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म्यांमार जहां की सेना अपने ही देश के लोगों का खून बहा रही है।

म्यामांर जहां की सेना अपने ही देश के लोगों का खून बहा रही है।
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म्यांमार में 10 साल पहले लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाई गई लेकिन अब यहाँ एक बार फिर सैन्य शासन लौट आया है। म्यांमार की सेना ने देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की और राष्ट्रपति यू विन मिंट समेत कई नेताओं को गिरफ्तार करने के बाद सत्ता अपने हाथ में ले ली है।  देश में एक साल तक आपातकाल लगाया हुआ है।

सुरक्षाबल ‘निहत्थे आम नागरिकों की हत्या’ कर रहे हैं-

फोटो सोर्स – bebakpost.com

म्यांमार में आपातकाल से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं जबकि सेना ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ सख़्ती से पेश आने की चेतावनी पहले ही दी थी। सेना ने चेतावनी देते हुए कहा कि लोगों को बीते दिनों हुई मौतों से सबक लेना चाहिए कि उन्हें कहीं भी गोली लग सकती है। म्यांमार में इसी साल फरवरी में सेना ने तख़्ता पलट किया और सत्ता पर काबिज़ हो गई।  जब से सेना विरोधी प्रदर्शनों में 320 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

म्यांमार की सेना की ‘स्थापना दिवस’ पर भी मारे गये लोग-

फोटो सोर्स – dw.com

म्यांमार में शनिवार को ‘ऑर्म्ड फोर्सेज़ डे’ के मौके पर सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच ज़बर्दस्त झड़पें हुई हैं।  सुरक्षाबलों की गोलियां से कम से कम 60 लोगों के मारे जाने की आशंका है।  ख़बरों के मुताबिक, मृतकों की संख्या 90 से अधिक भी हो सकती है। म्यांमार के प्रमुख शहरों ख़ासतौर पर रंगून में प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए सुरक्षाबलों ने काफी तैयारी की थी। यहाँ भी प्रदर्शन करने पर सेना ने सैकड़ों लोगों को मार दिया। जानकारी के मुताबिक, किसी भी विरोध को कुचलने के लिए सड़कों पर सेना तैनात है और फोन लाइनों को बंद कर दिया गया है। यहां अंतरराष्ट्रीय प्रसारकों को ब्लॉक कर दिया गया है और स्थानीय स्टेशन ऑफ एयर हो गए हैं।

सेना ने दी थी ‘संविधान खत्म’ करने की चेतावनी-

फोटो सोर्स – tv9hindi.com

सेना ने चेतावनी दी थी कि चुनाव में वोट के फर्जीवाड़े की शिकायत पर यदि कार्रवाई नहीं हुई तो सेना कदम उठाएगी। सेना का कहना था कि 8 नवंबर, 2020 को चुनावों में बड़े पैमाने पर मतदान के दौरान धोखाधड़ी हुई थी। इस चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने 83 फीसदी सीटें जीत थीं। सेना और सरकार के बीच तभी से तनाव था जिसकी परिणाम तख्तापलट हुआ।

आपातकाल के बाद चुनाव कराने के आसार-

सैन्य प्रमुख मिन आंग लाइंग ने शनिवार को नेशनल टेलीविज़न पर अपने संबोधन में कहा कि वे ‘लोकतंत्र की रक्षा’ करेंगे और वादा किया कि देश में चुनाव कराए जाएंगे।

लेकिन चुनाव कब कराए जाएंगे, उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं बताया। इस दौरान चुनाव आयोग में सुधार भी किया जाएगा और पिछले साल नवंबर में होने वाले चुनावों की समीक्षा भी की जाएगी।

लंबे समय नजरबंद रहीं सू की-

फोटो सोर्स – aajtak.in

म्यांमार में 2011 तक सेना का शासन रहा है। आंग सान सू की ने कई साल तक देश में लोकतंत्र लाने के लिए लड़ाई लड़ी। इस दौरान उन्हें लंबे समय तक घर में नजरबंद रहना पड़ा। लोकतंत्र आने के बाद संसद में सेना के प्रतिनिधियों के लिए तय कोटा रखा गया। संविधान में ऐसा प्रावधान किया गया कि सू की कभी राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ सकतीं।

दरअसल, नवंबर, 2020 के चुनावों में संसद के संयुक्त निचले और ऊपरी सदनों में सू की की पार्टी ने 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन सेना के पास 2008 के सैन्य-मसौदा संविधान के तहत कुल सीटों का 25 फीसदी आरक्षित हैं। कई प्रमुख मंत्री पद भी सेना के लिए आरक्षित हैं। तभी से सेना आरोप लगा रही थी कि चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली हुई। हालांकि, सेना चुनाव में धांधली का सबूत नहीं दे पाई।

भारत से मुकाबले को चीन बढ़ा रहा प्रभाव-

भारत और म्यांमार के बीच 1,600 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है और दोनों देशों के बीच अच्छे पड़ोसी के काफी पुराने रिश्ते रहे हैं। लेकिन चीन इस सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड में चीन अलगाववाद तथा घुसपैठ बढ़ाना चाहता है। यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज के मुताबिक, म्यांमार के विद्रोहियों को चीन हथियार देकर भारत के खिलाफ उकसा रहा है। दूसरी तरफ, भारत यहां लोकतंत्र का समर्थक रहा है। ऐसे में म्यांमार की सेना के चीन की तरफ झुकाव की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

 | Voxy Talksy Hindi | 

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