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Kisan Andolan: 30 को एक बार फिर से होगी सरकार और किसानों के बीच वार्ता

Kisan Andolan: 30 को एक बार फिर से होगी सरकार और किसानों के बीच वार्ता
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Kisan Andolan: केंद्र सरकार द्वारा जब से तीनों कृषि कानून लाए गए हैं तब से किसानों के द्वारा इन कानूनों के विरोध में प्रदर्शन किया जा रहा है करीब 32 दिनों से चल रहे इस आंदोलन में किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं लेकिन किसी भी प्रकार का कोई निष्कर्ष निकलता हुआ नजर नहीं आया है

ऐसे में किसानों के द्वारा सरकार को सशर्त वार्ता को एक पत्र लिखा गया था जिसके जवाब में सरकार ने कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को केंद्रीय कृषि मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि वो 30 दिसंबर दोपहर 2 बजे बैठक के लिए आएं।

पहली बैठकों की ही तरह इस बार भी विज्ञान भवन में केंद्र और किसान नेताओं की बातचीत होगी। इससे पहले किसानों ने सरकार को जवाब में बताया था कि वो 29 दिसंबर सुबह 11 बजे बैठक के लिए तैयार हैं। अब सरकार ने इस प्रस्ताव का जवाब दिया है।

केंद्र सरकार की तरफ से किसानों को कहा गया है कि,

“आपने साफ कहा है कि किसान संगठन खुले मन से वार्ता करने के लिए हमेशा तैयार रहे हैं और रहेंगे। भारत सरकार भी साफ नीयत और खुले मन से प्रासंगिक मुद्दों के तर्कपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है।

इस बैठक में आपके द्वारा दिए गए विवरण में कृषि कानूनों और एमएसपी की खरीद व्यवस्था के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश 2020 और विद्युत संशोधन विधेयक 2020 में किसानों से संबंधित मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।”

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किसानों की पहली शर्त- कानून खत्म करने पर होगी चर्चा-

Kisan Andolan:सरकार द्वारा किसानों को भेजी गई चिट्ठी में क्या लिखा, ये तो हमने आपको बता दिया। लेकिन इससे पहले जब सरकार की चिट्ठी के जवाब में किसानों ने तारीख और समय बताया था तो उसमें कई बातों का जिक्र हुआ।

किसानों ने सरकार को बताया कि वो अपनी पूरी ताकत उनके आंदोलन को कमजोर करने और उसे गलत साबित करने पर न लगाए। साथ ही सबसे जरूरी बात ये थी कि किसानों की कृषि कानूनों को खत्म करने वाली मांग अब तक कायम है।

चिट्ठी की शुरुआती दो शर्तों में साफ कहा गया था कि बैठक के दौरान कृषि कानूनों को खत्म करने को लेकर आगे की रणनीति पर बातचीत होगी। साथ ही दूसरी शर्त ये थी कि एमएसपी को कानूनी गारंटी देने को लेकर चर्चा की जाएगी।

सरकार की चिट्ठी के क्या हैं मायने?

किसानों की इन शर्तों के बाद गेंद पूरी तरह से केंद्र सरकार के पाले में थी। लेकिन अब केंद्र ने अपनी तरफ से भी बातचीत की तारीख और समय बता दिया है। अब आप सोच रहे होंगे कि, किसानों की कानून खत्म करने की शर्त के बावजूद सरकार ने हामी कैसे भर दी?

इसके लिए एक बार फिर केंद्र की इस चिट्ठी में लिखी बातों पर गौर करना होगा। केंद्र सरकार की तरफ से चिट्ठी में कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। जिनमें एक लाइन ये है- भारत सरकार भी साफ नीयत और खुले मन से प्रासंगिक मुद्दों के तर्क पूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है।

यहां “प्रासंगिक” और “तर्कपूर्ण” पर गौर कीजिए, मतलब साफ है कि जिन बिंदुओं पर आपत्ति है उनके तर्क पूर्ण समाधान पर ही बात होगी।

