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आखिरकार क्यों मनाया जाता है भैया दूज ?

आखिरकार क्यों मनाया जाता है भैया दूज
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पूरे देश में आज भाई बहन के पावन पर्व भैया दूज को बड़े धूमधाम से मनाया गया ।

आज पांच-दिवसीय दीपोत्सव की आखिरी कड़ी यम द्वितीया है। लोक भाषा में इस दिन को भैया दूज कहा जाता है।

जहां रक्षा बंधन सभी उम्र की बहनों को समर्पित पर्व है, भैया दूज की कल्पना मूलतः विवाहित बहनों की भावनाओं को ध्यान में रखकर की गई है। इस दिन भाई बहनों की ससुराल जाकर उनका आतिथ्य स्वीकार करते हैं।

भारतीय संस्कृति में किसी भी रिश्ते को स्थायित्व देने के लिए उसे धर्म और मिथकों से से जोड़ने की परंपरा रही है। यम द्वितीया के लिए भी पुराणों ने एक मार्मिक कथा गढ़ी है।

आखिरकार क्यों मनाया जाता है भैया दूज ?

इस कथा के अनुसार सूर्य के पुत्र और मृत्यु के देवता यमराज का अपनी बहन यमुना से अपार स्नेह था। यमुना के ब्याह के बाद स्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि अरसे तक भाई-बहन की भेंट नहीं हो सकी।

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यमुना के कई निवेदनों के बाद अंततः कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यम बहन के घर पहुंच गए। यमुना ने दिल खोलकर भाई की सेवा की। प्रस्थान के समय स्नेह और सत्कार से अभिभूत यम ने बहन से कोई वरदान मांगने को कहा।

यमुना ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। उसने दुनिया की तमाम बहनों के लिए यह वर मांग लिया कि आज के दिन जो भाई अपनी बहन की ससुराल जाकर यमुना के जल या बहन के घर में स्नान कर उसके हाथों से बना भोजन करे, उसे यमलोक का मुंह नहीं देखना पड़े।

यम और यमुना की इस कथा के पीछे कोई उद्देश्य निश्चित रूप से रहा होगा वो ये कि भैया दूज के बहाने भाई साल में कम से कम एक बार अपनी बहन की ससुराल जाकर उससे मिलें।

बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस दिन बहनें भाईयों को तिलक लगाने के बाद मिठाई के साथ ‘बजरी’ अर्थात कच्चे मटर या चने के दानें भी खिलाती हैं।

सीधे-सीधे निगल जाने की सख्त हिदायत के साथ। ऐसा करने के पीछे बहनों की मंशा भाईयों को बज्र की तरह मजबूत बनाने की होती है। भाई दूज के दिन विवाहित स्त्रियां गोधन कूटने के बाद यम और यमुना की पूजा करती हैं। संध्या के समय यमराज के नाम से दीप जलाकर घर के बाहर रखती है।

कालांतर में भैया दूज के साथ भी पूजा-विधि के कई कर्मकांड जुड़ गए, लेकिन इन्हें नजरअंदाज कर दें तो लोकजीवन की निश्छलता के प्रतीक इस पर्व की भावनात्मक परंपरा सदियों तक संजोकर रखने लायक है।

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