हे मालिक सुन लीजो,
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो ।
पत्ता, कीड़ा बनाय के,
भले जमीन पर फेंक दीजो।
मालिक! अबकी मोहे बिटिया न कीजो।
इज्जत नाही बिटिया की,
तोरी सागर सी दुनिया मां
अरे ! आसमान में जायके बड़ी हूं
देख दुनिया की सोच आज भू में पड़ी हूं।
अरे ! तुझे बनाना है; तो रेगिस्तान का ऊंट बनाय लीजो,
पर अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो।
सबै हम पे अपना हक जतावे,
पूछे ना कोई, बेटी जीवन मां का करना चाहवे।
हे मालिक ! मेरी आत्मा भटके दीजो,
चाहे कीजो तो इतना कीजो;
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो।
सगरी किस्मत लिख दियो तू जाने किसके नाम ?
माहरे हक में कभी न आयो सुख ,शांति ,विश्राम।
कभी ना निकली घर से मै टाफी, बिस्कुट खाने को,
रोक दिया उस वक्त कदम जब दौड़ी पंख लगाने को।
ईटा ,पत्थर ; मोहे तू सबै बनाय दीजो!
पर हे मालिक! मेरी इतनी सी सुन लीजो,
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो ।