लख़नऊ की बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय में ‘तनाव के कैसे संभाला जाये’ विषय पर एक गोष्ठी चल रही थी। सभी वक्ता बहुत ही जानकार थे। सब अलग अलग तरीके से तनाव प्रबंधन पर अपनी राय व्यक्त कर रहे थे, तभी चर्चा का विषय यह बन गया कि आखिर ऐसा क्या कारण था जिसकी वजह से बाबा साहेब को अपने लाखों अनुयाईयों के साथ हिन्दू धर्म को त्याग़ कर बौद्ध धर्म अपनाना पड़ा? चूंकि वक्ता समझदार और पढ़े लिखे थे, उन्होंने इस बात को माना की बाबा साहेब और अन्य लोगों को कुछ तो झेलना पड़ा होगा जिसकी वजह से उन्होंने अपने धर्म को ही त्याग दिया। यह ऐतिहासिक परिवर्तन आज ही के दिन यानि 14 अक्टूबर सन 1956 को हुआ था। आईए इस ऐतिहासिक दिन के बारे में कुछ और जानें :
आज के दिन को 62 वां धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस भी कहा जा सकता है। 14 अक्टूबर 1956 को, अशोक विजय दशमी के दिन नागपुर में भारत के संविधान निर्माता बोधिसत्व बाबा साहेब जी व उनके लाखों अनुयायियों को सप्तवर्गीय भिक्खु संघ द्वारा धम्मदीक्षा दी गयी थी।
वे सात भिक्खू इस प्रकार थे- पूज्य भदंत चन्द्रमनी महाथेर(अध्यक्ष) बर्मा से, 2. भिक्खु प्रग्या तिस्स, 3. भिक्खु एम. संघरतन महाथेर, 4. भिक्खु संघरक्षित, 5. भिक्खु सद्धा तिस्स, 6. भिक्खु एच. धम्मानन्द महाथेर, 7. पूज्य भदंत गलगेदर प्रग्यानन्द महाथेर
नागपुर ही क्यों ?
क्या आप यह सोच रहें हैं कि आर.एस.एस का मुख्यालय नागपुर में है इसलिए बाबा साहेब ने इसको चुना ? जी नहीं !नागपुर पुरातन काल से ‘ नाग ‘ लोगों का गढ़ रहा है। यहाँ से करीब 27 मील दूर नाग नदी बहती है। आर्यों द्वारा नाग लोगों पर किये गए ज़ुल्म के किस्से पुराणों में भी मिलते हैं। नाग लोगों ने बुद्ध धम्म के प्रचार प्रसार के लिए अद्वितीय काम किया और बाबा साहेब आखिरकार एक शोधकर्ता होने के साथ गज़ब के योजनाकर्ता थे।
1935 का वो एलान
बाबा साहेब ने नासिक में 1935 में ही यह एलान कर दिया था कि भले ही वो हिन्दू पैदा हुए थे मगर वो हिन्दू नहीं मरेंगे। मुंबई में 30 व 31 मई 1936 को एक विशाल महार सम्मलेन में बाबा साहेब ने परिवर्तन के ऊपर एक सुनियोजित लेख लिख कर कहा कि परिवर्तन कोई बच्चों का खेल नहीं है , यह किसी मनोरंज का विषय भी नहीं है, यह मनुष्य के जीवन को सफल बनाने का तरीका है। जैसे किसी नाविक को समुद्र में जाने से पहले बहुत सी तैयारियाँ करनी पड़ती है वैसे ही हमें भी ऐसी तैयारियाँ करनी पड़ेगी। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक उन्हें हिन्दू धर्म छोड़ने वालों की संख्या का ज्ञात न हो वह इसकी तैयारी शुरू नहीं कर सकते।
शायद इसलिए बाबा साहेब ने 1956 आने तक का सही वक़्त चुना।