जबकि किसानों से इन्हीं शब्दों में पहले भी बातचीत सरकार कर चुकी है,यानी भले ही किसानों की बातचीत को लेकर पहली शर्त ये रही हो कि कानूनों को रद्द करने की रणनीति पर बात होगी, लेकिन सरकार ने साफ किया है कि वो सिर्फ कानून से जुड़े प्रासंगिक मुद्दों पर ही चर्चा करेगी।

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इस वार्ता से भी हल निकलने आसार कम ही दिख रहे हैं-

Kisan Andolan:कुल मिलाकर अब इस बातचीत के बाद भी कोई हल निकलता हुआ फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। अब आपको कुछ और तथ्य बताते हैं, जिनसे साफ है कि केंद्र सरकार अपने इन कानूनों पर पीछे नहीं हटने वाली है।

केंद्रीय कृषि मंत्री रोजाना सरकार और कानून समर्थक किसान संगठनों से मुलाकात कर रहे हैं। ऐसा कोई भी दिन नहीं गुजर रहा, जब मंत्री ट्वीट न करते हों कि उन्हें कृषि कानूनों पर भरपूर समर्थन मिल रहा है और किसान खुश हैं। यानी जो बात सरकार खुद कहना चाहती है वो अब किसानों के हवाले से किसानों को ही बताई जा रही है।

सोमवार 28 दिसंबर को भी एक बड़े ऑडिटोरियम में किसान संगठनों से कृषि मंत्री ने मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने ट्विटर पर लिखा,

“आज देश भर से आये विभिन्न किसान संगठनों, के प्रतिनिधिमंडल ने नए कृषि सुधार बिलों के समर्थन में ज्ञापन दिया और कहा कि ये सभी बिल किसानों के हित में हैं, इन्हें वापस नहीं लिया जाना चाहिए। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का आभार भी व्यक्त किया।

 

Kisan Andolan:तो जब खुद कृषि मंत्री रोजाना किसानों के हवाले से ये बता रहे हैं कि कृषि कानूनों को किसी भी हाल में वापस नहीं लिया जाना चाहिए और सरकार को किसी दबाव में नहीं आना चाहिए तो ये साफ है कि किसानों की पहली शर्त तो किसी भी हाल में पूरी नहीं होगी।

लेकिन किसानों का कहना है कि जब तक कानून वापसी नहीं होती है उनकी घर वापसी भी नहीं होगी। इसीलिए अब इस 7वें दौर की बैठक का नतीजा भी अभी से साफ नजर आ रहा है। हालांकि सरकार अगर एमएसपी को लेकर कानूनी गारंटी की बात करती है तो किसान थोड़े नरम जरूर पड़ सकते हैं।

शरद पवार ने कहा किसानों के आंदोलन को गंभीरता से ले केंद्र-

किसान आंदोलन को लेकर विपक्ष भी लगातार बीजेपी सरकार पर हमलावर है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि सरकार को इस आंदोलन को गंभीरता से लेना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसके बारे में सोचना होगा।

उन्होंने कहा,“मुझे लगता है कि सरकार को इस पूरे आंदोलन को गंभीरता से लेना चाहिए। बातचीत और उससे हल निकालने की कोशिश होनी चाहिए। मैंने सुना है कि वहां करीब पांच किसान अब तक सुसाइड कर चुके हैं। अगर इस तरह के हालात बन रहे हैं तो ये देश के लिए सही नहीं हैं।

30 दिसंबर को सरकार और किसानों की मीटिंग में क्या होता है वह हम देखेंगे। कोई रास्ता निकला तो खुशी होगी, नहीं निकला तो हमें बैठना होगा और सोचना होगा।”

टिकैत ने कहा- मांग नहीं मानी तो नहीं हटेंगे-

Kisan Andolan:वहीं इस बातचीत को लेकर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि अगर सरकार ने बैठक में उनकी बात नहीं मानी तो वो दिल्ली में ही बैठे रहेंगे।

उन्होंने कहा, “हम बैठक में शामिल होंगे और जो प्रस्ताव हमने रखे हैं, उस पर बात करेंगे। वहीं बात ठीक-ठाक रहती है तो अन्य मुद्दे भी बैठक में बताएंगे। बिल वापस नहीं लेंगे तो फिर बात करेंगे।

 

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