पिछले साल के मुकाबले कारों की बिक्री में 35.95 फ़ीसदी गिरावट आई है, वहीं कमर्शियल गाड़ियों की बात करें तो 37.84 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि दो पहिया वाहन गाड़ियों की बात की जाये तो 30.98 फीसदी की बिक्री घटी है।
प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष अर्थशास्त्री विवेक देवराय ने इकोनॉमिक टाइम्स में लेख लिखकर सरकार को चार अहम सुझाव दिए हैं उनका मानना है कि जीएसटी की दरें 6% 12% और 18% हो कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी और टैक्स चार्ज हटाया जाए सरकारी उद्यमों को निजी हाथों में सौंपा जाए और सरकार अपना खर्च घटाएं 10 से 15 योजनाएं भी चलाई जाए जबकि सरकार वर्तमान समय में 28 योजनाएं सरकार चला रही है।
कैसे निपटेगी इस चुनौती से मोदी सरकार ?
मोदी सरकार को जल्द ही इस चुनौती से निपटना होगा। सरकार को आम आदमी के हितों की चिंता करने के साथ ही बड़ी कंपनियों की परेशानियों को भी हल करना होगा। बजट पेश करने के बाद भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की चुनौती अभी खत्म नहीं हुई है।
देखना होगा कि इस समस्या से निपटने के लिए सरकार क्या कदम उठाती है ? बजट पेश होते ही लोगों को इस बजट से उम्मीदें काफी कम होती दिखाई दी थी, हमेशा की तरह बजट में वह बात नहीं दिखी जिसे पहले देखा जाता था। बजट के बाद लोगों का रवैया मोदी सरकार की नीतियों से व उनकी योजनाओं से भटकता हुआ दिखाई दे रहा है।
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टाटा मोटर्स के पूर्व मैनेजर का बयान
टाटा मोटर्स डिविजनल मैनेजर के पद से रिटायर हुए एनसी मिश्रा का कहना है ”ब्लॉक क्लोजर या सरल भाषा में कहें तो कंपनी बंदी सालों पहले फैक्ट्री में मशीन और बाकी सारे उपकरण के सफाई और मेंटेनेंस के लिए किया जाता था। वह भी साल में कहीं एक से दो बार और इस फैसले को लेने से पहले भी वर्कर्स यूनियन से बात की जाती थी और सटीक योजना के तहत इस ब्लॉक क्लोजर को अंजाम दिया जाता था।”
उन्होंने यह भी कहा कि ”आज गाड़ियों की मांग नहीं है और मंदी का असर पूरे देश में है तो उनके हिसाब से लम्बे समय तक हालात ऐसे ही रहने वाले हैं । ऐसे समय में जब सेल ही नहीं है तो उत्पादन के बाद और बाजार में डिमांड की कमी के कारण एक अंतर आता है इस हालात में इंतजार के अलावा और कुछ करने को नहीं है”
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सरकार का क्या है इंतजाम ?
भारत को इस मंदी से निकालने के लिए सरकार प्लान बना रही है, जिसमें इंडस्ट्रीज को प्रोत्साहन मिले सरकार इंडस्ट्रीज को छूट टैक्स में छूट सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहन देने की योजना बना रही है। न्यूज़ 18 के मुताबिक इस पैकेज का लक्ष्य सिर्फ उद्योग जगत ही नहीं बल्कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए भी है।
इस मंदी की मार ना सिर्फ ऑटो सेक्टर और उद्योग एवं लघु उद्योग सेक्टर पर पड़ रहा है। बल्कि इसकी मार प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारियों के वेतन पर भी पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। देश के निजी क्षेत्र में कर्मचारियों का वेतन वर्ष 2018 19 में पिछले 10 सालों में सबसे कम बढ़ा है। इसके साथ ही राजस्व में वेतन का अनुपात भी घटा है। एसडी प्राइवेट डेटाबेस के विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि 1 फीसदी से भी कम वेतन इस साल कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के लिए बढ़ाया है।