फेसबुक पर लगे बीजेपी की B पार्टी होने के आरोप ! सुनवाई होने पर क्या दी दलील?

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बीते दिनों फेसबुक पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की तरफ झुकाव के आरोप लगे हैं. अब जब इस संबंध में सुनवाई हुई तो क्या हुआ उस कार्यवाही में, जानें हमसे।

बुधवार को सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर लग रहे आरोपों की सुनवाई हुई, जिसकी सुनवाई ईलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक पर बनी 30 सदस्यों वाली संसदीय समिति ने की।

इस समिति में भारत में फेसबुक के प्रबंध निदेशक अजीत मोहन और विभाग से जुड़े तमाम आला अधिकारी मौजूद रहे, जिसमें उन्होंने समिति के सम्मुख अपनी पूरी बात कही।

समाचार एजेंसी पीटीआई ने कहा कि फेसबुक की तरफ से यह दलील रखी गई कि उसने हमेशा अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म को लेकर पारदर्शिता रखी है।

फेसबुक ने अपने बयान में यह भी कहा कि उसने बिना किसी राजनीतिक दबाव के लोगों को अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने का प्लेटफार्म प्रदान किया है।

फेसबुक को लेकर कब शुरू हुआ विवाद ?

ये विवाद तब शुरू हुआ जब एक अमरीकी समाचार पत्र वॉलस्ट्रीट जर्नल ने भारत में फेसबुक के बारे में आरोप लगाए कि वो सत्तारूढ़ दल यानी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में ज़्यादा काम करता है।

समाचार पत्र में ये भी आरोप लगाया गया कि फेसबुक पर अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ नफ़रत भड़काने वाली पोस्ट पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। ये भी आरोप लगाये गए कि उन कथित भड़काऊ पोस्ट को फेसबुक ने तब हटाया जब अख़बार ने उनके बारे में जानकारी दी।

पूरी कार्यवाही की हुई वीडियो रिकॉर्डिंग

कांग्रेस के सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने पत्रकार परंजय गुहा ठाकुरता और सोशल मीडिया पर नज़र रखने वाले एक समूह के प्रतिनिधि को भी अपनी मदद के लिए कार्यवाही में शामिल किया।

संसद के सूत्रों का कहना है कि संसदीय समिति की बैठक बंद कमरे में ज़रूर हुई मगर पूरी कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की गयी है।

समिति की सुनवाई काफ़ी लंबी चली। इस दौरान बंद कमरे में क्या कुछ हुआ इसे लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों ने फ़िलहाल चुप्पी साध रखी है। समिति में संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल हैं, जिसमें ज़्यादा संख्या सत्ता पक्ष के सदस्यों की है।

भारतीय जनता पार्टी ने शशि थरूर को समिति के अध्यक्ष पद से हटाने की पेशकश की

समिति की बैठक से पहले ही कांग्रेस ने फेसबुक के सीईओ मार्क ज़करबर्ग को दो-दो चिट्ठियां लिखीं जिसमें फेसबुक के लिए भारत में काम करने वाले दो प्रतिनिधियों के आचरण और उनके द्वारा की गई पोस्ट का हवाला दिया गया।

चिट्ठी के बाद समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने फेसबुक को नोटिस भेजा तो भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने थरूर को समिति के अध्यक्ष पद से हटाने की मांग की।

दुबे का लिखित आरोप है कि शशि थरूर सोशल मीडिया के इस प्लेटफॉर्म के ज़रिये खुद के और अपनी पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं मगर लोकसभा के अध्यक्ष ने चिट्ठी का कोई जवाब नहीं दिया।

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी लिखी चिट्ठी

समिति की बैठक से ठीक एक दिन पहले केंद्रीय विधि एंव न्याय, संचार एंव इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मार्क जुकरबर्ग को चिट्ठी लिखकर आरोप लगाया कि उनका सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वालों की पोस्ट को सेंसर कर रहा है।

प्रसाद का ये भी आरोप था कि अमरीकी अख़बार में जो लिखा गया है दरअसल वो उल्टी छवि पेश कर रहा है. उन्होंने ये भी कहा कि ‘भारत की राजनीतिक व्यवस्था में अफ़वाहें फैला कर दख़लंदाज़ी करना निंदनीय है’।

भारत में फेसबुक के लगभग 30 करोड़ यूज़र्स हैं और प्रसाद का ये भी आरोप है कि 2019 में हुए आम चुनावों में फेसबुक ने भारतीय जनता पार्टी को लोगों तक ठीक से अपनी बात पहुँचाने नहीं दी।

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संसदीय समिति की बैठक होती है गोपनीय

राज्यसभा के उपाध्यक्ष हरिवंश नारायण सिंह ने बताया कि कुल मिलाकर 24 संसदीय समितियां हैं, जो विभिन्न विभागों या मुद्दों को लेकर बनायी गयीं हैं। इनमें लोकसभा और राज्यसभा के सांसद शामिल रहते हैं लेकिन ज़्यादातर समितियों के अध्यक्ष लोकसभा के सदस्य हैं।

संसद किस तरह चलेगी इसके लिए पहले से ही स्पष्ट रूपरेखा निर्धारित है। विधायी कार्यों के नियम भी स्पष्ट हैं जिन पर कोई बहस नहीं की जा सकती है क्योंकि वो पहले से ही निर्धारित संसदीय परंपरा का हिस्सा हैं।

हरिवंश नारायण कहते हैं, “संसदीय समिति की बैठक पूरी तरह से गोपनीय होती है, जिसके बारे में समिति के सदस्यों को बाहर बोलने की अनुमति नहीं है। न सिर्फ़ सदस्य बल्कि जिनको समिति नोटिस भेजकर बुलाती है वो भी बाहर कुछ नहीं कह सकते। अगर वो ऐसा करते हैं तो ये विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है।”

सांसद मनोज कुमार झा कहते हैं कि जब तक समिति की रिपोर्ट को संसद के पटल पर नहीं रखा जाता, तब तक उसे सार्वजनिक भी नहीं किया जा सकता है। वो कहते हैं कि संसदीय समिति के सदस्यों और उनके सामने पेश होने वाले लोग शपथ से भी बंधे हुए हैं।

इसलिए लगभग तीन घंटों तक चली इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना तकनीक की संसदीय समिति की बैठक की कार्यवाही का लेखा-जोखा आम लोगों की जानकारी के लिए तब तक उपलब्ध नहीं है जब तक कि संसद इसका अनुमोदन नहीं कर देती। यही विधायी कार्यप्रणाली है।

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