वॉक्सी टॉक्सी

जो प्रेम सौहार्द और भाईचारा फैलाता है उत्तर प्रदेश में उसे जेल होती है।

जो प्रेम सौहार्द और भाईचारा फैलाता है उत्तर प्रदेश में उसे जेल होती है।
Reading Time: 4 minutes

जो भी प्रेम फैलाता है, उसकी राह आम लोगों की अपेक्षाकृत मुश्किल होती है। फैसल खान का नाम आप सब सुन रहे होंगे।उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले में मंदिर में नमाज़ पढ़ने के जुर्म में सामाजिक कार्यकर्ता फ़ैसल ख़ान को गिरफ़्तार कर लिया गया है।

यूपी पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 153A, 295 और 505 के तहत एफ़आईआर दर्ज की है।फ़ैसल ख़ान इस वक़्त दिल्ली के जामिया नगर इलाक़े में रहते हैं और सोमवार को यूपी पुलिस ने उन्हें वहीं से गिरफ़्तार किया था।एक दिन पहले ही फ़ैसल ख़ान और उनके तीन अन्य साथियों के ख़िलाफ़ इस मामले में एफ़आईआर दर्ज की गई थी।

फ़ैसल ख़ान और उनके साथी चांद मुहम्मद पर आरोप है  कि  उन्होंने 29 अक्तूबर को मथुरा के नंदबाबा मंदिर परिसर में नमाज़ पढ़ी थी।उस वक़्त उनके दो अन्य साथी नीलेश गुप्ता और आलोक रतन भी वहां मौजूद थे।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने गठित की स्पेशल टास्क फोर्स, बिना वारंट गिरफ्तारी समेत सौंपी कई शक्तियां

फैसल का कहना है उन्हें बेवजह निशाना बनाया जा रहा-

फैसल और उनके सभी साथी ब्रज की चौरासी कोसी परिक्रमा करने के लिए दिल्ली से मथुरा गए थे और इस दौरान नंदबाबा मंदिर में भी पुजारी समेत अन्य लोगों से मुलाक़ात की थी और धार्मिक परिचर्चा भी की थी।आगे वो कहते हैं हम 84 कोस की सद्भावना यात्रा कर रहे थे।

यात्रा के समापन के बाद हम नंदबाबा के मंदिर में पहुँचे थे। यहां हमने पुजारियों की मंज़ूरी के बाद नमाज़ पढ़ी थी। अब पता चला है कि हमारे ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज हुआ है। उस समय पुजारी हमसे प्रसन्न थे, वो सीधे-सादे आदमी हैं, ज़रूर किसी दबाव में होंगे। नंद बाबा मंदिर के पुजारी ने उनके मंदिर में आने और दर्शन की अनुमति लेने संबंधी बात स्वीकार की है लेकिन उनका कहना है कि बाद में नमाज़ पढ़ने वाली तस्वीरें वायरल होने के बाद समाज के लोगों में नाराज़गी बढ़ गई।

आजकल अगर कोई भी हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की बात करेगा, उसे लपेट लिया जाएगा। जेल भेज दिया जाएगा। ऐसा प्रचार किया जाएगा कि ये तो आतंकवादी है, और अगर उसके नाम के आगे “खान” या “मोहम्मद” या “अली” या “अहमद” भी जुड़ा होगा, तब तो खतरा और भी ज़्यादा है।फैसल खान ने।

हिंदुओं और मुसलमानों को साथ लाने की कोशिश को दोहरा रहे हैं।

 

खुदाई खिदमतगार संस्था के वाहक हैं फैसल-

ख़ुदाई ख़िदमतगार दिल्ली की एक ग़ैर-सरकारी संस्था है जो शांति, भाईचारा और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए काम करने का दावा करती है।ख़ुदाई ख़िदमतगार नाम की संस्था का गठन स्वाधीनता आंदोलन के दौरान साल 1929 में गांधीवादी नेता ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान ने भी किया था।

फ़ैसल ख़ान कहते हैं कि उनकी प्रेरणा वही संस्था है।फ़ैसल ख़ान और उनके साथियों ने साल 2011 में ख़ुदाई ख़िदमतगार संगठन की शुरूआत की और उनका दावा है कि संस्था अपने मूल उद्देश्यों के तहत सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश फैलाती है।

संस्था की ओर से सभी धर्मों के बीच सौहार्द बनाने और इसका प्रचार-प्रसार करने की कोशिशें अक़्सर होती रहती हैं।

कोरोना संक्रमण के दौरान बदल रहे हैं उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण, जन मुद्दों पर एकजुट हो रहा है विपक्ष!

सर सैयद के कर्म भूमि अलीगढ़ से पढ़े है फैसल-

48 वर्षीय फ़ैसल ख़ान यूपी में फ़र्रुख़ाबाद ज़िले के क़ायमगंज के रहने वाले हैं।अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। पढ़ाई के दौरान ही वे मेधा पाटेकर और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर संदीप पांडेय जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ जुड़ गए।

फ़ैसल 1990 के दशक में डॉक्टर संदीप पांडेय के साथ उस समूह के भी सदस्य रहे जिसने दिल्ली से सामाजिक और धार्मिक सौहार्द के लिए दिल्ली से लाहौर तक की पदयात्रा की थी।

इसके अलावा वो नर्मदा बचाओ आंदोलन और दूसरे आंदोलनों में भी सक्रिय रहे। उसके बाद साल 2011 में उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव के लिए ख़ुदाई ख़िदमतगार संस्था शुरू की और संस्था के तहत अक़्सर कोई न कोई कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं।

धर्मनिरपेक्षता का जीता जागता उदाहरण है फैसल-

फोटो सोर्स – www.hindusforhumanrights.org

फैसल खान जैसे लोग मंदिर के पुजारी से टीका भी लगवाते हैं, कृष्ण जन्माष्टमी भी मनाते हैं, और इजाज़त मिलने पर मंदिर में नमाज़ भी पढ़ लेते हैं। हमें ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है। लेकिन ये दुर्भाग्य है हम उन्हें जेल में डाल रहे हैं।

साल 2015 दिल्ली के  गफ़्फ़ार मंज़िल इलाक़े में फ़ैसल ख़ान ने ‘सबका घर’ नाम से एक घर बनवाया जिसमें तमाम धर्मों के लोग न सिर्फ़ एक साथ रहते हैं बल्कि अपने-अपने धर्मों का पालन करते हुए अन्य धर्मों के त्योहार भी मिल-जुलकर मनाते हैं।

साल 2018 में जाने-माने संत मुरारी बापू ने उन्हें अपने यहां बुलाकर सद्भावना पर्व पर पुरस्कार दिया था और अपनी सभा में बोलने का मौका भी दिया था। फ़ैसल ख़ान से रामचरित मानस के दोहे और चौपाई सुनकर मुरारी बापू इतने गदगद हुए कि जामिया नगर इलाक़े में उनके आवास ‘सबका घर’ आने की इच्छा भी जताई थी।

Exit mobile version