भारत का एक ऐसा प्रधानमंत्री जो था तो कॉंग्रेसी लेकिन उसे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल था

भारत का एक ऐसा प्रधानमंत्री जो था तो कॉंग्रेसी लेकिन उसे पहले गैर कॉंग्रेसी प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल था
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अक्सर आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा कि आजादी के बाद कांग्रेस ने 70 सालों तक राज किया, लेकिन इन 70 सालों में एक ऐसा भी व्यक्ति रहा जो था तो कांग्रेसी लेकिन उसे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल था!

अब आप सोच रहे होंगे कि हम किसकी बात करने जा रहे हैं तो हम बात करने जा रहे हैं साल 1977-1979 के बीच देश चौथे प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई की।

इमेरजेंसी के बाद 1977 में जयप्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसने इंदिरा गांधी के शासन वाली कांग्रेस सरकार को पूरी तरह उखाड़ फेंका और 1977 के आम चुनावों में जनता पार्टी की भारी जीत हुई।

मोरारजी देसाई को जनता पार्टी ने संसदीय नेता के तौर पर चुना, और देसाई देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनें।

मैं टूट सकता हूं लेकिन झुक नहीं सकता

मैं टूट सकता हूं पर झुक नहीं सकता, मोरारजी भाई अक्सर ये कहा करते थे और उन्होंने कई बार इसको निभाया। उनके इसी अड़ियल रवैये की वजह से दो बार उन्होंने कुर्सी तक छोड़ दी। पहली बार 1970 में जब इंदिरा गांधी ने उनसे वित्त मंत्रालय छीनकर 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया।

दूसरी बार अपने मंत्रिमंडल में बीजेपी और आरएसएस के बीच दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर वो अड़ गए। नतीजा बीजेपी ने जनता पार्टी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और मोरारजी सरकार गिर गई।

साल 1970 तक वो कांग्रेसी ही थे, पहले जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल में फिर इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में वो गृहमंत्री और वित्तमंत्री रहे। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ आजादी की लड़ाई भी लड़ी और जेल भी गए,इमरजेंसी, जेपी आंदोलन, जनता पार्टी से गुजरते हुए देसाई देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे।

उनका कार्यकाल छोटा लेकिन विवादित रहा, लेकिन उनकी खुद की छवि पर कोई दाग नहीं लग पाया। हालांकि मोरारजी की सांख पर आंच तब आई जब उनके बेटे के खिलाफ पैसों की हेराफेरी के आरोप लगे। चाहें खुद उनकी छवि हमेशा बेदाग रही हो, लेकिन बेटे के खिलाफ कार्यवाही ना करना उनके सहयोगियों के लिये चौंकाने वाला रहा।

गाँधी के आंदोलन में शामिल होने को सिविल सेवा से इस्तीफा दे दिया-

भारत के एक छोटे से गांव के एक अध्यापक के घर में जन्में मोरारजी देसाई ने अपनी पढ़ाई बंबई विश्वविद्यालय से पूरी की और बाद में सिविल सर्विसेस ज्वाइन कर ली।1930 में देसाई ने महात्मा गांधी की सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने के लिए सिविल सेवाओं से इस्तीफा दे दिया।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वो लगभग 10 साल की जेल में रहे। इसके बाद के वर्षों में, देसाई कई बार और जेल गए लेकिन लगातार समाजिक कामों में सक्रिय रहे।आजादी के बाद 1952 में मोरारजी देसाई बॉम्बे राज्य के मुख्यमंत्री बने बंबई प्रेसिडेंसी में उस वक्त बड़ौदा और गुजरात के राज्य भी शामिल थे।

मोरार जी भी 1956 में जवाहरलाल नेहरू सरकार में वित्त मंत्री बने, फिर उन्होंने 1963 में इस्तीफा दे दिया। देसाई सबसे लंबे समय तक वित्त मंत्री रहे और उन्होने सबसे ज्यादा बजट पेश किए। 1967 में उन्हें इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में उप प्रधान मंत्री बनाया गया।

कैसे बने गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री –

जब कॉंग्रेस में विघटन शुरू हुआ तो पार्टी कई टुकड़ों में बंटना शुरु हो गई। मोरारजी देसाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सिंडिकेट) पार्टी में शामिल हुए, जबकि इंदिरा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (रूलिंग) नाम से संगठन बनाया। साल 1969 में मोरार जी भाई कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष में चले गए। इसके बाद से वो लगातार विपक्ष में ही रहे।

1975 में इलाहाबाद हाई कोर्ट से चुनाव में धोखधड़ी मामले में इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला आया। 1975-77 में इमरजेंसी के दौरान देसाई और अन्य विपक्षी नेताओं को इंदिरा गांधी ने जेल भिजवा दिया।

इमेरजेंसी के बाद 1977 में जयप्रकाश नारायण के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसने इंदिरा गांधी के शासन वाली कांग्रेस सरकार को पूरी तरह उखाड़ फेंका और 1977 के आम चुनावों में जनता पार्टी की भारी जीत हुई।मोरारजी देसाई को जनता पार्टी ने संसदीय नेता के तौर पर चुना, और देसाई देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनें।

साल 1979 में जनता पार्टी के दो और वरिष्ठ सदस्य राज नारायण और चरण सिंह ने देसाई सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद 83 साल के देसाई को प्रधानमंत्री पद और राजनीति से इस्तीफा देना पड़ा। राजनीति से सन्यास लेने के बाद देसाई मुबई में रहते रहे और 10 अप्रैल 1995 को 99 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

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