सैम्पल में पास हो जाने पर भी नहीं हो रही सरकारी क्रय केंद्रों पर धान खरीद ,दो-दो महीने बाद की मिल रही तारीख,दर -दर भटकने को मोहताज है किसान!

सैम्पल में पास हो जाने पर नहीं हो रही सरकारी क्रय केंद्रों पर धान खरीद ,दो-दो महीने बाद की मिल रही तारीख,दर -दर भटकने को मोहताज है किसान!
Reading Time: 6 minutes

उत्तर प्रदेश में अच्छे धान का अधिकतम सरकारी रेट 1888 रुपए प्रति कुंतल है, लेकिन ज्यादातर जिलों में किसान 1000 रुपए से लेकर 1100 प्रति कुंतल बेचने को मजबूर है।

जिन जिलों में सरकारी खरीद शुरू भी हो चुकी है वहां भी किसान 1000-1100 रुपए में धान बेच रहा है। कारण किसानों को नई फसल की बुवाई करनी है, बकाया भुगतान करना है। पूरे देश का किसान इन दिनों किसान कानूनों को लेकर सड़कों पर उतरा हुआ है। उसे डर है कि सरकार ये जो नये कानून लाई है

उससे मंडी व्यवस्था खत्म हो जायेगी और बाजार चंद कार्पोरेट्स के आधीन हो जायेगा, जिससे न्यूनतम समर्थन मूल्य भी खत्म हो जायेगा।

सरकार द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य उसी तरह बना रहेगा और किसानों को किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा, सरकार उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध है।

उच्चतम न्यायालय ने अमिश देवगन पर दर्ज एफआईआर को रद्द करने से किया इंकार

इसी बीच सरकारी क्रय केंद्रों की हकीकत जानने के लिए वॉक्सीटॉक्सी हिंदी की टीम पहुँचती है राजधानी लखनऊ की बख्शी तालाब विधानसभा के क्रय केंद्रो पर। जब हम पहले क्रय केंद्र पर पहुँचे तो हमने देखा एक किसान अपनी ट्राली में धान लादे हुए खड़ा है

और वह क्रय केंद्र के प्रभारी के पास गया और धान लेने की बात कही लेकिन उसे केंद्र पर जगह ना होने का हवाला देकर वापस कर दिया गया।

जब हमने उस किसान से बातचीत की कि आप यहां पर क्यों आए हुए हैं तो उसने हमें बताया कि हम सेंटर प्रधान लेकर आए हुए थे लेकिन हमें यहां पर जगह नहीं है ऐसा कहकर वापस कर दिया गया। जब हमने पूछा कि आपका सैंपल धान का जांचा गया तो उसने बताया कि केंद्र के प्रभारी ने उनसे कहा है कि जब केंद्र पर जगह ही नहीं है

तो आप सैंपल की जांच करवा कर क्या करेंगे। फिर हमने केंद्र के प्रभारी से बात की तो उन्होंने उसको ऐसे ही वापस करने की बात नकार दी, उसका सैंपल उन्होंने जाचा तो वह भी मानकों के अनुरूप नहीं निकला क्योंकि धान में नमी ज्यादा थी।

अधिकारियों की नहीं सुन रहे केंद्र प्रभारी किसान दर-दर भटक रहा-

आज किसान अपनी फरियाद किस से कहें यह तो सिस्टम के हुक्मरान ही जान सकते हैं। एक ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जहां यह कहते हैं कि किसानों की तौल 48 घंटों में सुनिश्चित कराई जाए, तो दूसरी ओर अधिकारियों में इसको लेकर कोई गंभीरता नहीं। किसान भटकता है तो भटके, उन्हें तो अपनी कुर्सी पर ही आनंद आ रहा है। हम बख्शी तालाब के भैसामऊ केंद्र पर थे

मसालों का बादशाह जिसने कभी दिल्ली की सड़को पर तांगा दौड़ाया,कोविड से जीतने के बाद अलविदा कह गया

तो वहां पर एक किसान ने, जिनका नाम मनोज तिवारी है। उन्होंने हमसे कहा कि उनका धान सैंपल में पास हो गया है। उनको 226 नंबर का टोकन दिया गया था और तारीख 3 नवम्बर दी गई है। जब वो उस तारीख को पहुँचते हैं

तो पता चलता है उनके नम्बर की तौल अभी नहीं लगी है। फिर उनको दूसरी तारीख दे दी जाती, जब एक हफ्ते बाद वो जाते हैं, तब पर भी उनको यही कहकर लौटा दिया जाता है कि अभी आपका नंबर नहीं आया है और केंद्र पर जगह की कमी है।

उपजिलाधिकारी फसल मानकों में होने पर तुरन्त तौल की बात कहते हैं-

हमने किसान की समस्या को देखते हुए तत्काल एसडीएम बख्शी तालाब से बात की तो उन्होंने कहा कि अगर धान मानकों के अनुरूप होता है तो उसके तौल तुरंत सुनिश्चित कराई जाए, लेकिन अधिकारियों को केंद्र प्रभारी सिर्फ़ बातें पढ़ा रहे हैं और अधिकारी उससे संतुष्ट भी हैं।

मामले की गंभीरता और किसानों की परेशानी को देखते हुए हमने जिलाधिकारी लखनऊ से भी बात की, लेकिन उनकी तरफ से भी कोई संतुष्टी जनक उत्तर नहीं मिला। मुख्यमंत्री के आदेशों की गंभीरता कितनी है

वो हमने ग्राउंड जीरो पर जाकर स्वयं परखी। ये राजधानी लखनऊ की एक विधानसभा बख्शी का तालाब के सभी क्रय केंद्रों की है पूरे सूबे के हालात कैसे होंगे, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।

भैसामऊ क्रय केंद्र पर अब तक 57 किसानों से 217।32 मीट्रिक टन धान की खरीद हुई है। ये आंकड़ा 27 दिसंबर तक है जबकि टोकन 250 किसानों को बंट चुके हैं।

यहां पर प्रतिदिन 1 किसान, 2 किसान और 3 किसान से ज्यादा लोगों की धान खरीद नहीं हो पाती है जो कि सरकारी आंकड़ा दिखाता है। अब इतनी सुस्त खरीद में किसान का नंबर तो 2 महीने बाद भी नहीं आएगा फिर वह अपनी नई फसल कब बोयेगा।

केंद्र पर जगह नहीं है इस वजह से किसानों से नहीं हो पा रही खरीद केंद्र प्रभारी-

क्रय केंद्रों की स्थिति जानने के क्रम में जब हम दूसरे क्रय केंद्र सिंहापुर बरगदी पर पहुंचते हैं तो वहां भी स्थिति कुछ इसी तरह थी। धान कई हफ्तों से अपनी तौल का इंतजार कर रहा है

औऱ किसान पैसे का कि अगर तौल हो जाये तो उसे पैसा मिल जाये और अपना क़र्ज़ निपटा कर फसल बो सके। बरगदी क्रय केंद्र के प्रभारी छुट्टी पर गए हुए थे और उनके सहयोगी से हमारी बात हुई है तो उन्होंने हमको बताया कि पूरे लखनऊ का धान बाराबंकी की मील में जा रहा है।

लखनऊ का कोई मिलर धान लेने को तैयार नहीं है और बाराबंकी का मिलर समय से धान उठाता नहीं है इस वजह से केंद्र पर धान अधिक रहता है और जगह की कमी रहती है और सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि पूरी विधानसभा में सिर्फ तीन ही क्रय केंद्र हैं

जिससे किसानों को बहुत दिक्कत होती है। इस केंद्र पर खरीद का लक्ष्य 20000 कुंतल रखा गया है, जिसमें अभी तक 55 किसानों से 1724।76 कुंतल धान खरीद की गई है। केंद्र के सहयोगी ने हमें यह भी बताया कि केंद्र तक आने वाली सड़क की स्थिति बहुत जर्जर है और लोगों ने रास्ते पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है

