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28 साल चली सुनवाई के बाद बाबरी विध्वंस का फैसला देने वाले सीबीआई के विशेष जज सुरेंद्र कुमार यादव

28 साल चली सुनवाई के बाद बाबरी विध्वंस का फैसला देने वाले सीबीआई के विशेष जज सुरेंद्र कुमार यादव
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28 साल पुराने बाबरी विध्वंस केस (Babri Demolition Verdict) में आखिरकार फैसला आ गया है।

लखनऊ की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने मामले में फैसला सुनाते हुए लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह, नृत्यगोपाल दास सहित सभी 32 आरोपियों को बरी (all accused acquitted) कर दिया है। इस मामले में बरी हुए विनय कटियार ने NDTV से कहा कि मथुरा को लेकर जो संत चाहेंगे वो करेंगे, कारसेवा का फैसला संतों का होगा।

जस्टिस सुरेंद्र कुमार यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा कि 6 दिसंबर को हुई घटना आकस्मिक थी और इसके पीछे किसी भी तरह की साजिश नहीं थी। विहिप के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल विवादित ढांचे के अंदर रखी मूर्तियों को सुरक्षित रखना चाहते थे।

200 पन्नों का था फैसला

2000 पन्नों के अपने फैसले का सारांश पढ़ते हुए जज ने कहा कि घटना वाले दिन विहिप व उसके तत्कालीन अध्यक्ष स्वर्गीय अशोक सिंघल ने उग्र भीड़ को रोकने की भी कोशिश की। जज ने अशोक सिंघल के एक वीडियो का भी जिक्र अपने फैसले में किया। जज ने कहा कि जो भी आरोपी वहां मौजूद थे, सभी ने कारसेवकों को रोकने का प्रयास किया। ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि इसके पीछे साजिश रची गई थी।

सुरेंद्र कुमार यादव की ज़िंदगी में फ़ैज़ाबाद रह-रह कर उनके पास लौटता रहा

28 बरस पुराने इस आपराधिक मुक़दमे की सुनवाई करने वाले स्पेशल जज सुरेंद्र कुमार यादव की ज़िंदगी में ऐसा लगता है कि फ़ैज़ाबाद रह-रह कर उनके पास लौटता रहा है।
पहली पोस्टिंग फ़ैज़ाबाद, एडीजे के तौर पर पहला प्रमोशन फ़ैज़ाबाद में और उसी फ़ैज़ाबाद (अब अयोध्या ज़िला) में रही बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर आख़िरी फ़ैसला।
लखनऊ स्थित विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के पीठासीन अधिकारी की हैसियत से 30 सितंबर, 2020 को उन्होंने इस मुक़दमे का फ़ैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट ने 2 साल में सुनवाई पूरी करने के लिए दिए थे आदेश

पांच साल पहले 5 अगस्त, 2015 को उन्हें इस मुक़दमे में विशेष न्यायाधीश नियुक्त किया गया था,19 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें रोज़ाना ट्रायल कर इस मामले की सुनवाई दो साल में पूरा करने का निर्देश दिया था।
इस मुक़दमे की अहमियत का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती समेत कुल 32 अभियुक्तों को जज सुरेंद्र कुमार यादव की अदालत ने उस दिन अदालत में हाज़िर रहने के लिए कहा था।

हालांकि आडवाणी, जोशी समेत छह लोग अदालत में हाज़िर नहीं हुए और वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए अदालत की कार्रवाई में शामिल हुए

कौन हैं जज सुरेंद्र कुमार यादव?

पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के पखानपुर गांव के रामकृष्ण यादव के घर पैदा हुए सुरेंद्र कुमार यादव 31 बरस की उम्र में राज्य न्यायिक सेवा के लिए चयनित हुए थे।
फ़ैज़ाबाद में एडिशनल मुंसिफ़ के पद की पहली पोस्टिंग से शुरू हुआ उनका न्यायिक जीवन ग़ाज़ीपुर, हरदोई, सुल्तानपुर, इटावा, गोरखपुर के रास्ते होते हुए राजधानी लखनऊ के ज़िला जज के ओहदे तक पहुँचा।
अगर उन्हें विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के जज की ज़िम्मेदारी न मिली होती तो वे पिछले साल सितंबर के महीने में ही रिटायर हो गए होते।

किस मिजाज के जज थे विशेष न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार?

सेंट्रल बार एसोसिएशन, लखनऊ के महासचिव एडवोकेट संजीव पांडेय इस पर कहते हैं, “वे बहुत नरम मिज़ाज के संजीदा क़िस्म के शख़्स हैं। वे ख़ुद पर किसी क़िस्म के दबाव को कभी हावी नहीं होने देते। उन्हें अच्छे और ईमानदार जजों में गिना जाता है।”

पिछले साल लखनऊ ज़िला जज के पद से जब वे सेवामुक्त हुए थे तो बार एसोसिएशन ने उनका फ़ेयरवेल किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले ही उनकी रिटायरमेंट की मियाद बढ़ा दी थी और उन्हें विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के पीठासीन अधिकारी के पद पर बने रहकर बाबरी मस्जिद विध्वंस केस की सुनवाई पूरी करने के लिए कहा था।

