आज जो जेएनयू में हो रहा है, यकीनन वो देश की आने वाली नस्लों के लिए ठीक नही है। आने वाले दौर में जब आपकी नस्लें, आपकी आने वाली पीढ़ियां आपसे सवाल करेंगी कि जब जेएनयू जैसे तमाम बेहतरीन शिक्षा संस्थानों को ये संघी-भाजपाई मिलकर बर्बाद कर रहे थे, तो आप क्या कर रहे थे? तो आप अपनी नस्लों से अपना मुँह छिपा लीजिएगा या कहीं चुल्लू भर पानी में डूब मरियेगा।
धिक्कार है ऐसे प्रधानमंत्री जी पर जो जेएनयू जैसा एक भी संस्थान बना तो न सके पर जेएनयू को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और ये जो भारत की भोली भाली आवाम को बेवकूफ बनाकर मंदिर-मस्जिद के चक्कर मे डालकर उसके ग़रीब बच्चों से पढ़ाई का हक छीन रहे हैं, तो प्रधानमंत्री जी आप ये मत सोचना कि ये जनता जनार्दन ऐसे ही बेवकूफ बनी रहेगी| जिस दिन इनको आपके इस पाखण्ड का पता चलेगा तो आपकी सत्ता की चूलें हिलने में देर नहीं लगेगी।
मैं जेएनयू में पढ़ा तो नहीं हूं लेकिन वहाँ गया जरूर हूं और देखा है कि एक गरीब खेतिहर मजदूर का बेटा वहाँ कैसे पढ़ता है। जी जान लगाकर और फिर जब आपकी नाकामी और तानाशाही पर सवाल करता है कि क्या हुआ देश के अच्छे दिनों का ? तो आप सोच रहे होंगे कि उनको पढ़ने ही न दिया जाए, सारे सवाल अपने आप खत्म हो जाएंगे।
आप सोच रहे होंगे कि पढ़ने लिखने का अधिकार सिर्फ अंबानी और अडानी के बेटे को हो, बाकी भारत की आवाम निरक्षर रहे ,तो आप बहुत बड़ी भूल में हैं, अभी भी इस देश के कुछ लोग जिंदा हैं जिनकी नसों में सावरकर और गोलवलकर की विचारधारा नहीं बल्कि गाँधी और भगत सिंह की विचारधारा दौड़ रही है, वो हर दौर में आपसे सवाल भी करेंगे और लड़ेंगे भी। वो तो धन्यवाद नेहरू जैसे प्रधानमंत्री का जिन्होंने गरीब के बच्चों को पढ़ाने का ख़्वाब भी देखा था। होंगीं राजनीतिक असहमतिया उनसे
लेकिन आपकी तरह मक्कार नहीं थे। वे बच्चों के ‘चाचा नेहरू’ थे।
वर्तमान समय में देश ने तमाम विश्वविद्यालय की तबाही और लूट अपनी आँखों से देखी है। बिल्डिंगें और फीस बढ़ती गयीं, पढ़ाई खत्म होती गयी, यूनिवर्सिटी रैंकिंग ग्रेड गिरती गयी।
जेएनयू नज़ीर है,प्रेरणा है,देश का स्वाभिमान है।
मेरी चाहत है सारे विश्वविद्यालय जेएनयू हो जायें, सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही नहीं अपने हकहुकूक के लिए संघर्ष का जज्बा भी मिले।
#Stand_with_JNU