अघोषित आपातकाल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मंडराते खतरे के बादल

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विचारों की अभिव्यक्ति के इस मूल अधिकार को लोकतंत्र के "राजीनामे का मेहराब" कहा है क्योंकि लोकतंत्र की बुनियाद ही असहमति के साहस और सहमति के विवेक पर निर्भर है।

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हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर एक पत्रकार प्रशांत कनोजिया द्वारा अपने ट्विटर हैंडल से टिप्पणी किए जाने को लेकर लखनऊ पुलिस द्वारा रातोंरात उस पत्रकार को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। प्रशांत कनोजिया ‘द वायर’ में पत्रकार के रूप में कार्यरत थे, सामाजिक संगठनों के आंदोलन करने पर तथा सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद यूपी पुलिस को प्रशांत कनौजिया को रिहा करना पड़ा। 


लेकिन इससे अभिव्यक्ति की आजादी पर बढ़ते हुए खतरों का संकेत मिल गया है। यह ख़तरा सरकारों की ओर से ही नहीं है ,विगत दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मिमिक्री करने वाले एक हास्य कलाकार “श्याम रंगीला” की प्रस्तुति रोक दी गई थी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर अब नई चुनौतियां सामने आ रही हैं “कांचा इलैया” जैसे दलित लेखक हो या संसद की भरी सदन में एक जनता जनार्दन द्वारा निर्वाचित विपक्ष के सांसद उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बोलने पर सत्ता पक्ष के लोगों द्वारा उनकी आवाज को दबाने का प्रयास।
भारत की संविधान सभा में संविधान के निर्माण के दौरान हुई बहसों में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नागरिक स्वतंत्रता का अधिकार कहा गया है। संविधान की धारा 19 (1) जिन 6 मौलिक अधिकारों को प्रदान करती है उनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पहला स्थान है। मौलिक अधिकारों की ही तरह विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अधिक अनियंत्रित नहीं है।
“याद रखें, हमारी स्वतंत्रता वहीँ खत्म हो जाती है जहां से दूसरे की स्वतंत्रता भंग होती है ,कोई अधिकार निरापद निरंकुश नहीं हो सकता है सबसे बढ़कर देश को बर्बाद करने का अधिकार तो किसी को नहीं है”


माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विचारों की अभिव्यक्ति के इस मूल अधिकार को लोकतंत्र के “राजीनामे का मेहराब” कहा है क्योंकि लोकतंत्र की बुनियाद ही असहमति के साहस और सहमति के विवेक पर निर्भर है।आजादी के 70 वर्षों मे अगर आपातकाल के कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो भी समय-समय पर ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न होती रही हैं, जिन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बहुत ही करीब से महसूस किया है. चाहे 2012 में कार्टूनिस्ट “असीम त्रिवेदी” की गिरफ्तारी हो या 2016 में जेएनयू जैसे संस्थान में कथित रूप से भारत विरोधी नारे लगाने के आरोप में छात्र नेता कन्हैया कुमार की गिरफ्तारी अथवा 2017 में लखनऊ विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया का विरोध करने पर वहां की एक छात्रा “पूजा शुक्ला” को विश्वविद्यालय द्वारा अपने यहां प्रवेश न देना हो।


अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर ऐसी कई दमनकारी घटनाएं घटित हो चुकी हैं .राजद्रोह के अलावा मानहानि के मामले को लेकर भी विवाद होता रहा है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ प्रेस की स्वतंत्रता भी अपने ऊपर खतरा महसूस कर रही है। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर जिले के प्राथमिक विद्यालय में छात्रों को ‘मिड डे मील’ में नमक रोटी परोसे जाने पर एक पत्रकार ने इस पर लिख दिया तो स्थानीय जिला प्रशासन द्वारा कार्यवाही करने की बजाए पत्रकार पर अभियोग पंजीकृत कर उसे प्रताड़ित किया गया।
भारत की एक चर्चित समाचार वेबसाइट और “मीडिया वॉच डॉग”, द हूट ने साल 2017 की सालाना रिपोर्ट में पाया था कि 50% से ज्यादा घटनाओं में पत्रकारों को इसी तरह प्रताड़ित किया जाता है। “द हूट” ने यह भी जिक्र किया था कि अदालतें अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर ज्यादा व्यस्त रहती हैं।


“रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स” नाम की संस्था द्वारा प्रकाशित द वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत पूरी दुनिया में 136वें पायदान पर है।


भारत में अभिव्यक्ति के दमन का ग्राफ चिंताजनक नजर आता है और यह सिलसिला यूं ही बदस्तूर जारी है. मानवाधिकार संगठन “ह्यूमन राइट्स वॉच” ने भारत सरकार से सिफारिशें की हैं कि ऐसे भारतीय कानून जिनका उपयोग करके शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति को भी अपराध ठहराया जाता है या उनको रद्द करें अथवा अपेक्षित संशोधन करने का प्रयास करें. पारदर्शी और सार्वजनिक विचार विमर्श कर उन सभी मुकदमों को वापस लिया जाए और जांचों को तत्काल प्रभाव से रोका जाए जो अभिव्यक्ति या शांतिपूर्ण संगठन से जुड़ा है।


पुलिस को इस बात के लिए जरूरी प्रशिक्षण दिया जाए कि अदालतों में अनुचित मामले दर्ज न किए जाएं, जजों को खास तौर पर निचली अदालतों के जजों को शांतिपूर्ण अभिव्यक्तियों और उनके कथित हनन को लेकर लगी धाराओं से संबंध का फ़र्क बताया जाए ताकि वह ऐसे लोगों को खारिज कर दें, जो विचार और अभिव्यक्ति के अधिकार के विरुद्ध हों ।

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