इस वजह से कोई भी ट्रक केंद्र तक आने को तैयार नहीं होता है।

मंडी में किसानों का धान पूछने को कोई तैयार नहीं और बटाईदारों की परेशानी अलग है-

जब हम लखनऊ की विधानसभा के आखिरी क्रय केंद्र पहाड़पुर पर पहुंचते हैं, यहां भी स्थिति पूर्व की तरह ही दिखी। कुछ किसान अपना धान साफ करवा रहे थे तो कुछ अपनी तौल का इंतजार कर रहे थे कि काश हमारी तौल हो जाये। एक नया किसान भी आया, उसका धान सैंपल में पास था

और उसको 125 नम्बर टोकन मिला यह टोकन का सिस्टम समझने के लिए हमने पहाड़पुर के केंद्र प्रभारी से बात की तो उसने बताया हमारे यहां खरीद का लक्ष्य 2000 कुंतल रखा गया है लेकिन अभी तक 41 किसानों से 1200 कुंतल धान की खरीद हुई है अब 41 के बाद 124 नम्बर तक जब तौल हो जायेगी, तब फिर इनका नम्बर आयेगा।

फिर मैंने कहा इस तरह तो एक माह बाद भी इसका नम्बर नहीं आयेगा तो उसने हमको बताया इसमें हम कुछ नहीं कर सकते। हमने कारण पूछा तो उसने हमें बताया कि आप यह धान की छलिया देखिए अभी तक यह मिल नहीं पहुंची। जब ये मील पहुचेंगी तब यहां जगह खाली होगी फिर इनकी खरीद होगी

अब तक हमें टोकन की परिभाषा समझ आ चुकी थी। हम थोड़ा आगे बढ़े, हमने एक किसान से बात करनी चाही वो हम पर फफफकर चिल्ला पड़ा। महिगवा गाँव के इस किसान ने हमसे कहा कि उसके पास 5 बीघे का धान था, जिसमें से वो आधा पहले बेच चुके हैं।

किसानों औऱ सरकार के बीच क्यों टकराव की स्तिथि बनी है आखिर क्यों नही बन रही सहमती

गुरुचरन कहते हैं, “मंडी में धान की कोई खरीद नहीं है। सरकार ने एमएसपी बोल तो दिया लेकिन उसे खरीद कर भी तो दिखाओ, किसान को पैसे की जरूरत अब है, गेहूं, सरसों, आलू बोना है। लेकिन खरीद केंद्रों पर सिर्फ बैनर लगे हैं, मिलर्स (धान मिल मालिक) अपनी अलग मनमानी कर रहे हैं। सरकार ने हम किसानों को पानी में डुबा कर मार दिया है।”

एक किसान से हमने बात की तो उसने बताया कि 4 बीघा बटाई लेकर गया था धान अच्छा हुआ है, लेकिन मंडी में उसका कोई नाम नहीं है। सरकारी क्रय केंद्र पर बेचना चाहता हूं लेकिन सरकारी खरीद केंद्रों पर धान बेचने के लिए पहले से रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।

जिस किसान के पास खसरा-खतौनी, बैंक पासबुक और आधार कार्ड होगा, वही बेच पाएगा। सरकार की ये व्यवस्था पारदर्शिता के लिए है लेकिन इससे बटाईदार और ठेके पर खेती करने वाले किसान परेशान हैं, उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा।

यूपी सरकार के धान खरीद के लिए टाइम टेबल बनाया है। जिसके मुताबिक सभी जिलों में धान खरीद के लिए प्रभारी अधिकारियों की नियुक्ति हो चुकी है और पश्चिमी यूपी में 1171 क्रय केन्द्र अनुमोदित किये जा चुके हैं।

इसके साथ ही धान मिलों का पंजीकरण भी किया जा चुका है। एक अक्टूबर तक मिली जानकारी के मुताबिक 1905 राइस मिलों का पंजीयन हो चुका था, जबकि 1736 राइस मिलों की जियो टेगिंग भी करायी जा चुकी है। प्रदेश में 1 अक्टूबर तक सरकार के मुताबिक ई-उपार्जन पोर्टल के जरिए रजिस्ट्रेशन अभी जारी है।