंत कुलपति के दफ़्तर चले आइए ताकि प्रधानमंत्री से आपकी बात हो सके।
जैसे ही उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय से कनेक्ट किया गया, वाजपेई फ़ोन पर आए और बोले, ‘कलाम साहब देश को राष्ट्पति के रूप में आप की ज़रूरत है।’ कलाम ने वाजपेई को धन्यवाद दिया और कहा कि इस पेशकश पर विचार करने के लिए मुझे एक घंटे का समय चाहिए।
वाजपेई ने कहा, ‘आप समय ज़रूर ले लीजिए। लेकिन मुझे आपसे हाँ चाहिए, ना नहीं।’ कलाम ने अटल की बात का मान रख लिया और राष्ट्रपति पद के लिए हामी भरकर उन्हे अपना उत्तर पहुँचा दिया।
जब कलाम के विरोध में विपक्ष ने ये कहकर अपना उम्मीदवार खड़ा किया कि कलाम इंसान तो बहुत अच्छे हैं लेकिन इन्होंने मिसाइल और बम बनाये हैं जो कि मानवीय दृष्टिकोण से ठीक नहीं है-
2002 में जब राष्ट्रपति पद के लिए कलाम का नाम प्रस्तावित किया गया तो विपक्षी कांग्रेस ने उनके ख़िलाफ़ उम्मीदवार खड़ा न करने का फ़ैसला किया। सिर्फ़ वामपंथी दलों ने आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल को मैदान में उतारा और उनका मानना था कि इन्होंने मिसाइल और बम बनाये हैं जो कि मानवीय दृष्टिकोण से ठीक नहीं है। लेकिन इस एकतरफ़ा चुनाव में लक्ष्मी सहगल कहीं नहीं टिकी और कलाम आसानी से जीत गए।
2002 में कलाम का नाम प्रस्तावित किया जाना एक संयोग नहीं था, तब गुजरात के भीषण दंगों की लपटें ठीक से बुझी भी नहीं थीं। ऐसे में कलाम को उम्मीदवार बनाने को कुछ लोगों ने मुसलमानों के लिए मरहम और कुछ ने भाजपा के सियासी दांव की तरह देखा।
संघ के लोग इसलिए खुश थे कि कलाम गीता पढ़ते हैं। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक मुसलमान का विरोध नहीं कर सकती थीं। एक ऐसा ‘आदर्श मुसलमान’ जिसने देश को ‘ताकतवर’ बनाया और जिसकी देशभक्ति पर शुबहे की गुंजाइश नहीं थी।
कलाम कार्यकाल साफ़-सुथरा रहा, एक ही धब्बा है, राज्यपाल बूटा सिंह की सिफ़ारिश पर उन्होंने बिहार में 2005 में राष्ट्रपति शासन लगा दिया-
कलाम की राजनीतिक अनुभवहीनता तब उजागर हुई जब उन्होंने 22 मई की आधी रात को बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने का अनुमोदन कर दिया, वो भी उस समय जब वो रूस की यात्रा पर थे।
बिहार विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के बहुमत न मिलने पर राज्यपाल बूटा सिंह ने बिना सभी विकल्पों को तलाशे बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफ़ारिश कर दी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक बैठक के बाद उसे तुरंत राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए फ़ैक्स से मास्को भेज दिया।
कलाम ने इस सिफ़ारिश पर रात डेढ़ बजे बिना किसी हील हुज्जत के दस्तख़त कर दिए।
कलाम ने खुद अपनी किताब ‘अ जर्नी थ्रू द चैलेंजेज़’ में ज़िक्र किया कि वो सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से इतना आहत हुए थे कि उन्होंने इस मुद्दे पर इस्तीफ़ा देने का मन बना लिया था लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें ये कह कर ऐसा न करने के लिए मनाया कि इससे देश के हालात बिगड़ जायेंगे।
कलाम के मन में भारत को उन्नत देश बनाने का ख्वाब पल रहा था-
साल 2002 में राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने अपने थोड़े अटपटे एक्सेंट में ‘विज़न 2020’ पेश किया था, यानी अगले 18 साल में भारत एक उन्नत देश कैसे बनेगा इसका रोडमैप।
सरकारें बहुत सारे विज़न डाक्युमेंट पेश करती हैं और भूल जाती हैं। कलाम के ट्विटर प्रोफ़ाइल में लिखा था- भारत को 2020 तक एक आर्थिक शक्ति बनाने का सपना पूरा करने के लिए कार्यरत। कलाम ने अपनी जीवनी ‘विंग्स ऑफ़ फ़ायर’ में लिखा है कि दो चीज़ें उनमें जोश भरती हैं- विज्ञान और उसे सीखने की चाह रखने वालों का साथ।
उन्होंने जितने बड़े पैमाने पर देश के विज्ञान के छात्रों से मुलाक़ात, बात की है, कभी उनके कैम्पस में जाकर, कभी उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाकर, तो कभी स्काइप के ज़रिए, वह गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज होने लायक है।
जीवन की अंतिम साँसें लेने से ऐन पहले वे छात्रों से ही बात कर रहे थे, वे ख़ुद भी शायद ऐसी ही मौत चाहते होंगे।
अटल ने कलाम को अपनी कैबिनेट में शामिल करने की सिफारिश की लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक इस पद को अस्वीकार कर दिया-
मशहूर पत्रकार राज चेंगप्पा अपनी किताब ‘वेपेंस ऑफ़ पीस’ में लिखते हैं, ‘उस बैठक में जब इंदिरा गाँधी ने कलाम का अटल बिहारी वाजपेई से परिचय कराया तो उन्होंने कलाम से हाथ मिलाने की बजाए उन्हें गले लगा लिया।
ये देखते ही इंदिरा गाँधी शरारती ढंग से मुस्कराई और उन्होंने वाजपेई की चुटकी लेते हुए कहा, ‘अटल जी लेकिन कलाम मुसलमान हैं।’ तब वाजपेई ने जवाब दिया, ‘जी हाँ लेकिन वो भारतीय पहले हैं और एक महान वैज्ञानिक हैं।
18 दिन बाद जब वाजपेई दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कलाम को अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता दिया। अगर कलाम इसके लिए राज़ी हो जाते तो वाजपेई को न सिर्फ़ एक काबिल मंत्री मिलता बल्कि पूरे भारत के मुसलमानों को ये संदेश जाता कि उनकी बीजेपी की सरकार में अनदेखी नहीं की जाएगी।
कलाम ने इस प्रस्ताव पर पूरे एक दिन विचार किया। अगले दिन उन्होंने वाजपेई से मिल कर बहुत विनम्रतापूर्वक इस पद को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘रक्षा शोध और परमाणु परीक्षण कार्यक्रम अपने अंतिम चरण में पहुंच रहा है।’
वो अपनी वर्तमान ज़िम्मेदारियों को निभा कर देश की बेहतर सेवा कर सकते हैं। दो महीने बाद पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद ये स्पष्ट हो गया कि कलाम ने वो पद क्यों नहीं स्वीकार किया था।
कांशीराम जी चाहते थे,सवर्णों की पार्टी के कंधे चढ़ दलित की बेटी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनें
कलाम का जीवन अपने आप में लोगों के लिए संदेश है-
1960 के दशक में मवेशियों के तबेले में लैब बनाने और साइकिल पर रॉकेट ढोने वाले शख़्स की ही विरासत है कि भारत नासा से सैकड़ों गुना सस्ते मंगल अभियान पर गर्व कर रहा है।
तमिलनाडु के तटवर्ती गाँव में मछुआरों को किराये पर नाव देने वाले ज़ैनउलआब्दीन का बेटा, जो पूरी तरह देसी-सरकारी शिक्षण संस्थानों में पढ़ा, उसने पश्चिम का तकनीकी ज्ञान अपनाया मगर उसका जीवन-दर्शन पूरी तरह भारतीय रहा।
कलाम को विक्रम साराभाई और सतीश धवन जैसे वैज्ञानिकों ने थुंबा के अंतरिक्ष रिसर्च सेंटर में काम करने के लिए चुना था, जहाँ कलाम ने अंतरिक्ष तक उपग्रह ले जाने वाले देसी रॉकेट विकसित करने वाली टीम की अगुआई की।
यही संस्थान 1971 में साराभाई के निधन के बाद, विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर बन गया, जहाँ कलाम ने अपने वैज्ञानिक जीवन के 22 साल रॉकेट साइंस को भारत के लिए संभव बनाने में लगाए।
रक्षा अनुसंधान में लगे संगठन डीआरडीओ में उनका कार्यकाल छोटा रहा है लेकिन वहाँ भी उन्होंने अहम काम किए। प्रधानमंत्री वाजपेयी के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के तौर पर उन्होंने पोखरण-2 का नेतृत्व किया लेकिन उनका ज़ोर टेक्नॉलॉजी के ज़रिए ग़रीबों का जीवन बेहतर बनाने पर ही रहा, न कि मिसाइल पर।
उन्होंने उस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकेल यानी एसएलवी का पुर्ज़ा-पुर्ज़ा जाँचा-परखा जिसके कामयाब होने के बाद भारत एलीट स्पेस क्लब का मेंबर बन गया, ये सिलसिला यहाँ तक पहुँचा है कि उन्नत कहे जाने वाले देशों के सेटेलाइट भारतीय एसएलवी के ज़रिए अंतरिक्ष में भेजे जा रहे हैं।
[…] […]