योग और बौद्ध धर्म का मेल
योग और बौद्ध धर्म के बीच समानता की कड़ियाँ एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं।
मन आसानी से विचलित और विखंडित होता है उससे एकाग्रचित करने में यह हमें सहयोग देता है।
तथागत बुद्ध भारतीय थे और वेद दर्शन में अत्यधिक ज्ञान प्राप्त करने वाले व्यक्ति थे और योग के अभ्यासी थे। बुद्ध योगशास्त्र पर इतना अधिक समर्पित थे कि उन्हें अभ्यास का फल प्राप्त हुआ, और वह था उनका आत्मज्ञान।
बुद्ध के उपदेश
बुद्ध के उपदेश चार महान सत्य में स्थापित है, जो उनके पहले धर्मोपदेश में उनके उद्बोधन के बाद सामने आया था
- बुद्ध द्वारा घोषित पहला महान सत्य – दुःख, जीवन दुख है और दुख एक वास्तविकता है।
- दूसरा सत्य- समुदय, इस दुख का कारण हमारे स्वयं के मन में है।
- तीसरा महान सत्य – निरोध, आशा प्रदान करता है: पीड़ा से मुक्ति संभव है।
- चौथा महान सत्य – मार्ग, मुक्ति पाने के लिए एक विधि देता है, आष्टांगिक मार्ग है।
इसके आठ अंग हैं-सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि। इस आर्यमार्ग को सिद्ध कर वह मुक्त हो जाता है।
बौद्ध धर्म और योगिक विद्या दोनों ही यह मानते हैं कि अशांत मानसिकता से मुक्ति मिलने पर आत्मज्ञान पैदा होता है।
बुद्ध ने कहा था “जब हमारे पास वह नहीं है जो हम चाहते हैं, तो हम दुखी हैं, जब हमें वह मिलता है जो हम नहीं चाहते हैं, तो हम दुखी होते हैं। आजादी तब मिलती है जब हम अपनी इच्छाओं, अपनी प्राथमिकताओं से मुक्त होते हैं।”
योग की परिभाषा
महर्षि पतंजलि ने योग को कुछ इस तरह परिभाषित किया है “चित्त वृत्ति निरोध” जिसका अर्थ है कि जब आप मन के उतार-चढ़ाव को पहचानना बंद कर देते हैं, या मन में आने वाले सभी बदलाव रुक जाने पर तब योग की पहचान होती है।
यह आभास स्वयं के साथ समाधि परमानंद है।
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अष्टावक्र संहिता में कहा गया है ”जो सोचता है कि वह स्वतंत्र है वह स्वतंत्र है, जो सोचता है कि वह बाध्य है तो वह बाध्य है” जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हम बन जाते हैं।
करुणा बौद्ध धर्म और योग का मूल उपदेश है
महर्षि पतंजलि के योग सूत्र में कहा गया है कि अहिंसा (दूसरों को नुकसान न पहुंचाने) के अभ्यास का परिणाम अच्छा कर्म होगा, जिसके परिणामस्वरूप अंततः सुख और शांति का अनुभव होगा।
इसके एक अध्याय में कहा गया है, “अहिंसा प्रथिष्ठम् तत् समनिधौ वैया त्यगः” (जो दूसरों को कोई कष्ट नहीं पहुँचाता, उसे कोई कष्ट नहीं होगा।)
प्रत्येक विचार, शब्द, और काम जो हम करते हैं वह हमारे पास वापस आ जाएगा यह जानकर सभी अन्य प्राणियों के प्रति दयालु बनें।
बौद्ध धर्म और योग का उद्देश्य आत्मज्ञान है। प्रबुद्ध अवस्था में जो महसूस किया जाता है वह हमें पूर्ण बनता है।
योग और बौद्ध पथ से दुखों का निवारण
बौद्ध धर्म के साथ-साथ योग भी मानता है कि दुख है, और दुख से मुक्ति संभव है। इन प्राचीन शिक्षाओं का मानना है कि करुणा मुक्ति के लिए एक वाहन है। योग का प्रारम्भ अनुशासन से होता है । अनुशासन का अर्थ है स्वयं अपने ऊपर संयम द्वारा शरीर तथा मन पर काबू पाना । बौद्ध धम्म भी पंचशीलों के साथ अनुशाशन की बात करता है।
ध्यान एक योगिक अभ्यास है जिसका उपयोग बौद्ध और योगी मन की उतार-चढ़ाव से परे जाने के लिए करते हैं।
बौद्ध इसे शून्यता कह सकते हैं। योगी इसे पूर्ण आत्म कहते हैं।
क्या आपने कभी योग को बुद्ध के धर्म में इतनी अधिक समानता होने के बारे में सोचा था ?
क्या आप बुद्ध के ‘करुणा’ के सिद्धांत को अपनाकर मन मस्तिष्क को शांत बनाएँगे?
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