यानी वो ज़िला जज के रूप में रिटायर हो गए, मगर विशेष न्यायाधीश बने रहे।

सुप्रीम कोर्ट ने किया था (विशेष शक्तियां )आर्टिकल 142 का प्रयोग

रिटायर होने जा रहे किसी न्यायाधीश का किसी एक ही मामले के लिए कार्यकाल का बढ़ाया जाना अपने आप में ऐतिहासिक था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल किया था।
इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार है कि ‘मुकम्मल इंसाफ़’ के लिए अपने सामने लंबित किसी भी मामले में वो कोई भी ज़रूरी फ़ैसला ले सकता है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट जनहित में पहले भी कई बार अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कर चुकी है लेकिन जानकारों का कहना है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में शायद ऐसा पहली बार हुआ है कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने रिटायर होने जा रहे ट्रायल जज को सुनवाई पूरी होने तक पद पर बने रहने के लिए कहा था।

जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट को ये बताया था कि राज्य न्यायिक सेवा में सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने को लेकर कोई प्रावधान नहीं है।

इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या प्रकरण में ‘मुकम्मल इंसाफ़’ के लिए और भी बहुत कुछ कहा, “कोई नई सुनवाई नहीं होगी जब तक कि ट्रायल की पूरी प्रक्रिया संपन्न न हो जाए। सुनवाई कर रहे जज का तबादला नहीं किया जाएगा। मुक़दमे की सुनवाई तब तक स्थगित नहीं की जाएगी जब तक कोर्ट को ये न लगे कि किसी ख़ास तारीख़ को सुनवाई करना मुमकिन नहीं रह गया है। इस सूरत में अगले दिन या नज़दीकी तारीख़ को सुनवाई की जा सकती है लेकिन रिकॉर्ड पर ऐसा करने की वजह लिखित में दर्ज करनी होगी।

एफ आई आर संख्या 197 और 198

कांड संख्या 197 में लाखों कार सेवकों के ख़िलाफ़ डकैती, लूटपाट, चोट पहुँचाने, सार्वजनिक इबादतगाह को नुक़सान पहुँचाने और धर्म के नाम पर दो समुदायों के बीच वैमनस्यता बढ़ाने का आरोप लगाया गया था।

दरअसल, जज सुरेंद्र कुमार यादव को जिस बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले पर फ़ैसला देना था, उसकी पृष्ठभूमि 6 दिसंबर, 1992 को दर्ज किए गए दो एफ़आईआर से जुड़ी हुई हैं।

कांड संख्या 198 में लालकृष्ण आडवाणी, अशोक सिंघल, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, मुरली मनोहर जोशी, गिरिराज किशोर और विष्णुहरि डालमिया जैसे लोग नामज़द किए गए थे। इन पर धार्मिक वैमनस्यता और भड़काऊ भाषण देने का आरोप था।

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17 आरोपी अब तक मृत हो चुके थे

इस मामले में जो 17 अभियुक्त अब नहीं रहे उनमें बाल ठाकरे, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णुहरि डालमिया शामिल हैं।

मुक़दमे के दौरान सामने आई चुनौतियां

‘अभियुक्तगण व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हैं, कोई साक्षी भी उपस्थित नहीं है।’

‘साक्षी को गवाही के लिए तलब किया गया था किंतु आज वे न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सके। उनके द्वारा कोर्ट को बताया गया कि वे कल उपस्थित होंगे।

‘अभियुक्त व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हैं, गवाह ग़ैर-हाज़िर है क्योंकि मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान में उसने अपना जो पता दिया था, उस पर वो रहता ही नहीं है।

‘गवाह को वीएचएस वीडियो कैसेट देखकर साबित करना था। सीबीआई के पास कैसेट दिखाने के लिए कोर्ट में उपकरण ही नहीं था। सीबीआई का कहना है कि दूरदर्शन के दिल्ली केंद्र के टेक्नीकल स्टाफ़ ही आकर इस कैसेट को चला सकते हैं।

‘साक्षी द्वारा ईमेल के ज़रिये ये सूचना दी गई है कि वे दिल्ली में हैं और 69 वर्ष के हैं और यात्रा करने में असमर्थ हैं।

ये सब कुछ बानगियां हैं जो मुक़दमे के दौरान जज सुरेंद्र कुमार यादव की अदालत में रिकॉर्ड पर दर्ज की गईं थीं। इसके अलावा उन्हें हाज़िरी माफ़ी की दर्जनों याचिकाओं का भी निपटारा करना पड़ा।

एक ट्रायल जज के लिए ये सब कितना चुनौतीपूर्ण होता है?

रिटायर्ड जज एससी पाठक कहते हैं, “जो लोग गवाही नहीं देना चाहते हैं, वो टाल मटोल करते ही हैं। किसी मुक़दमे के दौरान ऐसी परिस्थितियां आती रहती हैं लेकिन कोर्ट के पास ऐसे अधिकार होते हैं कि वो गवाह को तलब कर सके। अगर गवाह नहीं आता है तो उस पर सख़्ती की जा सकती है, उसके ख़िलाफ़ वॉरंट जारी किया जा सकता है। उसे गिरफ़्तार करके कोर्ट के सामने पेश कराया जा सकता है। न्यायालय के पास ऐसी शक्तियां होती हैं।

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