जयप्रकाश नारायण जीवित थे और प्रधानमंत्री संसद में उनकी शोक सभा मनवा रहे थे।

इस किस्से का ज़िक्र चंद्रशेखर की ऑटोबायोग्राफी ‘जीवन जैसा जिया’ में है। ये किताब सुरेश शर्मा के संपादन में राजकमल प्रकाशन से छपी है।

जयप्रकाश नारायण
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आज जेपी (जयप्रकाश नारायण)की पुण्यतिथि है। वही जेपी जिन्होंने अपनी ताकत का लोहा इंदिरा को मनवा दिया और सत्ता से बेदखल होने के डर से इंदिरा गाँधी ने रातों रात पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। राजनीतिक पुराधाओ की मानें तो यह लोकतंत्र के लिए सबसे शर्मनाक और घृणित दिन था, जिसके दाग इतिहास से कभी साफ नही किये जा सकेंगे।

 

फोटो क्रेडिट – amarujala.com

किस्सा उन दिनों का है जब जयप्रकाश नारायण गुर्दे की बीमारी के कारण अस्पताल में थे। जसलोक अस्पताल, मुंबई, ये समय था मार्च 1979 का। चंद्रशेखर दिन भर उनके साथ रहते थे। तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी, तो इंग्लैंड से डॉक्टर बुलाए गए। उन्होंने रिपोर्ट दी कि JP अब बहुत दिनों के मेहमान नहीं हैं।

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जब रामनाथ गोयनका ने कहा कि जयप्रकाश नारायण का अंतिम संस्कार उसी तरह हो जैसे गांधी का हुआ था-

जयप्रकाश नारायण

चंद्रशेखर उन दिनों इंडियन ऑयल गेस्ट हाउस में ठहरे थे। एक दिन जब वो अस्पताल से गेस्ट हाउस आए, तो उनके साथ रामनाथ गोयनका, मोहन धरिया और नाना जी देशमुख थे। रामनाथ गोयनका राष्ट्रवादी पत्रकार थे। मोहन धरिया तत्कालीन वाणिज्य मंत्री थे और नाना जी देशमुख जनसंघ के पुराने नेता थे। गेस्ट हाउस में रामनाथ गोयनका ने बहुत भावुक होकर कहा-

अगर JP को कुछ होता है, तो हमें प्रयास करना चाहिए कि उनका अंतिम संस्कार उसी प्रकार हो जैसे महात्मा गांधी का हुआ था।

उन्होंने चंद्रशेखर से कहा कि आप मोरारजी देसाई से बात करें। मोरारजी उस समय देश के प्रधानमंत्री थे। चंद्रशेखर ने इनकार कर दिया।

चंद्रशेखर ने कहा- मैं नहीं चाहता कि मैं इस संबंध में सरकार से कोई बात करूं। यह काम सरकार का है। वो तय करेगी।

फिर मोहन धरिया ने अपनी ओर से थोड़ी और कोशिश की और उनकी बात हुई जॉर्ज फर्नांडीज़ से। जॉर्ज ने कहा कि सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है। उन्होंने चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम से भी बात की है। इतना सुनते ही रामनाथ गोयनका रोने लगे। चंद्रशेखर से ये देखा नहीं गया। उन्होंने कहा-

आप चिंता न करें। हम सारा प्रबन्ध करेंगे। भारत सरकार का जो मन हो करे, मगर JP को वैसे ही राजकीय सम्मान से विदा किया जाएगा जैसा आप चाहते हैं।

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प्रधानमंत्री ने सुनी सुनाई बातों पर जेपी की शोकसभा की घोषणा कर दी-

जयप्रकाश नारायण

चन्द्रशेखर, रामनाथ गोयनका, मोहन धरिया, नानाजी देशमुख की बातें जहां हो रही थीं, वहां एक शख्स मौजूद था। खुफिया, मगर था पहुंच वाला आदमी। उसने पूरी बात सुनी नहीं कि ठीक से समझ नहीं पाया। जो भी हो, उसने ये नतीजा निकाल लिया कि JP की मौत हो गई और इस बात को अभी लोगों से छुपाया जा रहा है।

माने कि ये लोग (चंद्रशेखर और बाकी लोग) ऐलान नहीं कर रहे, लेकिन अंतिम संस्कार के इंतज़ाम में लग गए हैं। उसने दिल्ली ख़बर कर दी और सरकारी तंत्र के रास्ते ये सूचना प्रधानमंत्री तक पंहुच गई।

प्रधानमंत्री भी महान निकले। उन्होंने बिना छानबीन कराए, बिना कोई तफ़्तीश करवाए, बस सुनी-सुनाई बातों पर संसद में ऐलान कर दिया। फिर क्या था, संसद में शोक सभा होने लगी।

इधर जयप्रकाश नारायण ज़िंदा थे और अस्पताल के बाहर उनकी मौत का हल्ला मच गया-

जयप्रकाश नारायण

उधर JP के करीबियों को तनिक भी ख़बर नहीं थी। वो तो ये हुआ कि चंद्रशेखर ने किसी निजी काम से दिल्ली के पार्टी दफ़्तर में फोन किया। वहां से बताया गया कि सब संसद गए हैं।

चंद्रशेखर ने पूछा कि सारे लोग एकसाथ क्यों गए? तब पता चला कि संसद में JP के निधन की शोकसभा की जा रही है। चंद्रशेखर हैरान-परेशान। JP ज़िंदा थे। हालत ख़राब थी, मगर थे तो जीवित।

अस्पताल में इलाज हो रहा था उनका। चंद्रशेखर समझ गए कि किसी ने अफ़वाह उड़ा दी है। वो भागे-भागे अस्पताल पहुंचे, तो देखा वहां भी हज़ारों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी।

जब चन्द्रशेखर ने कार के ऊपर चढ़कर सबको सच्चाई बताई-

सच तो बताना था। जल्द-से-जल्द बताना था। तो चंद्रशेखर ने वहां अस्पताल के बाहर जाम में फंसी एक कार की छत पर चढ़कर JP के ज़िंदा होने की बात बताई। लोगों का कन्फ़्यूज़न ख़त्म हुआ। इस वाकये के करीब छह महीने बाद तक ज़िंदा रहे JP। जिस दिन गुज़रे, वो तारीख़ थी 8 अक्टूबर, 1979। उनके दिल की धड़कन बंद हो गई थी।

इस किस्से का ज़िक्र चंद्रशेखर की ऑटोबायोग्राफी ‘जीवन जैसा जिया’ में है। ये किताब सुरेश शर्मा के संपादन में राजकमल प्रकाशन से छपी है।

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