बाबा साहेब का आदेश समाज के नाम 21 जुलाई 1942
शिक्षित करों,(EDUCATE) आन्दोलित करो,(AGITATE) संगठित करो(ORGANIZE)
To Educate a person of particular society for a particular purpose.
To Agitate a person of particular society for a particular purpose.
And Organize the people to achieve their fundamental rights.
स्वयं पर भरोसा करो , कभी निराश न हो
Confidence in yourself never lose your hope.
बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए
(2) बाबा साहेब का आदेश समाज के नाम 31 जुलाई 1955 -:
आपने गिरते हुए स्वास्थय से दुखी होकर नानक चन्द्र रत्तु जी को सुनाते हुए कि मेरे लोगो से कह देना-:
“मै उनके लिए जो कुछ भी कर पाया हूँ वह मैने अकेले ही किया है यह मैने विध्वंसक दुखो और अन्तहीन परेशानियो से गुजरते हुए चारो ओर विषेशकर हिन्दू अखबारों की ओर से मुझ पर की गयी गालियों की बौछारों के बीच किया है।
मै सारा जीवन अपने विरोधियों और अपने ही मुट्ठी भर लोगों से लड़ता रहा हूँ जिन्होनें अपने स्वार्थी उद्देष्यों के लिए मुझे धोखा दिया।
मै बड़ी कठिनाइयों से कारवाँ को यहाँ तक लाया हूँ जहाँ तक आज दिखाई देता है। कारवाँ को इसकी राह में आने वाली बाधाओं,अप्रत्याषित विपत्तियो और कठिनाइयों के बावजूद चलते रहना चाहिए।
अगर वे एक सम्मान जनक और प्रतिष्टित जीवन जीना चाहते है तो उन्हें इस अवसर पर अपनी क्षमता दिखानी होगी।
यदि मेरे लोग इस कारवाँ केा आगे ले जाने योग्य नही है तो वे इसे वही छोड़ दे जहाँ आज है, लेकिन किसी भी रूप में इस कारवाँ को पीछे न जाने दें।
मै पूरी गम्भीरता से यह संदेश दे रहा हूँ जो शायद यह मेरा अन्तिम सन्देश है और मेरा यह विश्वास है कि यह व्यर्थ नही जायेगा।
“जाओं और जाकर उनसे कह दो, जाओं और जाकर उनसे कह दो, जाओं और जाकर उनसे कह दो।”
(3) बाबा साहेब का अपने समाज को 14,15 अक्टूबर 1956 का निर्देश
यदि तुम अपनी मुक्ति चाहते हो तो हिन्दू धर्म के दलदल से बाहर निकलो जो तुम्हारे ऊपर थोपा गया है ऐसा कही नही मिलता है कि हिन्दुओ ने हमारे पुर्वजो (पुस्तैनी बौद्धो) को किसी कर्मकाण्ड के जरिए उन्हें हिन्दू बनाया हो, बल्कि उल्टे
उस समय के सबसे ज्यादा शील सदाचार का पालन करने वाले अर्थात बेहद शुद्ध लोगों को ही शूद्र, अछूत, नीच, चाण्डाल इत्यादि न जाने कितने गन्दे-गन्दे शब्दो से नवाज कर उनके साथ वैसा व्यवहार करने लगे।
इसलिए ऐसे धम्म की शरण ग्रहण करो जो पूरी तरह भारतीय है, जिसके वाहक महामानव तथागत बुद्ध है जो दुनिया द्वारा पुज्नीय है, जिस धम्म में ऊँच-नीच, जाति भेद, शूद्र, अतिशूद्र अछूतपन, हिन्सा, चोरी, व्याभिचार, भ्रष्टाचार, झूठ, चुगली ,
कठोरवचन, (पक्की-कच्ची शराब) जुआ इत्यादि का दूर-दूर तक कोई स्थान नही है बल्कि इस धम्म में, सम्यक दिट्टी, सम्यक सकंल्प, सम्यक वाणी, सम्यक कर्मान्त, सम्यक आजिविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि के
साथ-साथ सत्यता, समता, मैत्री, करूणा, मुदिता और उपेक्खा से परिपूर्ण ब्रहम विहार है।
जिसमें कोई जोर जबरदस्ती नही, जो “आओ और करके देखो” के सिद्धान्त पर आधारित है। जो धम्म (बौद्ध धम्म) मुलतः एक जीवन पद्यति है जिसका आभूषण शील-सदाचार (प्रतिज्ञाबद्ध अनुपालन) और विज्ञान है।
जो हमें पूरी तरह एक मुक्त मानव बनने का रास्ता देता है तो आइये हम उस धम्म की शरणं ग्रहण करे।